ये घमंडी इंसान या तो तू पागल है, या फिर हद से ज्यादा जिद्दी????क्या तुझे पता हैं तु क्या करने जा रहा है?????तू जिसे बला कहता है, वह कोई बला नहीं, स्वयं प्रकृति का हिस्सा है, उसे छेड़ पाना संभव नहीं, और खासकर किसी सामान्य आदम जात के लिए तो बिल्कुल नहीं, और फिर मगरूर जालिम तू तो सब कुछ पहले से ही जानता है उसकी शक्ति को.......
भला फिर क्यों दर-दर भटकता है, आखिर क्या दुश्मनी है तेरी उससे??????
जरा ठहर..... मुझे उसके बजाय पहले तेरी जानकारी निकालना होगा, इतना कहकर तांत्रिक ने आंखें बंद की ही थी कि अचानक आलोक चीख पड़ा.....
मैं यहां मदद मांगने आया था, अपनी जन्म कुंडली बनाने नहीं, मुझे क्या पता था कि मैं किसी राह चलते तांत्रिक के पास आ गया, जो कुछ भी नहीं कर सकते, सुना तो बहुत कुछ था लेकिन अब समझ में आया कि सब कुछ बेकार था, यहां तो उल्टा मेरी ही जन्म कुंडली निकालने बैठ गए,
हां मेरी दुश्मनी है उससे, आलोक की बातें सुन तांत्रिक को बहुत गुस्सा आया, लेकिन उसमें धैर्य भी था, वरना इस गुस्ताखी की सजा में वह पल भर में आलोक के चितड़े चितड़े आसमान में बिखरने की ताकत रखता था।
लेकिन तांत्रिक इस बात से उत्सुक था कि आखिर क्या कारण है कि किसी सच्ची ताकत से इसकी दुश्मनी है ?????
जो खुद कभी किसी को परेशान नहीं कर सकते, यह सोच वह आलोक की ओर देखकर कहने लगा....
हां चल बता, अगर सही कारण होगा तो तेरी मदद जरूर की जाएगी, लेकिन जहां तक मैं जानता हूं, तू कभी सही नहीं हो सकता, चल बोल तुझे भी मौका देता हूं,
आलोक कहने लगा....... सब कुछ ठीक चल रहा था मेरा, अच्छा खासा व्यापार था, जिसे मैंने पिछले चार सालों की मेहनत से बनाया, मन लगाकर काम करता, मैंने किसी का कोई दिल नहीं दुखाया, कभी किसी के काम में कोई हस्तक्षेप नहीं किया, भला फिर क्यों मुझे ही यह अचानक परेशान करने आ गई, क्या बिगाड़ा मैंने उसका?????
अच्छा सच में क्या यही है पूरा सच ????देख तू जहां खड़ा है, उस बात का विचार कर जिसके साए में जिंदा मुर्दा और यहां तक कि अजन्मे का भी हिसाब चुका नहीं,
कहीं तू उससे झूठ तो नहीं बोल रहा.....
नहीं भला मैं क्यों झूठ बोलूंगा??? सकपकाते हुए आलोक कहने लगा, मेरा इस शहर में कोई दुश्मन भी नहीं,
तांत्रिक मुस्कुराते हुए, हां बिल्कुल सही......
इस शहर में तेरी शख्सियत ही अलग है, इस शहर के लिए तो अनजान हैं, लेकिन मेरे लिए नहीं, अपना सच कहेगा या मैं कहूं..........
आलोक जिसे अभी तक मामूली तांत्रिक समझकर ऐसी बातें कर रहा था, अचानक वह गंभीर होने लगा, उसके चेहरे पर ना जाने क्यों हल्का-हल्का डर नजर आ रहा था, तभी उसके साथ आया हुआ शख्स अचानक उसकी सिफारिश में कहने लगा, मैं अच्छे से जानता हूं इन्हें.... इनका कोई दोष नहीं है, फिर भी ना जाने क्यों किस परेशानी से परेशान है ये,
कोई इन्हें जैसे जानबूझकर परेशान कर रहा है, इसलिए मैंने इन्हे आपके पास मदद के लिए लाया हूं,
तांत्रिक शांत हो जाओ सुदाम....... तुम्हारा दोष नहीं, वास्तव में तुम जिस शख्स को जानते हो, तुम्हारे विचार से सही है, अरे तुम क्या, इसे तो देख कर कोई भी इसकी गवाही दे देगा, लेकिन यह कितना खुंखार हैं, इसकी पिछली जिंदगी के जानकार ही बता सकते हैं,
क्यों आलोक सही कहा ना???? आलोक सकपकाते हुए,
यह क्या मजाक है सुदाम ??????यह कहां ले आए मुझे??
