ढलती शाम और उन बैल गाड़ियों के बैलों के गलों में बंधी हुई घंटियों की आवाज को मैं दूर तलक सुनकर उस दिन महसूस कर रही थी, शायद ही मेरी उस अनुभूति को कोई समझ पाता, क्योंकि उस दिन मैंने सही मायने में समाज के उस सत्य को देखा जिसमें कहने मात्र को उस प्रधान की झलक थी, हम बेकार ही पुरुषों को दोष देते हैं, सही मायने में दुश्मनी तो हमें अपने आप से ही हैं, ईर्ष्या, छल ,क्रोध की भावनाये पुरुषों से कहीं ज्यादा स्त्रियों में कूट-कूट कर देखा जा सकता है, फिर चाहे वह कल्पना की मां हो या समाज का कोई भी तबका(वर्ग ) सबका एक ही हाल था, हर घर में एक स्त्री दूसरी स्त्री की दुश्मन बनी होती, कोई भी अपने अधिकारों को कम नही आंकना चाहते, और उसमें रत्ती भर भी हिस्सेदारी वह बर्दाश्त नहीं कर सकती।
कल्पना के ससुराल पहुंचने पर सबने उसका बड़े प्रेम से स्वागत किया, कल्पना को नई दुल्हन के रूप में सभी ने उसको बड़े प्यार दुलार से उसका स्वागत किया, सारी रस्मों को निभाया गया, कल्पना मात्र अभी पन्द्रह साल की थी, यह सब रीति रिवाज के बारे में उसे बिल्कुल भी कोई जानकारी नहीं थी, सब लोग जैसा जैसा बोलते गए, कल्पना भी बस वैसा ही करती गई,
रात के समय कल्पना को हिमेश के कमरे में भेज दिया, उधर हिमेश पहले से ही अपने कमरे में था, कल्पना सब जिम्मेदारियों से अनजान, और ना ही कभी उसे किसी ने शादी के बाद की जिम्मेदारियों को कैसे निभाया जाता है आज तक बताया, अगर कल्पना की मां जिंदा होती तो शायद उसे सब कुछ सिखाती पर सौतेली मां को कल्पना से कोई मतलब ही नहीं था, उसे तो बस कल्पना का विवाह करा इस घर से कैसे भी विदा करना था।
कल्पना रात में अपने कमरे में जाती , सुहागरात क्या होता है यह सब से अनजान......
हिमेश कल्पना से कुछ देर बातें करता है, वह धीरे-धीरे उसके हाथों को चुमने लगता है, उसके हाथों को चुमते हुए वह उसके सारे बदन को चूमने लगता है, कल्पना को कुछ समझ नही आ रहा था कि हिमेेश क्या करा है, लेकिन वो कुछ बोल ना पाई, हिमेश उसके पूरे शरीर पर हाथ फेरते हुए जोर जोर से चूमने लगा, कल्पना को बहुत अजीब सा लग रहा था, आख़िर कल्पना ने हिमेश से कह ही दिया कि, यह आप क्या कर रहे हो, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है, इस पर हिमेश ने हंसकर कहा, अब तुम मेरी पत्नी हो और विवाह के बाद यह सब पति पत्नी के बीच होता है, कहते हुए वह दोनों एक दूसरे में समा गए।
कल्पना और हिमेश खुशी खुशी से साथ रहने लगे, कल्पना घर का सारा काम करती, सबकी जरूरतों का ध्यान रखती, किसी को कोई शिकायत का मौका तक ना देती, लेकिन कहते हैं ना कि एक स्त्री ही दूसरी स्त्री की दुश्मन होती हैं, कल्पना की सास को कहीं ना कहीं कल्पना और हिमेश का एक दूसरे के प्रति इतना प्यार देखकर बिल्कुल अच्छा नहीं लगता,
छः महीने बाद कल्पना अपने मायके आई, मुझे जैसे ही कल्पना की आने की खबर मिली, मैं वैसे ही कल्पना से मिलने उसके घर चली गई, बहुत खुश लग रही थी,
मैंने कहा, तुम्हारे ससुराल में सब कुछ ठीक है, उसने कहा सब ठीक है, सब मुझे बहुत प्यार करते हैं।
उधर कल्पना की सास ने हिमेश के कान भरने शुरू कर दिए, कल्पना के बारे में भला बुरा हिमेश को बताने लगी, हिमेश को भी अब कल्पना से नफरत सी हो गई, जब कल्पना वापस अपने ससुराल पहुंची, तो उसे वहां का वातावरण पूरी तरीके से बदला बदला लगा, एक पल को कल्पना को लगा कि शायद यह मेरा भ्रम होगा, लेकिन धीरे-धीरे उसे समझ आने लगा कि उससे सब नफरत करने लगे हैं, उसे सब लोग हर समय खरी-खोटी सुनाते, कोई भी कल्पना से ढंग से बात नहीं करता, यह सब देख कल्पना की सास मन ही मन बहुत उत्साहित होती।
अब धीरे-धीरे हिमेश का रवैया कल्पना के प्रति पूरी तरीके से बदल गया था, एक दिन कल्पना ने कहा, मैं देख रही हूं, जब से अपने मायके से लौटी हूं, तुम्हारा व्यवहार मेरे प्रति बदला बदला सा रहने लगा है, क्या मुझसे कोई गलती हुई?????
