अचानक कुछ दिनों से पहाड़ी का दूसरा हिस्सा आज रात्रि में शांत सा जान पड़ा, तभी अचानक ज्वालामुखी से तेज विस्फोट की आवाज आती , तो कभी अचानक सूरज की तेज रोशनी, रात्रि के अंधकार को ढकने लगती।
जिस कारण पशु पक्षी भयभीत होकर यहां वहां दौड़ लगाते दिखते हैं, लेकिन इसका कारण किसी को भी समझ नहीं आता है,
अब तो धीरे-धीरे जैसे यह निरंतर की बात हो गई हैं, और इस बात की खबर लगभग लगभग गांव में सभी के पास आग की तरह फैलने लगी, कई लोगों में डर का माहौल पैदा हो गया, और सभी भांति-भांति की बातें बनाने लगे।
किसी ने देवी का प्रकोप कहा, तो किसी ने इसे शैतान के जाल का अंदेशा समझा, कायरा भी कहीं न कहीं इन बातों से अनजान थी, लेकिन अब तक वह एक बात समझ चुकी थी, कि जब तक स्पष्ट पुकार सुनाई ना दे, और किसी के प्राण रक्षा या प्रकृति का इशारा ना हो तब तक किसी के भी कार्य में हस्तक्षेप वह नहीं करेगी।
क्योंकि प्रकृति का संतुलन अच्छी और बुरी ताकतों , दिन की रोशनी तो रात का अंधेरा , सुख-दुख इन सबके समावेश से ही बना है, और जबरन सिर्फ और सिर्फ अपने आप को शाबित करने के लिए यदि कोई इसमें हस्तक्षेप करेगा, तो उसे भी अनुचित ही मारा जाएगा , और ऐसा काम वह कदापि नहीं करना चाहती थी।
लेकिन मन ही मन वह उन घटनाओं को रोकना भी चाहते थे, जिसने सभी को भयभीत कर रखा था, यह सोचते हुए वह दोपहर में घने आम की छांव में जाकर बैठी ही थी, कि अचानक उसे अपने आसपास कुछ हरकत महसूस हुई और वहां अचानक उठ खडी हुई ।
उसने देखा उसकी सखियां और चारवी थोड़ी व्यतीत नजर आईं, उनका आभामंडल अचानक कमजोर पड़ने लगा, चारवी इशारे से सिर्फ इतना ही कह पाई की कोई अदृश्य शक्तियों ने उन्हें अपने वश में करने के लिए आह्वान कर रही है,
और इतना कहते ही, वह अचानक खींची चली गई, कायरा को तो सिर्फ इशारा ही चाहिए था, और फिर बात जब चारवी की पुकार की थी, तो वह भला कहां शांत रहती।
कायरा भी पलक झपकते दिशा की ओर बढ़ चली, जाकर देखती है कि वहां बड़े जोर शोर से यज्ञ चल रहा है, लेकिन देखने से यह बात समझ आती है, कि उसका उद्देश्य कदापि समाज के हित में नहीं है, क्योंकि काले वस्त्र धारण किए हुए वे पाखंडी जिस शक्ति का आह्वान कर रहे थे,
और जिस तरह से निरीह पशु पक्षियों की बलि देकर अतृप्त आत्माओं के साथ अच्छी आत्माओं को मिलाकर उन्हें कैद करना, और किसी हथियारनुमा संरचना को निर्मित करने का प्रयास करना, साफ जाहिर करता है, कि वे किसी नए दिव्यास्त्र का निर्माण करना चाहते हैं, और शायद इसलिए उस दिव्यास्त्र के कण कण के निर्माण के समय बिजली की चमक के साथ उसे और भी मजबूत करने का प्रयास किया जा रहा है।
यह सोचना भी अत्यंत खतरनाक होगा, कि यदि इतनी आत्माओं को बंदी बना और इतनी बलियों के बाद जब यह अस्त्र बनेगा, तो क्या कहर ढायेगा, देखकर साफ समझा जा सकता था, लेकिन कायरा के पहुंचते ही अचानक जैसे उनके काम में खलल पहुंची, और देखते ही देखते उस यज्ञ की अग्नि शीतल होने लगी।
अब तक जो बिजली कौंध कर सारे वातावरण को भयभीत कर रही थी, वह अचानक आसमान में कहीं गुम हो गई, कायरा को देखते ही चारवी और समस्त अच्छी आत्माएं तुरंत विमुक्त हो, कायरा के पास आ खड़ी हुई, सारा वातावरण जैसे एक युद्ध स्थिति में आ गया।
