भला ऐसे कैसे हो सकता है?????मेरे सारे खिलौने टूट गए, खड़ी फसलें बर्बाद होने लगी, मैं इन से क्या मांगू?? आप ही बताएं..... क्योंकि मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा, ऊपर से लोगों के ताने अलग सुनने में आ रहे, अब तो ऐसा लगता है कि वाकई गलती तो हुई है मुझसे या फिर उसे गलती ना कहकर, अगर पाप कहूँ तो कम न होगा, मैं ही बेवकूफ था जो अपने पिता और माता का जिन्होंने मुझे जीवन दिया, किसी चीज की कमी तक महसूस ना होने दी, ऐसा लालन पालन पोषण किया, व्यापार सिखाया और अपनी गद्दी पर खुद ही बैठा दिया......
लेकिन मैंने कुमुद और आपकी बात मान कर घोर अनर्थ कर दिया, पहले उन्हें अनदेखा करना, इतना समझाने पर भी उनकी बातें ना मानना, और फिर दिलीप के समझाने पर भी ना समझना, और यहां तक कि जब उसने मेरी मां को अपने साथ ले गया तब भी कुमुद की कुटिल सोच और आजादी में जीने की चाह और अपनी ख्वाहिशों का पर्दा, मैं बेवकूफ कुछ समझ ही नहीं पाया।
लोग क्या गलत कहते हैं, मैंने तो इतना करने के पश्चात भी उनके जीने का एकमात्र सहारा उनका पोता उसे भी इस कपटी नारी के कहने पर उनसे दूर कर दिया, और तो और उनके मरने के पश्चात मैंने अग्नि देने के अलावा बाकी कर्म ही कौन से किए, सब कुछ तो ब्राह्मण भोज से लेकर कथावाचक कराने तक दिलीप ने हीं किए, और आप लोग मुझे उसी के खिलाफ यह कहकर उलझा रहे कि, उसने भला कौन सा अपना धन लगाया है, बड़े आश्चर्य की बात है, मैं खुद भी सोचता हूं कि आपके मरने पर रोने वाला कुमुद के अलावा कोई और होगा भी कि नहीं ?????
इतना सुनते तो जैसे गिरीश की आंखों में आंसू आ गए, और कुमुद नजरें चुराते हुए कहने लगी, ऐसा क्या गलत किया मेरे पिता ने जो इतना दोष देते हो, कोई हमने त्याग तो नहीं दिया था उन्हें, वह तो खुद ही लक्ष्मी (दिलीप की पत्नी) अपने साथ ले गई थी, यह कह कर कि कुछ दिन हमें भी सेवा का मौका दो और फिर वह भी तो हमारा ही घर है, कौन सा दूसरे के घर चले गए, फिर लोगों का क्या वह तो भगवान को भी एक मत से नहीं कहते, कहीं ना कहीं दोष निकाल ही लेते हैं, हां, यह बात मैं मानती हूं कि नुकसान तो हुआ है, और थोड़ा भी नहीं, बहुत ज्यादा लेकिन हुआ कैसे???? मुझे तो लगता है कुछ ना कुछ साजिश है????
साजिश कहती है...कपटी औरत अभी भी आंखे ना खुली, अब तो समझ जाओ और अपनी गलती मान लो, शायद प्रायश्चित हो जाए, तुम्हें तो शायद गैर समझकर माफी भी मिल जाएगी, लेकिन मुझे तो मुक्ति मिलना मुश्किल नजर आता है, उनकी नाराजगी साफ नजर आती है, इन टूटे हुए खिलौनों को देखकर, क्योंकि उनके सिखाएं हुए कर्मचारी के बनाए हुए खिलौने कितने दशकों से आज भी लोगों के घर की शान है, मुझे तो ऐसा लगता है कि यह खिलौना नहीं, मेरे जीने की आस टूट गई।
वह कह रहा था कि, तभी एक विशाल सर्प के दुकान में होने की खबर नौकर ने आकर सुनाई, और यह भी बताया कि कैसे वह पूरी दुकान में घूम-घूम कर खिलौने को गिरा रहा है ,और अब तो जैसे गिरीश के भी पसीने छूटने लगे, उनके पितरो के कोप से वह भली भांति परिचित था, अब उसे भी यकीन हुआ कि प्रेम की मां वाकई नाराज थे, सभी ने जाकर देखा, तो वह सर्प बिना किसी को हानि पहुंचा, दुकान में तोड़फोड़ मचा अचानक ना जाने कहां गायब हो गया, वह इतना विशाल था कि किसी का साहस उसके सामने आने का ना हुआ, लोगों ने भीड़ बना सिर्फ देखा, लेकिन किसी ने कुछ ना किया,सभी यही कहते रहे कि जिस का है वही उजाड़ रहा है, और वैसे भी संपत्ति का कोई वास्तविक हकदार भी नहीं, कहते हुए भीड़ अपने-अपने घरों को चली गई....