तब हिमेश ने उसे एक जोरदार झापड़ जड़ा और बोला, बहुत जवान चलने लगी है तेरी.......
कल्पना शांत होकर बैठ गई, अब इधर मायके में भी कल्पना की खबर आना बंद हो गई, लेकिन कल्पना के घर में इस बात का किसी को रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता।
कल्पना को उसके ससुराल वाले बहुत प्रताड़ित करने लगे, बात-बात पर मारना पीटना, गाली गलोच उसके साथ रोज-रोज होने लगा और कभी-कभी तो उसे खाना तक भी नहीं दिया जाता, बस सुबह से लेकर रात तक उससे सिर्फ काम करवाया जाता और प्रताड़ित किया जाता, कल्पना कहे भी तो किससे,जब उसका पति ही अब उसका नही रहा तो वह कहती भी किससे.......
वह यह सब चुपचाप सहती जा रही थी, एक दिन हिमेश ने उसे कहा कि हमें कहीं बाहर एक विवाह में जाना है, तुम तैयार हो जाओ, तब कल्पना को लगा शायद अब सब कुछ ठीक हो जाएगा,
कल्पना खुशी-खुशी हिमेश के साथ चली गई, लेकिन वह सब बातों से अनजान थी, हिमेश जंगल की तरफ चले जा रहा था, तब कल्पना ने कहा कि हमें तो किसी विवाह में जाना है ना , फिर इस जंगल में हम क्यों जा रहे हैं??????
तब हिमेश ने कल्पना से कहा कि चुपचाप अपना मुंह बंद करके चल,
हिमेश, कल्पना को एक घने जंगल में अपने साथ ले गया, कल्पना को बहुत डर लग रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिरी उसे यहां क्यों लेकर आए?????
तब हिमेश ने कल्पना से कहा कि, तुम हम लोगों के लिए बोझ बन गई हो, और मैं तेरे साथ अब नहीं रह सकता, और जेब से कल्पना को मारने के लिए एक चाकू निकाला, तब कल्पना डरी सहमी सब समझ गई कि आखिर हिमेश ने उसे इस घने जंगल में क्यों लाया????
वह हिमेश के सामने बहुत गिड़गिड़ाई, मुझे मत मारो.... आखिर मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा???? लेकिन हिमेश तो हैवान बन चुका था, उसे कल्पना पर थोड़ा भी रहम नहीं आया, उसने कल्पना पर चाकू से वार करना शुरू कर दिया, कल्पना ने अपने आपको बचाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह हिमेश के चंगुल से कहां बचने वाली थी, हिमेश ने कल्पना पर ना जाने कितने वार किए, कल्पना के शरीर से खून बहे जा रहा था, और वह वहीं गिर कर सुध हो गई।
हिमेश उसे वहां छोड़कर भाग गया, कल्पना की हल्की हल्की सांसे चल रही थी,
तभी उस मार्ग से गुरुजी जा रहे थे और उनकी नजर कल्पना पड़ी, उन्होंने अपने अंतर ध्यान से देखा कि आखिर कल्पना की यह हालत किसने की।
गुरुजी से कल्पना की यह हालत देखी न गई, तब गुरुजी ने कल्पना को वचन दिया, बेटी अगर मैं थोड़ा पहले आता तो शायद तुम्हें बचा पाता, लेकिन मैं तुमसे वादा करता हूं कि अगले जन्म में तुम बहुत सी शक्तियों की स्वामिनी होगी, तुम्हें बहुत सी शक्तियां प्राप्त होगी और तुम्हारा जन्म उन स्त्रियों को इंसाफ दिलाने के लिए होगा, जो हिमेश जैसे हैवान का शिकार होती है, और कल्पना ने दम तोड़ दिया.......
इधर मैं उदास सी रहने लगी, क्योंकि कल्पना की कुछ खबर नहीं थी, ना ही कोई संदेश, यही सोचते हुए एक दिन मैं झरने के किनारे उदास बैठी हुई थी, तभी वहां गुरुजी आए और उन्होंने मुझे कल्पना के बारे में बताया कि कैसे उसके पति हिमेश ने उसकी बेदर्दी से हत्या कर दी, मैं यह बात बर्दाश्त ना कर पाई और मैंने भी वहीं दम तोड़ दिया,
यह सोचते हुए एकदम से मेरे सामने कायरा का चेहरा नजर आया, और मैं समझ गई कि मेरे पिछले जन्म की सखी कल्पना ही कायरा है, शायद विधाता को यही मंजूर था, इसलिए उन्होंने कायरा के संरक्षण के लिए मुझे चुना.........
शेष अगले भाग में......