अपने आप को आईने में निहारती कायरा अब धीरे-धीरे उस उम्र की दहलीज पर दस्तक दे रही थी, जब भावनाओं पर काबू कर पाना और वह भी तब जब शक्तियां प्रचुर मात्रा में अंतर्मन और शरीर के साथ उपस्थित हो, बड़ा ही मुश्किल होता है और फिर तो एलिना जिसे ईश्वर ने बड़ी ही खूबसूरती से बनाया हो, इतनी सुंदर कि जिसे देख चांद भी शरमा जाए, ऐसी खूबसूरती की पत्थर पर भी हाथ रखे तो वह पिघलने लगे।
आज वह अपने आपको आईने में देखे जा रही थी, शायद इसलिए क्योंकि उसे आज पहली बार नवयुवक निशांत जो उत्तरी पहाड़ी पर ऋषि समुदाय का एक सदस्य है, किसी कारणवश कायरा से टकरा गया, और अनायास ही उसके हाथ की हरकतों ने कायरा के अंतर्मन को छेड़ दिया, उसकी बातें कहीं भक्ति तो कहीं प्रेम में डूबी हुई कुछ शरारतों से भरी हुई ज्यादा थी ,और हो भी क्यों ना वह दोनों ही लगभग समान उम्र के और समान रूप से शक्ति वाले थे , तभी तो आकर्षण वश इत्तेफाक नहीं था, शायद यह परीक्षा थी उन दोनों की या यूं कहे गुरु जी द्वारा रचा गया एक व्यू जिससे इन दोनों को बचकर निकलना अनिवार्य था, अन्यथा शायद उन्हें दी गई समस्त शक्तियां छीन ली जाती और उनका जीवन एक आम मानव से भी कई गया गुजरा हो जाता,
कायरा समझ ना पाई बहुत समय तक, लगभग एक प्रहर उसने अपने आप को आईने में निहारा होगा, और निशांत की हर बात को अंग प्रत्यंग में महसूस करने का प्रयत्न कर रही थी , कि तभी अचानक उसका ध्यान अपनी ओर एकटक निहारती हुई किसी निगाह पर गया, हैसल ऐसे क्यों देख रही हो????क्या बात है????
कुछ नहीं, कायरा मुझे लगा कुछ समय तुम्हें एकांत देना चाहिए, इसलिए तुम्हारे अंतर्मन से बाहर आ गई, सोचा तुम्हें एकांत दूं, लेकिन यह क्या समुद्र में एक कंकड़ गिरने से इतना तूफान नहीं आता,
कायरा तुम कोई सामान्य लड़की नहीं हो, अभी तुम खुद को देख पाने की स्थिति में नजर नहीं आती, मुझे लगता है तुम्हें स्वयं सीखना होगा, वरना शक्ति विस्फोटित होकर बिखर जाएगी, बस इतना ही कह सकती हूं, क्योंकि ज्यादा कुछ बताने की शक्ति मुझे हासिल नहीं है, कहते हुए हैसल हवा में विलीन हो गई और इसके साथ ही कायरा के माथे का पसीना अचानक झलकने लगा, जिसका उसे होश ही ना था ,
उसे एहसास हुआ अपने आप के होने का और आईने में उसने जैसे उस कायरा को सामने दिखाया जो वह वास्तव में थी, वह समझ गई कि परिपक्व स्थिति में पहुंचने से पहले कल्पना भी मात्र उसके लिए और समाज के लिए खतरनाक हो सकती है, यह सोचकर वह तेजी से घर से बाहर निकली और उसके पीछे वह मेमना जो भेड़ हो गया था, वह भी उसका अनुसरण करते हुए उसके पीछे हो चला।
कायरा ने नदी के तट पर जाकर उस पार जंगल को ध्यान से देखा और कुछ तलाशती हुई आंखें बंद कर जैसे किसी को याद करने लगी, ऐसा पहली बार हुआ, जब कायरा ने स्वयं किसी सत्ता को पुकारा था, लेकिन तब भी वह ना जाने क्यों रह रहकर निशांत के आलिंगन के धारा प्रवाह में बह जाती, इधर जैसे नदी का कल कल उसके कानों में गूंजता उसका अंतर मन उतना ही हिलोरे लेने लगता और ना चाहते हुए भी वह एक बार फिर उस घटना को याद करके लगी,