लेकिन सुदाम को भी पूरा विश्वास था, और वह बरसों से तांत्रिक बाबा को जानता था, इसलिए उनकी बात को भी नकार नहीं सकता,
अचानक गंभीर होकर बोले ठहरो..... मैं बात कर रहा हूं,
सुदाम कहने लगा, बाबा मैं कुछ समझा नहीं, इतने में आलोक गुस्से में आकर, तो ठीक है, फिर समझो समझाओ, मैं चलता हूं, कहने को जैसे ही पलट कर चलने को हुआ, उस तांत्रिक ने कुछ अभिमंत्रित सरसों के दाने आलोक की ओर फेंके और वही आलोक निढाल होकर बैठ गया।
तांत्रिक कहने लगा, बेवकूफ समझ रखा है हमें.........
और पूरी दुनिया को बताना भी है, सच्चाई से भागता है काफिर, लेकिन सच और बीता हुआ कल वह आंधी है जो जब पलट कर आता है तो किसी को नहीं छोड़ता, तुझे क्या लगा था ढोंगी कि तु नए शहर में आकर इस नए चेहरे के साथ अपने पुराने पाप छुपा लेगा।,
सुदाम तू आया नहीं, तुझे बुलाया गया है, या यू कहे तुझे भेजा गया है मेरे पास, तुझे अपनी बहन का रिश्ता इस पापी से करवाने का ख्याल है, तो सुन इस का काला सच....
यह आलोक दूसरे प्रदेश का रहने वाला हैं, इसके मां-बाप ने बड़ी खुशी खुशी इसका विवाह एक सुशील कन्या से किया था, रश्मि नाम था उसका,
रश्मि अपने परिवार की इकलौती बेटी और ससुराल की इकलौती बहू होने के साथ ही साथ दोनों परिवार की लाडली भी थी, और आलोक पर शक कर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं था, लेकिन शहर की कुछ बुरी आदतें उसका पिछा ना छोड़ पाई, और उसने बड़ी चालाकी के ससुराल से बहुत साधन प्यार प्यार से मांग लिया, लेकिन यह उसका फरेब था।
एक दिन जब इसके पिता को पता चला और उन्होंने इसे डांटा और सच जानना चाहा, तो इसने उसे खेत में ही सर्पदंश से मरवा दिया, मां तो पहले ही चल बसी थी, इतने पर भी जब उसका मन ना भरा, और इसे रश्मि अपने लिए अड़चन लगने लगी, तब इसने धोखे से एक दिन उसे भी तड़के सुबह घर के सामने वाले कुएं में फिसलन बना कुएं में गिरा कर मार डाला, और बड़ी चालाकी से सरकारी योजनाओं में अपने परिवार की सुरक्षा हेतु बीमा करवा रखा था, जिस कारण से पिता और पत्नी दोनों की मौत पर इसे बहुत सा पैसा मिला।
कुछ दिन तक इसके ससुराल वाले इसकी देखरेख को लेकर परेशान रहे, लेकिन बेटी के ना रहने और उसके बुरे बर्ताव से परेशान होकर वो भी चले गए, इसकी करतूत किसी को पता ना चले और इसकी हरकतें कहीं सारा राज ना खोल दे, इसलिए इसने गांव की पूरी संपत्ति बेच उस जगह को छोड़ दिया, और यहां आकर झूठ मूठ का पहले लोगों के यहां नौकर रहा, दिल जीता और फिर धीरे से अपना व्यापार करने लगा,
तुम ही सोचो, अचानक इतना धन इसके पास, इस छोटे से शहर में.....
