चटकती सुनहरी धूप, मंद हवाएं और झरने का बहता कल कल पानी, फूलों की महक और पक्षियों का स्वर और उस पर तितलियों का एक फूल से दूसरे फूल पर जाकर बैठना, साथ ही भौरों का गुंजन ,सब कुछ उस धरती पर उगी हुई मध्यम हरी घास, जो हवा के वेग से किसी शराबी की तरह गोते लगा रही थी।
बड़ा ही आनंद ले रही थी, चाह कर भी कोई उस वातावरण से बिना आनंद की अनुभूति लिए हुए अपने मन को चुरा ना सकता था।
उन सबके बीच अपने "कुंची" मेमने के साथ खेलती हुई छोटी सी लड़की, इधर उधर भागती, कभी बरबस ही गिर जाती, तो वह मेमना दौड़ कर उसके पास आ जाता ,और जैसे ही वह खड़ी होती, वह पुनः भागता, जैसे उन दोनों के बीच पकड़म पकड़ाई का खेल चल रहा हो।
इन सब के बीच अचानक हवा का एक झोंका अति सुगंधित विवेक के साथ गुजरा, जिसकी खुशबू ने मेमने और उस बच्चे के कदम रोक दिए।
दोनों की आंखों में चमक आ गई, और उस और दोनों की नजर गई, जिस और से खुशबू आ रही थी ,लेकिन अफसोस करते क्या....
वे सिर्फ खुशबू से ही आनंद लेने को विवश थे, क्योंकि शहद का छत्ता उन दोनों की पहुंच से दूर था, फिर अचानक जाने क्या सूझा, एक तितली ने आकर उस बच्ची की नाक को छूती हुई विपरीत दिशा में उड़ गई , जिससे बच्ची का ध्यान भटक गया।
वह अपने मेमने से कहने लगी,अरे वाह देखो तो कुंची, कितनी प्यारी तितली है, मेमने ने भी किसी दोस्त की तरह गर्दन हिलाकर पूर्व सहमति दी , और फिर वे दोनों उस तितली के पीछे भागने लगे।
अब इस खेल में दो की जगह तीन प्रतिभागी थे, उसका गिरना पडना और उस तितली का भी रुक रुक कर आगे बढ़ना, और मेमने के रुक जाने पर फिर लौट आना, सब कुछ बड़ा ही मनभावन था।
लेकिन तभी अचानक वह बच्ची रुक गई, और उसका अनुसरण करते हुए वह मेमना भी थके हुए की तरह जबरन अपने स्थान पर रुक गया, और उसी के पास आकर बैठ गया, वह तितली उड़ती हुई फिर अचानक छुपी, और आकर मेमने की पीठ पर बैठ गई,
और इसी समय का लाभ उठाकर उस मेमने के पट्टे से उस बच्ची ने उस तितली को अपने कब्जे में ले लिया, लेकिन तभी एक स्वर सा सुनाई दिया...
छोड़ दो.... उसे छोड़ दो..... और दोनों का ध्यान आवाज की दिशा में गया।
उन्होंने देखा तितलियों का एक झुंड उनके सामने आकर खड़ा था, और उस झुंड का प्रतिनिधित्व करने वाली तितली की ओर से आवाज आ रही थी, कि तभी मारे डर के बच्ची ने हाथ खोल दिया, और हाथ की तितली उड़ कर सामने आ खड़ी हुई ।
मेमना डर में था, और बच्ची मुस्कुराहट के साथ तितलियों को देख रही थी, और बोली बहुत खेल हुआ थोड़ा आराम कर लेती हूं, इसलिए पकड़ा था, लेकिन कोई बात नहीं कल फिर मिलेंगे, कहती हुई मंद मुस्कान के साथ, बिना किसी आश्चर्य के उस लड़की ने जवाब दिया।
अचानक सभी तितलियां मानव रूप में प्रकट हुई,
ओह्ह्ह सुनहरी परियां, मुझे पता था कि कायरा के साथ जरूर खेलने आओगी, कहा था मुझे किसी ने, लेकिन किसने कहा था, मुझे कुंची......
