मुझे ऐसा क्यों लगता है कि आपने इस हवेली में बहुत सोच-विचार के पश्चात कदम रखे हैं, लेकिन क्यों यह बात मेरी समझ नहीं आती?????क्या इसलिए की यह नगरवधू का निवास स्थान हुआ करता था, और यदि ऐसा है तो क्या गलत है था????
कोई भी लड़की जन्म के समय यह नहीं जानती कि उसका भविष्य कहां लिखा है, यह तय होता है उस समाज की सोच संस्कार और उसके पालनकर्ता के ऊपर कि, वह उस बच्ची का भविष्य किस स्याही से और किस पन्ने पर लिखेगा ,
और इन सबके पश्चात भी चाहे कैसे भी लिखावट क्यों ना हो, यदि पढ़ने वाले की नियत और सोच में अंतर हो, तब भी लिखावट में परिवर्तन आ सकता है।
नगरवधूओ ने अपना समाज स्वयं तो नहीं बनाया, और ना ही शादियां रचाई थी, और भले ही शक्ति स्थापना के लिए हमारी चौखट से माटी ले जाए, लेकिन कोई भी शक्ति पाठ या यज्ञ होम हमारे यहां नहीं होते, जिसका प्रसाद खाकर नगरवधूए किसी भी बच्चे को जन्म दे सके।
तब फिर यह संतान आई कहां से????? यह सब किसी ना किसी उच्च राजघराने या सभ्यता की पराकाष्ठा समझे जाने वाले किसी असाध्य पुरुष की ही निशानी है, जिसे बोकर तो वह पहले गए, लेकिन खुद अपने ही बीज का उन्हें आभास नहीं।
आश्चर्य है कि जिस समाज का व्यक्तित्व अपने आप को इतना बड़ा और संवेदनशील समझता है, यह संवेदनाएं उस समय कहां चली जाती है ,जब लौटकर दोबारा वह नगरवधू से गर्भधारण की जानकारियां नहीं लेता।
क्यों उसे आभास नहीं होता,एक पल के लिए भी कि , जिस नगरवधू की संतान को वह अपने लिए एक साधन समझता है, वह वास्तव में उसी के कुल का हिस्सा है,
माफ करिएगा, मैंने कुल कह दिया, क्योंकि जब तक स्वीकार न किया जाए, तब तक कुल की बात कहां?????
खैर छोड़िए, धनंजय जी आज भला इस चौखट पर आना कैसे हुआ?????
खुद बता पाने में सक्षम ना हो तो श्यामल देवी और चंदा के लिखे पत्र ही हमें दे दे, हम खुद ही पढ़ कर समझ जाएंगे,और फिर आपके गांव से हमें आज तक कोई शिकायत भी नहीं हुई, हम भली भांति जानते हैं कि जिस स्थान से आप लोग आए, वहां का पुरुष समाज अन्य समाज से हटकर है, या मैं यूं कहूं कि पूरे विश्व से हटकर है ,
क्योंकि स्त्री को दिया वचन यदि कोई पुरुष ताउम्र निभा ले, तो वाकई में काबिले तारीफ है।
हम जानते हैं कि वह एकमात्र आपका गांव है, जहां से श्यामल देवी को एक महिला सरपंच के रूप में पहली बार सभी गांव वाले ने स्वीकार किया, धन्य है वह समाज जहां आज भी स्त्रियों को बराबर का अधिकार प्राप्त है,
उनके मन की भी सुनी जाती हैं , और सुनकर उन पर विचार भी किया जाता है, ऐसे समाज पर तो थोड़ा क्या अगर हम पूरा कोष भी लुटा दे तो कम ही है।
कहिए धनंजय जी आपको कोई संकोच तो नहीं है, मैं जानती हूं कि आपने चंदा के दिए पत्र को अभी तक नहीं पढ़ा, लेकिन फिर भी मैं आपको आपके सवाल का जवाब जरूर दूंगी, लेकिन इसके पहले वे दोनों पत्र मुझे सौंप दिए जाए।
धनंजय ने दोनों मोहर बंध पत्र अत्यंत आश्चर्य के साथ रजनी देवी को सौंप दिए,
रजनी देवी ने पत्रों का ध्यान से निरीक्षण कर उन्हें थोडे समय बैठने का कह भीतर जाकर शायद पत्रों को पढ़ा, और पुनः लौट धनंजय को इशारा करके कहा, हमारी भेंट कहां है जो हमारे लिए भेजी गई है।
सकुचाते हुए धनंजय जी ने एक पेटी उनके हाथों में थमा दी , जिसे स्वीकार कर उन्होंने बड़े प्यार से उसको अपने पूजा घर में रखा, और कहने लगी चिंता ना करें, आपको शेष नहीं पूरी रकम हमारे ही कोष दी जाएगी।
यह सुनते ही जैसे सभी पंचों के साथ धनंजय को भी झटका लगा, सभी ने एक दूसरे की तरफ देखा, लेकिन वे जानते थे कि चंदा का कहा और श्यामल देवी का लिखा बेकार नहीं जा सकता, लेकिन फिर भी संतुष्टि के लिए धनंजय सरपंच ने स्पष्टीकरण के तौर पर रजनी देवी से कहा कि क्या आप जानती है कि रकम क्या होगी??????