कितना व्यापार करने से आया होगा, जो मात्र चार सालों में इतना बड़ा व्यापारी बन गया, सब कुछ ठीक रहता, लेकिन जैसे ही इसके मन में तुम्हारी बहन को लेकर ख्याल आया, और तुमने जन्मपत्रिका लेकर पंडित के पास मिलान हेतु भेजा, तब यह रश्मि की आत्मा बर्दाश्त न कर सकी,
रश्मि की तड़प देख कायरा, जिसे यह अपना दुश्मन बताता है, सामने आई और इसकी सारी हकीकत से रश्मि को रूबरू करवाया , और वही रश्मि अपना इंतकाम लेने के लिए जब इसके सामने आ खड़ी हुई, तब इसे तकलीफ होती है।
कायरा की चाल थी, कि उसने इसे परेशान कर तुम्हें मेरे पास आने को मजबूर किया था, कि तुम खुद इसका काले सच को जान, अपनी बहन का जीवन और भविष्य दांव पर ना लगाओ, क्योंकि उसके साथ अब किसी का संबंध नहीं हो सकता, कहते हुए तांत्रिक ने कुछ सरसों के दाने हवा में फेंके, और देखते ही देखते दो सुंदर आकृतियां प्रकाश की तरह नजर आने लगी।
तांत्रिक कहने लगा कायरा क्षमा करना एक भाई को सच बताने के लिए तुम्हें तकलीफ देना पड़ा, तुम खुद देख लो सुदाम, यह थी रश्मि........कहते हुए रश्मि की आत्मा की ओर इशारा किया, और बोले कहां से कम है यह तुम्हारी बहन से,
जो इसका ना हो सका, तो तुम्हारे परिवार का क्या होगा???
अब कहो क्या कहना चाहते हो????आलोक वहीं गर्दन झुका किसी अपराधी की तरह बैठा था, लेकिन सुदाम का गुस्सा सातवें आसमान पर था, क्योंकि आलोक ने भी कहीं ना कहीं बहुत बड़ा झूठ उससे कहा था, और उसका विश्वास चकनाचूर हो गया था,
सुदाम चीखते हुए कहने लगा, सजा तो इसे... सजा दो.....
बिखेर दो शमशान की हवाओं में, इस शहर के लिए भी गुमनाम बना दो इसे, कहते हुए सुदाम तांत्रिक की ओर देखने लगा, और तांत्रिक ने तभी कायरा को इशारा किया, तभी कायरा रश्मि की और देख कुछ पूछना चाहती थी,
लेकिन तभी रश्मि ने पास ही पड़ा एक बड़ा सा लकड़ी का टुकड़ा हवा में उछाला जो कि आलोक को चीरते हुए बाहर निकल गया, यह सब इतनी तेजी से हुआ कि आलोक को संभलने का मौका भी ना मिला,
और सच ही था, उसका अपने पति के प्रति अटूट विश्वास, वह भी मरने के बाद भी......
जब उसे ऐसा सच पता लगा , तो वह भला कैसे माफ करती, खासकर तब, जब वह किसी और के साथ बंधन में बंधने का नाटक कर उसे धोखा देने जा रहा हो।
सुदाम तांत्रिक बाबा को नमस्कार कर धन्यवाद बोल कर चला गया, और कायरा तांत्रिक बाबा को धन्यवाद कर लौटते हुए , आलोक को स्पर्श मात्र से ऐसी तपती आग उसके शरीर में पैदा की, कि देखते ही देखते उसका निर्जीव शरीर हवा में राख बन उड़ गया,
तांत्रिक ने सुदाम को आलोक का हिस्सेदार होने के कारण उसे उसके संपूर्ण व्यापार को संभालने की सलाह दी, और कायरा के प्रति कृतज्ञता प्रकृट की, कि आज फिर एक बेकसुर स्त्री को इंसाफ दिलाने के साथ ही साथ कायरा ने एक जीवन भी बचा लिया।
अगले कदम में कायरा का सामना और भी कुछ नई नैतिक समस्याओं से होने वाला था, जहां दोषी को भाप पाना संभव नहीं है, लेकिन क्या??????
शेष अगले भाग में???????