अरे यह सब अपनी सहेलियां है, प्रकृति में कोई किसी का दुश्मन नहीं,
डरता क्यों है??? कायरा है ना तेरे साथ, और फिर यह तो परियां है, राक्षस थोड़ी है, कहते हुए उसने उस मेमने को अपने गोद में उठा लिया, कि तभी बिना समय गवाएं अच्छा ठीक है कायरा ,फिर मिलेंगे, कहते हुए तितलियां ने कायरा और कुंची का एक चक्कर लगाया और अचानक गायब हो गई।
अब यह तो जैसे प्रतिदिन की बात हो चली थी, एक दिन की बात है , कि कायरा कुंची का पीछा कर रही थी, कि तभी अचानक उसका पैर फिसला और वह धड़ाम से गिर गई, और उसके सामने के दोनों दांत टूट गए, वह रोती हुई अपने बाबा के पास गई और कुंची की शिकायत करने लग गई ,
इसने मुझे गिरा दिया, और बहुत भला बुरा कहने लगी, जिससे कुंची बहुत दुखी हुआ, लेकिन अपनी गलती मान दुबक कर अपराध बोध से कायरा के पास ही खड़ा रहा।
तब बाबा ने उसे समझाइश दी, कि ऐसा सिर्फ पर पैर फिसलने के कारण हुआ, इसमें किसी का कोई दोष नहीं है, कुंची ने तो बेचारा तुम्हारे साथ खेल रहा था, यह सुन कुंची भारी खुश हुआ, और एलिना ने भी उसे खुशी-खुशी गले लगा लिया,
पूरी रात कुंची, कायरा के ही पास ही सोया, और रह रहकर कायरा को जैसे सतर्क करता रहा।
सुबह उठकर कायरा के आश्चर्य का ठिकाना न था, क्योंकि उसके दोनों टूटे दांत ठीक हो चुके थे, कुंची पहले से ज्यादा हष्ट पुष्ट और झबरीला हो गया था, और उसकी आंखों में चमक आ गई थी ,और कायरा भी पहले से ज्यादा सुंदर जान पड़ती थी, उसके बाल पहले से ज्यादा लंबे कमर से भी नीचे तक आ चुके थे,
वह बहुत खुश थी, और वह अपने पिता को बताने लगी, कि देर रात उसने तितलियों की रोशनी को देखा, और ऐसा सब हुआ।
पिता भी चमत्कार देखकर खुश थे, लेकिन कुछ ना बोले, एक दिन पिता किसी सुनहरी फूल की बेला को बांधने का प्रयास कर रहे थे, कायरा के पूछने पर उन्होंने बताया कि अगर बेला को बांधकर ना रखा जाए, तो वह मर जाएगी, उन्हें वक्त नहीं है, लेकिन यह जिम्मेदारी वह कायरा को सौंपकर चले गए।
उन्होंने कायरा से कहा था कि, रस्सी ढूंढ कर उसे ठीक से बांध देना, इधर थोड़े ही समय में कुंची खेलने की जिद करने लगा, और रस्सी ढूंढने का समय ही ना मिला, पर जाते-जाते कायरा की नज़र उस फूल की बेला पर गई ।
उस बच्ची को कुछ न सूझा और उसमें अनायास ही बचपने में आकर अपने दो टूटे हुए बालों से उस बेला को बांधने का प्रयास किया, और सफल भी हो गई और खेल खेलने चली गई।
लेकिन शायद यही उसका दुर्भाग्य था, वास्तव में उस मरती हुई बेला को कायरा ने अपना जीवन सारांश दे दिया था, वह नहीं जानती थी कि मानव जीवन में अपने बालों में वह ताकत होती हैं, कि अपने ही समतुल्य दूसरे प्राणी को खड़ा कर दिया जाए।
महज एक दिन में ही वह बेला हरी-भरी होकर बड़े-बड़े फूलों से लद गई।
सुबह पिताजी ने जैसे ही उससे फूल तोड़ना चाहा तो, अचानक तेज रोने की आवाज भीतर से आई, और कायरा चिखती हुई बाहर आ गई, पिता ने पेड़ में हुए परिवर्तन को देखा ही था, लेकिन उस में बंधे हुए सुनहरे और मजबूत वालों पर भी ध्यान दिया और सारी बात समझ गए।
उनके लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी हो चुकी थी, क्योंकि अब उस लता और कायरा में भारी संपर्क स्थापित हो चुका था,
उस लता को यदि कोई हानि पहुंचाता, या जो भी उससे छेड़छाड़ करता, उसका अनुभव कायरा के साथ होता, शायद यह उसकी सबसे बड़ी भूल थी, अब ऐसे समय में कैसे भी लता को पूर्ण रूप से सुरक्षित रख पाना अनिवार्य हो गया था।
पिता ने उसे मजाक में ही सही लेकिन सुरक्षा के तौर एक बाड़े के भीतर सुरक्षित कर दिया, लेकिन यह कायरा सुरक्षित नहीं था, क्योंकि किसी जादूगर की जान तोते में होती है, ठीक वैसे ही वह बेला अब कायरा के लिए मुसीबत बन चुकी थी, जिस से छुटकारा पाना बहुत अनिवार्य हो गया था।
आखिर कायरा कैसे मिलेगा छुटकारा????
शेष अगले भाग में......