एक नई खबर आज सुबह-सुबह अखबार की सुर्खियों में पढ़ने को मिली, जिसे जिस जिस ने सुना और पढ़ा सबकी आंखें नम हो गईं, अजीब है विधाता का विधान पहले पिता की मृत्यु एक कार एक्सीडेंट में हो गई, और फिर आज उनकी बेटी ने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली,
बरसों से कमाई हुई दौलत पल भर में पराई हो गई, बड़ा नाम था गुप्ता एंड संस का, बरसों से उनके बुजुर्ग जो कहते हैं कि पटना से सफर करके आए थे, और उन्होंने अपना व्यापार सोने चांदी की खरीद से शुरू किया, उनकी ईमानदारी कुशल परिवार और सामाजिक होने का गुण उनके लिए एक सफल व्यापारी है।
जगत का सर्व परी बनने में उनकी अहम भूमिका रही, उन्होंने कई दफा अपने तरफ से गरीब कन्याओं के विवाह में मुक्त आभूषण भी दिए, जिसके कारण समाज में उनकी ख्याति व्यापारी को सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अधिक थी, जब जिसे जरूरत होती, वह उनसे मदद मांगते और वह मदद में कभी पीछे भी नहीं हटते,
इतने दयालु स्वभाव के की कभी किसी की भी मदद करने में उन्होने मना नहीं किया, उनकी इकलौती बेटी संजना तो जैसे उनके जिगर का टुकड़ा था, बचपन में ही मां के गुज़र जाने के बाद उनके पिता धनंजय गुप्ता ने कभी दूसरी शादी नहीं की, बल्कि खुद ने ही अपने दो बेटे और बेटी की परवरिश की।
धनंजय गुप्ता ने अपने बच्चों को कभी भी अपनी मां की कमी महसूस नहीं होने दी, उन्हें अच्छी परवरिश संस्कार साथ ही साथ अच्छी शिक्षा भी दिया,
वक्त के साथ बिजनेस में तरक्की होती गई, और उनका नाम जाने माने व्यापारी में आने लगा,
धनंजय के दोनो बेटे अक्षित और दक्षित का विवाह भी हो गया , एक बहुत ही जाने माने व्यापारी की दोनों बेटियों से ही उन्होंने अपने बेटों का विवाह करवा दिया, विवाह बहुत ही साधारण तरिके से किया गया, क्योंकि धनंजय गुप्ता का कहना था कि विवाह में फिजुल खर्च करने से अच्छा है, किसी की उन पैसों से मदद कर दी जाए,
सब कुछ अच्छा चल रहा था और बिजनेस भी ऊपर ही ऊपर बढ़ते जा रहा था, तभी संजना के लिए एक बहुत अच्छे घर से रिश्ता आया, लडका चार्टर्ड अकाउंटेंट था, और उसके पिता का बिजनेस था, इतना अच्छा रिशता आया देख धनंजय ने यह बात उनके बेटे और संजना को बताई, और कहा कि अगर संजना की हां हो तो मैं तब भी हां करूंगा, वरना मैं इस रिश्ते के लिए मना कर दुंगा,
संजना ने अपने पापा से कहा जैसी आपकी मर्जी पापा, तब धनंजय ने कहा कि मैं कल ही लड़के वालो के घर जाकर उनका घर और सब कुछ देखकर आता हूं, दसरे दिन वह तड़के सुबह अपनी कार से संजना के होने वाले ससुराल के लिए निकले, तभी कार का एक्सीडेंट हो जाता हैं, और उनकी मौत हो जाती है,
और संजना की सारी जिम्मेदारियां उनके भाईयों पर आ गई, शुरू शुरू में तो सब कुछ ठीक चलता है, जैसे तैसे संजना अपने पिता के जाने का गम भूल पाती है, लेकिन इधर संजना की भाभियां धीरे धीरे उनके भाईयों के कान भरने लगती है, और कहती हैं कि संजना तो लड़की है, उसका प्रॉपर्टी में हिस्सा नहीं होना चाहिए, और संजना के पिताजी ने सबसे ज्यादा अपने प्रॉपर्टी का हिस्सा संजना के ही नाम कर रखा था, जो कि उनके दोनो भाभियों को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा,
लेकिन जब तक धनंजय गुप्ता थे, तब तक तो किसी की कभी कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हुई, लेकिन धनंजय की मौत के बाद सब के तेवर जैसे संजना के प्रति बदल गए, भाई लोग पहले संजना से बहुत प्यार और अच्छा व्यवहार करते, लेकिन धीरे धीरे उनकी पत्नी के कहने में आकार अब वह भी संजना के प्रति बिल्कुल अलग बरताव करने लगे,
एक दिन संजना के भाई और भाभियों ने संजना को अपने रास्ते से हटाने की साजिश रची, संजना इन सबसे अंजान थी, उसे तो बस ऐसे ही लगता है कि उसके भाई उससे बहुत प्यार करते, पर ऐसा बिल्कुल भी ना था,
एक दिन शाम के समय संजना छत पर टहलने के लिए जाती हैं, तभी उसके भाई, भाभी भी छत पर टहलने के लिए आ जाते हैं, और जब संजना का ध्यान उनकी तरफ नहीं होता, तो वे लोग संजना को छत से धक्का देकर मार देते हैं, और यह ख़बर सभी जगह फैला देते कि हमारी बहन हमारे पिता की मौत का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई, इसलिए छत से कूद कर अपनी जान दे दी,
लेकिन संजना की आत्मा को शांति कहां मिलने वाली थी, उसने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके खुद के भाई और भाभी चंद जायदाद के लिए उसे मौत के घाट उतार देंगे,
तभी कायरा से संजना की मुलाकात होती हैं, तब संजना ने कायरा से पूछा कि क्या तुम मुझे देख सकती हो????
