आखिर कब तक गीत संगीत से अपना दिल बहलाती रहेगी, अब उम्र हो चली है उसकी, उसके भी कुछ अरमान होंगे, हर लडकी के शादी को लेकर बहुत से सपने होते हैं,
भांजी है आपकी...........
आपकी भी जिम्मेदारी है कनक के लिए, और फिर आज नहीं तो कल तो कनक का ब्याह करोगे ना।
और जब ब्याह करना ही है, तो देरी क्यों करना????
अगर कनक का ब्याह सही समय पर हो जाए तो ठिक रहेगा, वैसे भी कोई भी काम सही समय में हो जाए तो अच्छा है, दिनेश की और देखते हुए बड़ी सहज और सजगता से उसकी पत्नी पद्मिनी बोले जा रही थी, वह अपने एक एक शब्द की प्रतिक्रिया और उसके परिणाम के रूप में दिनेश के चेहरे पर उभरे हाव भाव स्पष्ट देख रही थी, और दिनेश को कनक के बारे में कही जा रही थी,
और पद्मिनी को लग रहा था की उसकी बातों का असर दिनेश पर होने लगा हैं, और पद्मिनी को दिनेश पर यकिन होने लगा, इसलिए वह अब बिना संकोच के अपनी बातें दिनेश के सामने रखते जा रही थी, लेकिन इसी बीच उसे दिनेश के हाव भाव से यह आह्वान हुआ कि दिनेश एक चतुर और कुशल व्यापारी है, और वह अपने चेहरे के हाव-भाव अपने अनुसार बनाए रखने में माहिर है।
वह सिर्फ मात्र किसी और की बात सुनकर प्रभावित होने वाला नहीं है, फिर चाहे वह पद्मिनी ही क्यों ना हों, सामने वाले को यह यकीन दिला देता है, कि उसकी बातों का फर्क खुद पर बखूबी पड़ रहा है, जिससे वह सामने वाले की पूरी बात को अच्छी तरह सुनकर उसकी मंशा जान लेने में सक्षम हो जाता है, वह जितना कुशल अपने व्यापार में था, उतना ही वह समझदार भी था,
पद्मिनी को पता भी ना चलता है कि उसने दिनेश को नहीं अपितु दिनेश ने उन्हें फंसाया है, और यह गुण उसने अपनी बहन और जीजाजी से व्यापार के शुरुआती दिनों में ही सीख लिया था, क्योंकि दिनेश भली भांति जानता था कि व्यापार चलाने के लिए इस गुण का होना अत्यंत अनिवार्य है।
यह सोचते ही अचानक दिनेश की पत्नी चुप हो गई, लेकिन दिनेश को देख पद्मिनी को इन सब बातों का कोई भी फायदा नहीं दिखा, वह तो सब कुछ किसी रटे हुए तोते के समान एक तार में सब कुछ सुनाती सी चली गई, उसे अभी तक लग रहा था कि दिनेश उसके चुंगल में आ जायेगा, लेकिन अफसोस दिनेश ने केवल उसकी बातों पर महज मुस्कुराकर और पद्मिनी से बोला सही और विचार करने योग्य बात कहीं हैं तुमने।
दिनेश ने अपनी पत्नी पद्मिनी से कहा,
चलो......यह काम मैं तुमको देता हूं, तुम तो देखती हो कि मैं कितना व्यस्त रहता हूं अपने काम में, और मेरे पास तो समय रहता नहीं, और फिर तुमसे ज्यादा हितैषी मुझे कोई दूसरा कनक का जान नहीं पड़ता, आखिर तुम उसकी सखी और मामी भी हो।
बस यह याद रखना कि जो भी सलाह अगली बार मुझे दोंगी या जो भी विचार करोंगी, जरा सोच समझ कर करना, क्योंकि जितनी जिम्मेदारी मेरी तुम्हारे प्रति है, उससे भी कहीं ज्यादा अधिक जिम्मेदारी और जवाबदारी है मेरे ऊपर मेरी भांजी कनक की.........