लेकिन कायरा यह जानती थी, कि इस सब कार्य के पीछे किसी अन्य शक्ति का हाथ है, लेकिन कौन ????उसे जानना बहुत जरूरी है, और इसके लिए उसे उसके अब तक के हुए उपकरण को चोट पहुंचाकर ही जाना जा सकता,
इसलिए कायरा ने सर्वप्रथम वहां के सारे हवन कुंड का विनाश किया, और फिर जब यह जाना की हवन की अग्नि शांत ना होने के कारण उस दिव्यास्त्र का प्रमुख हिस्सा तैयार हो जाना है, जो सामने स्पष्ट रूप से नजर आ रहा था, और रक्त कुंड में डूबा हुआ था ।
और जिस शक्ति के कारण रक्त किसी पानी की तरह उबाल मार रहा था, कायरा ने अपना पूरा ध्यान उस कुंड के ऊपर आकर्षित किया, और आसमान की ओर इशारा कर एक चक्रवात पैदा किया, जिसने बड़े झटके से उसको पलट दिया, और इसके पहले कि वह अधूरा दिव्यास्त्र कोई और संरचना ले आता ।
कायरा ने अपनी संपूर्ण शक्ति लगाकर उसका विनाश कर दिया, एक तेज विस्फोट के साथ वह दिव्यास्त्र टूटा जरूर, लेकिन अचानक उसके बिखरे हुए टुकड़े हवा में ही रुक गए, जैसे उन्हें किसी अदृश्य शक्ति ने थाम रखा है।
कायरा कहने लगी की ये लुका छुपी किस काम की, बहुत हुआ .....सामने आकर लड़ो, तुम्हारा साहस भी कैसे हुआ, उन दिव्य पर्वतों पर किसी शैतानी हथियार को बनाने का, इतने मुक प्राणियों का रक्त बहाकर तुम्हें तिल मात्र भी दया नहीं आई, आखिर कौन हो तुम????
सामने आओ..... वरना मुझे मजबूरन अपने अंतिम और लक्षभेदि शस्त्र का प्रयोग करना पड़ेगा, जिससे आज तक कोई भी नही बचा है, फिर मैं भी नहीं सोचूँगी कि तुम कौन हो??? तुम्हारा लक्ष्य क्या है????
सामने आओ या फिर यमपुरी जाने के लिए तैयार हो जाओ, कहते हुए उसने अपना हाथ उठाया ही था, कि तभी अचानक एक चेहरा सामने नजर आया, जिसे देखकर कायरा हतप्रद रह गई, और उसके मुंह से निकल पड़ा...
निशांत तुम??????
क्या वाकई तुम हो???? यकीन नहीं होता,आखिर क्या कमी रह गई तुम्हारी परवरिश में उन भले संतों की, और उस मठ ने तुम्हें कैसे इजाजत दे दी, ऐसा काम करने की.....
जो भी हो लेकिन गुनाह तो तुमसे भी हुआ हैं, और कहीं ना कहीं गलती मेरी भी है, मैं खुद को तो सजा दे ही दूंगी, लेकिन तुम्हें बक्श देना , सिर्फ यह सोचकर कि कभी मैंने तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाने का विचार किया था, उचित ना होगा।
तैयार हो जाओ, अपनी सजा के लिए.....
कहते हुए कायरा की उंगलियों ने हरकत दिखाई, और अचानक निशांत को एक हरी नीली रोशनी ने जकड़ लिया।
निशान झटपटाने लगा, और कहने लगा.... कायरा हां मैं निशांत हूं....जिसे मठ के लोगों ने सिर्फ इसलिए निकाल दिया, कि मेरे मन में पूजन के समय तुम्हारे प्रेम की छाया थी, मैं जानता हूं, तुम्हारे जितनी शक्ति मुझे बिना किसी अच्छे गुरु के प्राप्त नहीं हो सकती, और मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता, इसलिए मैंने इन काली शक्तियों का सहारा लिया।
मैं सफल हो भी जाता, यदि चारवी को मैंने शक्ति संतुलन के लिए उस हथियार में कैद न किया होता, लेकिन अफसोस कि तुमने मेरे सारे किए हुए पर पानी फेर दिया, और सारी मेहनत बेकार कर दी।
लेकिन कायरा तुम तो जानती हो, कि सांझ हो चुकी है, और अब काली शक्तियों का राज है, तुम्हारी शक्तियां भी सिर्फ दिन के उजालों में ही तुम्हारा पूर्ण साथ देगी, यह कहते हुए उसने एक झटके के साथ सारे बंधन को तोड़ दिए, और वो जोर जोर से अट्टहास करने लगा,
कायरा बड़े ही अंतर्द्वंद की स्थिति में थी, कि करे तो क्या करें????