फिर वह सिर्फ एक जंगल की और चला गया, जहां कायरा की नजर उस पर पड़ी, कायरा सब कुछ समझ गई कि यह कौन है????
कायरा ने कहा कहो क्या कहना चाहते हो मां????? अपने अशांत मन को पहले शांत कर लो, तत्पश्चात मैं कुछ कहूं, जो तुम्हें करना है, तुम कर ही चुकी हो, फिर इतना रोष क्यों ????
ऐसा लग रहा था, जैसे वह सर्प उससे मन की बातें कर रहा हो, बाद में पूछने पर उन्होंने बताया कि मैंने अपने अंतिम समय अपने पोते से मिलने की इच्छा जाहिर की, तब लक्ष्मी उसे कुमुद के पास लेने पहुंची तो उसे अनेकों शब्द सुनाएं, ना जाने कितने अपशब्द कहे, लेकिन कुमुद ने उसकी एक न सुनी, तब लक्ष्मी उदास होकर मेरे पास पहुंची और कहने लगी, अगर मेरी कोख से जन्मा बालक होता तो मैं न्यौछावर कर देती.....
लेकिन आज दीदी ने मुझे भिखारन और बाँझ कह कर अपमानित किया, हां, मैं गई थी भीख मांगने, क्योंकि मैंने आपको मां माना है, आपकी इच्छा पूरी करना कर्तव्य है मेरा, लेकिन क्षमा करें मैं असफल रही, कह कर रोने लगी।
मैं करती भी क्या???? अब सिर्फ लक्ष्मी के सिर पर हाथ रख इतना ही कह सकी, ठीक है जो तेरा फर्ज था, तूने पूरा कर लिया, ईश्वर सदा खुश रखे तुम्हें... और अपने प्राण त्याग दिए... उसने यह भी बताया कि वह दिलीप के पास एक गुप्त खजाना अपने पोते के लिए छोड़ा है, जो सिर्फ और सिर्फ उसके व्यस्क होने पर यदि लायक हुआ तो दिया जाना है, वह भी आधा हिस्सा...
शेष आधा हिस्सा लक्ष्मी के बेटे के लिए होगा, मतलब साफ था, कि उन्होंने लक्ष्मी को पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया, अब क्योंकि उनके कोप से प्रेम को भलीभांति अवगत करा चुके थे, तब कुछ और शेष न बचा, इतना सब होने के बाद मुझे मुक्ति कैसे मिलेगी कायरा, तब कायरा कहती हैं कि मां तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हें न्याय दिलाऊंगी।
देखते ही देखते प्रेम की सारी दुकान ठप हो गई थी,उसके कारीगर उसका व्यवहार देख काम छोड़ कर चले गए, और काम चोरी की दशा में लंबे समय तक रहने के कारण खुद भी कुछ ना कर सका, उसकी आर्थिक स्थिति पूरी तरह से बिगड़ चुकी थी, कुमुद और गिरीश का स्वास्थ्य काफी दिनों तक ठीक ना रहा, और उनका जीवन प्रायश्चित में कटने लगा।
और लक्ष्मी को एक सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ, दिलीप का व्यापार दिन दोगुना रात चौगुना बढ़ गया,आज वह प्रेम के मां पिताजी की तस्वीर दुकान में लेकर बैठता, और धन्यवाद करता, क्योंकि अब उसे वह पितृ आशीर्वाद प्राप्त था, जिसका सही हकदार प्रेम था, लेकिन प्रेम ने खुद उसे ठुकरा अपने पितरों का कारण बना और निच गति को प्राप्त हुआ, सम्मान, व्यापार और ओज वह सब कुछ खो चुका था,
इधर प्रेम की मां को संतुष्टि मिलती है, और वह कायरा का धन्यवाद कहते हुए दूसरे लोक की और चले जाती है, इस प्रकार कायरा प्रेम की मां को मुक्ति दिलाती हैं।
अब आगे कायरा क्या करेंगी??????
शेष अगले भाग में.......