आखिर क्या राज रहा होगा मौसी के मुस्कुराहट के पीछे का???????
भला मेरा साथ क्यों दिया मौसी ने?????? यही सब सवाल रह रह कर जयस के मन में गूंजते रहे, वह कहने को तो भरी महफिल में होता, लेकिन उसके मन में अब सिर्फ और सिर्फ उसकी मौसी की हंसी डर के रूप में परिवर्तित होने लगी, क्योंकि उसमें उसे कहीं ना कहीं अपनी गलती का एहसास होने लगा था,
जिस गरिमा को वह आज तक एक शब्द भी प्यार का ना कह सका, उसकी कमी अब उसे घर के हर कोने में खलने लगी, आखिर क्यों???????
इस बात को लेकर जयस के मन में इतना रोष था, कि वह किसी और के बारे में औरों की तरह सोचता भी तो नहीं था, और ना ही आज तक उसने गरिमा के अलावा किसी और के बारे में सोचा, फिर इतना क्रोध क्यों???????
क्या सिर्फ इसलिए कि गरिमा को उसके समाज और घर के लोग उससे कहीं ज्यादा चाहने लगे थे, उसका कुशल व्यवहार सबको आकर्षित कर तथा उसकी बहुत ज्यादा मिलनसार और देखभाल करने की प्रवृत्ति बुजुर्गों को घर में बांध कर रखती थी, अगर यही सब कारण था तो इसमें भला बुराई ही क्या थी??
इन सब बातों में भला क्रोधित होने लायक तो कुछ नहीं था, और वह भी इतना क्रोध की गरिमा को कुएं में धक्का देकर उसने मार दिया, और एक बार भी पलट कर ना देखा, आखिर क्या बिगाड़ा था उस बेचारी गरिमा ने जयस का?????
आखिर क्या कसूर था उसका???????
यदि वह जयस को कभी कबार उसके बुरे दोस्तों के साथ मिलने से रोकती, कभी मजाक में उसे छेड़ देती है, कभी कबार छोटी-छोटी बातों पर छींटाकशी हो जाती, या फिर पारिवारिक कार्यों में उलझ कर जयस को थोड़ा कम समय दे पाती, तो यह तो कोई बहुत बड़ा गुनाह नहीं हुआ, आखिर परिवार भी तो जयस का ही था, फिर क्यों उसने ऐसा किया.......
इन सवालों का जवाब उस जयस को रह रहकर खाए जा रहा था, क्योंकि जाने अनजाने में वह एक ऐसी भूल कर आया था, जिसे सुधार कर पाना असंभव था, क्योंकि एक बार उस रास्ते पर जाने वाला पुनः लौटकर नहीं आता, शायद इसलिए मानवीय काया का महत्व उसके जाने के बाद उसके कर्म और उसकी यादों के रूप में सही जान पड़ता है, और शायद इसलिए जयस जिससे भी मिलता, एक झूठा जवाब दे कर थक चुका था,
अब जयस को अपने आप पर ही क्रोध आने लगा था, वह धीरे-धीरे उस चरम सीमा पर पहुंच चुका था, जहां वह अपना गुनाह कबूल कर ही लेता, लेकिन किसके सामने???? क्योंकि उसकी रोनी सूरत और घबराहट वाली स्थिति को देखकर मिलने वाली सहानुभूति कहीं बुरे व्यवहार में बदल ना जाए, इस बात का भी उसे डर था इसलिए वह किसी को कुछ बता नहीं पा रहा था।
ऐसा नहीं कि घर वालों को कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन सभी उस नादान और मासूम बालक की चिंता में खोए हुए थे, जिसके आगे का जीवन अब उसे बिना मां के ही गुजारना होगा, वह तो सिर्फ लोगों की और यह देखकर ताकते रहता कि शायद कोई उसे उसकी मां से मिलवा दे, बाहर पीछे से आने वाली आवाज को एक आशा भरी निगाह लेकर पलट कर देखता, ताकि शायद कही उसकी मां लौट आई, और गोद में उठाकर उसे बहुत प्यार करने लगी,