जब वह तड़के सुबह उठकर पर्वत के उत्तरी भाग की और जैसे उसका पूर्ववत नियम था, साधना हेतु पहुंची, तब अचानक उस स्थान की सुगंधित हवाएं और मधुमक्खी के शहद की भीनी- भीनी खुशबू जो उस वातावरण को और भी आनंदित बना देती थी, कायरा उसमें खोने लगी, ऐसा लगता जैसे आज के लिए नियति ने कुछ और ही लिखा था, कायरा तब भी सारे वातावरण को झूठलाते हुए शांतचित्त होने का प्रयास करने लगी और एक पेड़ के नीचे बैठी ही थी कि अचानक चरमराते हुए एक लकड़ी का टुकड़ा उसकी और गिरने लगा, और तभी किसी नवयुवक ने उसे झटके से अपनी ओर खींच उस स्थान से हटा दिया,
कायरा समझ ना पाई कि आखिर कब और कैसे यह हुआ??????? बस उसे इतना ही एहसास हुआ कि किसी ने उसे तेजी से खींचकर अपनी बाहों में जकड़ लिया हो, उस नवयुवक ने कायरा की कमर में हाथ डाल उसे इस तरह पकड़ा था जैसे कोई बच्चा अपने कीमती सामान को पकड़ता हो।
ऐसा अद्भुत स्पर्श कायरा ने पहली बार अनुभव किया था, वह पूरी तरह उस नवयुवक से चिपकी हुई थी और वह नवयुवक उसे डरा हुआ जान उसके कान में धीरे से कह रहा था, कुछ नहीं........ कुछ नहीं........ बस एक छोटी सी डाल थी, लेकिन इसी बीच उसके स्वर के साथ निकलने वाली गर्म हवाएं जो कायरा के कानों को छुती हुई उसके गर्दन तक पहुंच रही थी, कायरा को एक अलग ही अहसास करा रही थी, जो कायरा का कायनात ए हुस्न उस नवयुवक की बाहों में था ,और अचानक वह भी ऐसा स्पर्श पाकर भावविभोर हो उठा, और ऐसा शायद उस स्थान पर चलने वाली हवाओं का असर था।
वह अचानक कायरा के बालों को सहलाने लगा और धीरे-धीरे उसकी उंगलियां हरकत कर कायरा की गर्दन तक पहुंच गई, और दूसरा हाथ कायरा की कमर में अपनी मजबूत पकड़ बना रहा था, उम्र का ऐसा पड़ाव दुर्घटना से उभरने का माहौल और प्रथम स्पर्श दोनों को भय और आनंद की एक अलग ही अनुभूति दे रहा था,
निशांत धीरे-धीरे कमर से अब हाथ को खिसखाते हुए घुमावदार तरीके से कायरा के नाभि तक ले आया और अपने होठों से कायरा के माथे को चूमने लगा, अचानक कायरा ना जाने कैसे और कब उस स्पर्श में खोने लगी, क्योंकि वह भी तो थी एक मानव की ही काया जिसमें अनुभव ,प्यार ,शरारत सब कुछ था और वो कुछ सोच पाती, इससे पहले ही निशांत झुककर उस संगमरमर और मखमल सी गोरी चिकनी गर्दन को सहलाते हुए माथे का चुंबन गालों से गले तक उतर आया, कि तभी अचानक उस भेड़ की आवाज में दोनों को सतर्क होने का मौका दिया और दोनों अलग-अलग हो गए, लेकिन उस आनंद की अनुभूति और वह आलिंगन शायद उन दोनों के लिए ही पूरे जीवन भुलाने लायक नहीं था, दोनों ने ही घबरा कर एक दूसरे की तरफ देखा और पीछे हट गए।
कायरा ने इसके पहले भी निशांत को देखा था और सुना भी था निशांत के बारे में, लेकिन आज इस तरह से मुलाकात होगी यह कभी ना सोचा था .......
शेष अगले भाग में............