जब मैं बेकार था, दर-दर की ठोकरे खा रहा था, और मेरे पास कोई काम धंधा नहीं था, ऐसे समय में मुझे तिल से ताज तक का सफ़र दीदी और जीजाजी ने ही करना सिखाया है, और फ़िर मेरे जीजा जी ने जो अथाह संपत्ति कमाई है, जिसकी सही मालकिन केवल और केवल कनक और मेरी बहन ही है।
उसके आधे से आधा हिस्सा छोड़ अगर एक प्रतिशत भी मिल जाए, तब भी अपना जीवन धन्य समझना।
दिनेश कहने लगा कि मैंने संदूक में रखे दस्तावेजों की स्थिति को देखकर ही समझ गया था कि अवश्य ही किसी ने उन्हें खोलकर पढ़ा है, और अब तुम्हारी बातें सुनकर तो मुझे साफ साफ समझ भी आ गया कि उन दस्तावेजों को तुम्हारे अलावा किसी और ने नही पढ़ा हैं,
स्त्री मन हैं ही ऐसा, स्वाभाविक हैं और किसी भी वस्तु और स्थिति पर तुम्हारा बराबरी का अधिकार है, जो कुछ मेरा हैं, वो सब तुम्हारा ही तो हैं,
मैं यह नहीं कहता कि तुम ने दस्तावेज क्यों पढ़े, लेकिन ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद मुझे तुमसे ना थी, अब इस बात को याद रखना कि दोबारा लालच और जिम्मेदारियों से भागने का दुस्साहस ना करें, कहते हुए दिनेश की आवाज अचानक पद्मिनी के लिए सख्त हो गई, जिसमें उसका क्रोध साफ झलकता था, यह सुन कनक की मामी को अपनी गलती का एहसास हुआ, और समय उचित ना देख उसने ठीक है कह कर अपनी गलती मानते हुए शांत हो जाने में ही अपनी भलाई समझी।
दिनेश को पहले ही बहुत देरी हो चुकी थी, इसलिए दिनेश ने ठीक है कहकर बिना देर किए वहां से निकल गया, और इसके पीछे एक और कारण भी था कि वह किसी भी प्रकार का प्रतिवाद या कलह घर में नहीं चाहता था,
लेकिन भला स्त्री हट कहां मानने वाला था, औरत ही औरत की दुश्मन है वाली थ्योरी पितृसत्ता की सोची समझी चाल है, ताकि महिलाएं एकजुट होकर गैर बराबरी के इस ढांचे को चुनौती न दे पाएं, दो सखियां चाहे वे देवरानी जेठानी या ननद भाभी हो, मामी भांजी हो, या सांस बहु का रिश्ता हो, मन में भी कहीं न कहीं एक दूसरे के लिए इर्ष्या भाव पनपता रहता है, पहले हर स्त्री को एक दूसरे को समझने की जरूरत है, एक दूसरे को मान देने, साथ और सहारा देने की जरूरत है, चाहे दोस्ती हो, परिवार हो या समाज , स्त्री जब दूसरी स्त्री का सम्मान करना सीख जाएगी तब विभक्त परिवार एक होंगे, अखंड परिवार की शुरुआत होगी, लेकिन पद्मिनी तो कनक से ईर्ष्या करती थी, उसे कहां ये सब बाते समझ आने वाले थीं।
पद्मिनी इतनी आसानी से कहां सुधरने वाली थी, इसलिए पद्मिनी बार-बार अपना प्रयास करती रहती, और हर बार उसके हाथ नाकामयाबी लगती, लेकिन जब मन में लालच भरा हो तब उसे भला कहां दिनेश की बातें समझ आती, उसे तो सिर्फ आधा हिस्सा जो कनक के नाम पर था, वही नजर आ रहा था, वह किसी भी तरह कनक से उसे पाना चाहती थी, अब उसका लालच, लालच तक सीमित न रहकर एक जुनून हो गया था, वह कुछ भी और कैसे भी करके सिर्फ कनक के जिंदगी में तूफ़ान पैदा करना चाहती थी।
आखिर पद्मिनी का अगला कदम क्या था??????
और वह कनक के जिंदगी में क्या तूफान लाना चाहती थी????
शेष अगले भाग में?????