लेकिन अपनी मां को ना देख वह मासूम भरी निगाह से अपनी दादी और बुआ की गोद में जा बैठ जाता, उसके आंसू कभी दादी तो कभी बुआ की आंखों से द्रवित भाव से झलकते हुए दिखते,
बिल्कुल गरिमा की तरह मासूम और समझदार वह बच्चा अपने दर्द को भुला दादी और बुआ के आंसू पोंछता, जिसका दर्द दोगुना होकर देखने वालों के दिल में पैदा करता, लेकिन जयस के पिता जो गरिमा को बेटी से भी ज्यादा मानते थे , और जयज की प्रवृत्ति को भी भलीभांति जानते थे, कहीं ना कहीं अपने बेटे को समझ ही चुके थे, लेकिन कुछ कह नहीं पा रहे थे,
और बिना किसी को बताए सिर्फ यह कहकर घर से निकल पड़े की गरिमा के घर वालों को भी या खबर देना अनिवार्य है, और इसके लिए मुझे स्वयं को ही जाना होगा, यह कहकर वह घर से निकल गए, और जयस के बताए अनुसार वह सीधे उस तरफ निकल पड़े, जहां उन्हें थोड़ी संभावना जान पड़ी।
जयस के पिताजी ने मन ही मन उसे पुकारा, जिसकी कल्पना जीते जी इंसान कभी भी नहीं करता, जिसके बारे में सोच अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते, क्योंकि इन्हें अब भी पूर्ण विश्वास था, अपनी चहेती शाली अर्थात जयस की मौसी जो की अब इस दुनिया में नही रही, और हुआ भी ठीक ऐसे ही एक सोन चिरैया आकर उनके हाथों पर बैठ गई, और फिर अचानक आगे आगे उड़कर चलने लगी।
जयस के पिता समझ चुके थे, और विधाता के इशारों को समझ उसके पीछे पीछे चलने लगे, काफी दूर चलने के बाद वह सोन चिरैया एक टूटे-फूटे घर के ऊपर जाकर बैठ गई......
सांझ हो चली थी, लेकिन जलते हुए दिए कि हल्की-फुल्की रोशनी अंधेरे को मात देती नजर आ रही थी, और यहां एक बुजुर्ग दंपति की आवाज उस घर से आ रही थी, बड़ी हिम्मत बांध उन्होंने आवाज लगाई, कोई है..... कोई है......
जो इस राहगीर की मदद कर सकता है, कहकर उन्होंने आवाज दी, जिसे सुन एक बूढ़ा विनम्रता पूर्वक बाहर आया, और कहने लगा, सभी राहगीर है स्वामी , भला यहां किसका रैन बसेरा है, जब तक समझ और जीवन है, मिलकर सफर तय करेंगे, और बुलावा आने पर या मंजिल मिल जाने पर फिर लौट जाना है।
आइए संध्या समय अतिथि का आगमन अत्यंत फल कारी होता है, बड़ी खुशी होगी यदि आप मेरी कुटिया में चरण रखे, कहकर उन्होंने बड़े सत्कार पूर्वक उन्हें भीतर बुलाया, और अपनी पत्नी और बहू को जलपान देने के लिए कहा।
इन सब के पश्चात उस बुजुर्ग के धार्मिक विचार और सेवा भावना को देख उन्हें बड़ी संतुष्टि मिली, उन्हें तो जैसे ऐसे लगने लगा कि वह किसी संत दरबार में आ गए, क्योंकि ऐसा अनोखा आदर सत्कार और ज्ञान की बातें किसी सत्संग में ही सुनने को मिलती थी, उस बुजुर्ग ने आदर सत्कार के साथ उस झोपड़ी के आंगन में चंद उजाली रात में उन्हें खाट पर बैठाया,
उस समय बहने वाली मंद शीतल हवा ने जैसे उनका मन मोह लिया था, वह बुजुर्ग आदर के साथ पूछने लगा, श्रीमान कृपया इस उम्र में इस कठोर सफर का कारण क्या आप बता सकते हो???? आखिर क्या इच्छा लेकर आप इस घने वन में सफर करने निकले हो????
क्या जयस के पिताजी उस बुजुर्ग को अपने मन की व्यथा बता पाएंगे??????
शेष अगले भाग में.......