क्या सच में हम यकीन माने कि गांव में नहरे बन जाएगी, यदि वाकई ऐसा हुआ तो मैं वचन देता हूं कि गांव में अपने ही जमीन पर बालिकाओं की शिक्षा के लिए खुद विद्या मंदिर बना कर जमा रकम से विद्यालय चलाऊंगा।
अति उत्तम.... मुझे आपसे यही उम्मीद थी, रजनी देवी ने मुस्कुराते हुए कहा, कहिए क्या रकम हैं, लेकिन इसके पहले धनंजय जी हम आपके सवाल का जवाब देते हैं, आइए आपको कुछ दिखाना है।
बाकी पंच यहीं बैठ के विश्राम करे ,जलपान ग्रहण करें , तब तक हम इन हवेली घुमा कर लाते हैं,
धनंजय जी उठकर रजनी देवी के साथ चल पड़े, कुछ बड़े छोटे कमरों के बाद एक सुसज्जित प्रकाशित कमरे के पास जाकर रजनी देवी रुक गई, और कहने लगी आपके सवाल का जवाब इस कमरे में मिलेगा, इसके साथ उन्होंने उस दरवाज़े को जैसे ही खोला,धनंजय देखकर हैरान हो गया,
क्योंकि वहां चंदा की तरह शक्ल मिलती हुई एक वृद्धा वहां बैठी थी, जिसकी सेवा में कुछ लड़कियां लगी थी, आसपास नजर घुमाने पर धनंजय का माथा चकराने लगा।
तब उन वृद्ध महिला ने उन्हें बैठने का इशारा किया, और कहने लगी,आप समझ ले कि आप अपने ससुराल में है, मैं जानती हूं कि आप जैसे ज्ञानी पुरुष कभी भी इस बात में संकोच नहीं करेगें, क्योंकि आपने मुझसे बिना मिले मेरी बेटी को अपनी धर्मपत्नी का दर्जा दिया ,और उसकी पवित्रता से भली-भांति परिचित हो।
जिसे मेले में आपने नियम के अनुसार चंदा का हाथ पकड़ा और वरण की बात की, तब मैं उसे वही नम आंखों से छोड़ कर आ गई, क्योंकि मुझे ना जाने क्यूं आप के हाथ पकड़ने का तरीका देख ही आभास हो गया था, कि बेटी किसी गलत मनुष्य के साथ नहीं।
उसी दिन मेले में चंदा के साथ हमारी कम से कम पच्चीस बेटियां इस गांव में ब्याही गई, जिसे अनजान बन हम लोगों ने श्यामल देवी के आमंत्रण पर देखा, अब यह आश्चर्य ना करना कि भला यह सब श्यामल देवी कैसे जानती थी,
क्योंकि चंदा ने उन्हें अपना सारा सच पहली मुलाकात में ही बता दिया था, और साथ ही साथ अपनी सखियों का भी वर्णन कर दिया था, और इसलिए उन्होंने हमें उस दिन विवाह में आमंत्रित किया था,
और श्याद तब ही रजनी देवी से आप की प्रथम मुलाकात उस हीरे की अंगूठी की भेंट के साथ की थी, अब आप समझ चुके होंगे, उस गांव के परेशानी मतलब हमारी बेटियों की परेशानियां है,
इसे हमारी तरफ से उपहार समझकर स्वीकार करिएगा, और हो सके तो यहां से जाने के बाद इस बात का जिक्र किसी से भी ना करें, मेरे मृत्यु की सूचना आपको मिल जाएगी, हो सके तो अंतिम समय एक बेटी को मां का मुख देखने के अवसर से वंचित न करना....
शेष अगले भाग में......