तब कायरा कहती है, हां......मैं तुम जैसे सभी स्त्री,लड़कियों को देख सकती हुं, और उन्हें न्याय भी दिलाती हूं.......
तुम मुझे बताओ, तुम्हारे साथ क्या हुआ????? मैं तुम्हें न्याय दिलाऊंगी, तब संजना ने कायरा को बताया कि कैसे उसके पिता की कार एक्सीडेंट में मौत के बाद उसके भाई और भाभियों ने उसे छत से धक्का देकर मार डाला, तब कायरा कहती है कि अब तुम सब मुझ पर छोड़ दो, मुझे अब क्या करना है.....मैं खुद ही करूंगी और मैं तुम्हें न्याय दिलाऊंगी।
एक दिन कायरा संजना के भाईयों के ऑफिस में प्रॉपर्टी डीलर बनकर जाती है, और उनकी प्रॉपर्टी को 10 गुना ज्यादा दाम में खरीदने का कहती, दोनों भाइयों में लालच जाग उठता है, और वे बिना सोचे समझे कि यह कौन है, और हां बोल देते हैं, और सारे डॉक्यूमेंट तैयार करके उन पर अपने साइन कर देते।
कायरा प्रॉपर्टी को धोखे से साइन करवा कर सारी प्रॉपर्टी उनकी अनाथ आश्रम में दान करवा देती है, जब यह बात दोनों भाइयों को पता चलती तो वे कायरा के पास जाते, तब कायरा कहती है, कि शुक्र मानो कि मैंने सिर्फ तुम्हारी प्रॉपर्टी तुम से छीनी है, तुम लोगों को छत से धक्का देकर तो नहीं मारा, उनके चेहरे पर पसीना आ जाता है, क्योंकि वहां संजना की आत्मा भी आ जाती हैं,
संजना के भाई लोग संजना को देख हैरान होते, संजना अपने भाई लोगों से कहती हैं , आप लोग चिंता मत करो, मैं तुम लोगों को छत से धक्का देकर नहीं मारूंगी, अब तुम्हारे पास तो कुछ बचा ही नहीं, जिस प्रॉपर्टी के लिए तुमने मुझे मारा, आज देखो आप लोगों के पास क्या है,
एक बार कह दिया होता तो मैं अपनी सारी प्रॉपर्टी खुशी खुशी तुम लोगों को दे देती, पैसों के लिए अपनी बहन की ही जान ले ली।
संजना ने कायरा का धन्यवाद किया, और कहा कि मुझे न्याय मिल गया और वहां से चली गई,
संजना के दोनों भाइयों के पास कुछ ना बचा, उनका सारा बिजनेस अनाथ आश्रम के नाम हो गया, अब वे लोग दर-दर की ठोकरें खाने और अपने किए अपराध पर शर्मिंदा थे, इसलिए उन्होंने पुलिस को सब जाकर सच-सच बता दिया, और उन सभी को जेल हो गई,
इस प्रकार कायरा ने संजना को न्याय दिला कर निकल पड़ी ऐसे ही बहुत से लोगों की मदद करने के लिए, अब आगे कायरा किसे न्याय दिलाती हैं??????
शेष अगले भाग में........