चाहे युद्ध कैसा भी हो, सजा कितने से कितने खौफनाक प्राणी को क्यों ना दी जाए, लेकिन कायरा यह कदापि बर्दाश्त नहीं कर सकती थी, तिल मात्र भी किसी और बेकसूर प्राणी, यहां तक कि फूल पत्तियों को बेवजह या अतिरिक्त नुकसान पहुंचाये,
इसलिए उसने आते समय उस वातावरण को एक अदृश्य सुरक्षा कवच से ढक दिया था, जिससे किसी विकट स्थिति में प्रकृति पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े, वह पूर्ण सजग होकर निशांत को जवाब देने के लिए तत्पर थी।
कायरा के साथ उसकी अतिरिक्त शक्तियां चारवी और ना जाने कितने ही, जो अब तक उस अस्त्र से आजाद हो चुकी थी, उसके पक्ष में खड़ी रही,
विचार इस बात का था, कि वह निशांत जिसे कल तक कायरा कहीं ना कहीं अपने मनप्रीत के रूप में स्वीकार कर लिया था, और उसके प्रेम का अनुभव कहीं ना कहीं उसे गहराई तक स्पर्श कर चुका था।
लेकिन आज वही निशांत का सच इस प्रकार सामने आएगा, यह उसने सोचा ना था, और ऐसे समय में स्त्री मन का आहत होना स्वाभाविक होता है, शक्तियां प्रचुर होने के पश्चात भी यदि दिल कमजोर हो जाए तो, उसका प्रभाव शून्य हो जाता है।
और इसी का फायदा उठाकर निशांत ने अपनी विचित्र माया के प्रभाव से उसके मन से खेलना शुरू कर दिया, और कुछ क्षण के लिए कायरा जो शक्ति का भण्डार था, एक सामान्य स्त्री सी हो गई थी।
कायरा के मन में रह रह कर कभी यह विचार आता , कि वह एक तरफा निशांत के प्रेम में डूब जाए, और अपनी संपूर्ण शक्ति उसे सौंप सही रास्ते पर ले आए, उसके मन में यह विचार आने लगा कि अवश्य ही निशांत के मन में भी उसके लिए उतना ही प्रेम होगा,उतने ही अरमान होगें उसके लिए, जितने उसने संजोकर रखे हैं ।
और फिर आज सुबह ही तो उसने अपने बाबा से निशांत का परिचय दें मिलवाने का वादा भी किया था, उसे क्या पता था कि उस मठ का पुजारी निशांत अपना मार्ग भटक चुका है, और उसके सामने ऐसी शक्ति के साथ खड़ा है, जिसका दमन करना उसका एकमात्र उद्देश्य है।
तभी अचानक एक हल्की हवा के झोंके ने उसे होश में लाया, वास्तव में अब तक वहां पर कायरा के गुरु का आगमन हो चुका था, और उन्होंने निशांत की माया को खंडित कर दिया, जिसने कायरा को एक सामान्य स्त्री होने का बोध कुछ समय के लिए करवा दिया था।
त्याग, बलिदान ,परिवार सारी संभावनाएं और सारा छलावा तिल मात्र में राई के दाने की तरह बिखर गया, और कायरा पुनः एक शक्ति के रूप में प्रकट हुई ,और दहाड़ते हुए कहने लगी....
निशांत बेशक अभी मैंने तुम्हें भूलवश स्वीकार करने का विचार किया था, कभी भी यह नहीं सोचा था, कि हम दोनों की मुलाकात ऐसी विपरीत परिस्थिति में होगी, जिसके लिए तुम खुद जिम्मेदार होंगे,
तुमने यह साबित कर दिया कि शक्ति की लालसा में पुरुष खुद को मिटाने में कसर नहीं छोड़ता, तुमने उस मठ को छोड़ा, जिसका सानिध्य पाने के लिए ना जाने कितने वर्षों इंतजार करना पड़ता है, तुम इसलिए उसकी कीमत ना समझ पाए ,
क्योंकि तुम्हारा जन्म ही मठ के प्रमुख दलों में से एक के घर और तुम्हें आसानी से वह सब मिल गया, जिसके लिए कठोर तप करना पड़ता है, तब भी तुम उसका महत्व ना समझ सके, अच्छा हुआ तुम्हारा यह रूप समय रहते मेरे सामने आ गया,
अब तुम्हें सजा के लिए तत्पर हो जाना चाहिए, क्योंकि जिस काली शक्तियों के वश में पडकर तुमने इतने निरीह प्राणियों की बलि दी है, उसकी सजा तुम्हें मिलनी ही चाहिए।
कहते हुए कायरा ने अपने आज्ञा चक्र को संचालित किया, और देखते ही देखते तेज हरी और नीली किरणें निशांत को अपने घेरे में लेने लगी, उसकी चीखें उस वातावरण को अत्यंत भयावह बना रही थी,
लेकिन कायरा तो जैसे अपने दर्द को उसके अस्तित्व को मिटाकर ही शांत करना चाहती थी, और इसलिए उसने अपना अंतिम वार किया।
शेष अगले भाग में.....