अपने मिलनसार व्यक्तित्व और सबकी मदद करना, नौकरी में ईमानदारी से रहने के कारण गुंजन ना सिर्फ अपने स्टाफ की ही चहेती थी, अपितु अपने थाना क्षेत्र में भी प्रसिद्ध थी, लोग उसे बड़े ही आदर भाव से देखते और साथ ही साथ हर संभव प्रयास करते की कानून व्यवस्था बनी रही,
जब अच्छे और मन लगाकर काम करने वाले अनुशासित कर्मचारी हो, तब कैसे भी अफसर पद पर बैठा दिया जाए, कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन हर जगह पर यह बात सटीक नहीं बैठती।
कुछ पद ऐसे होते हैं, जहां कर्मचारियों से ज्यादा अधिकारियों को अनुशासित होने की आवश्यकता होती है, खासकर जब कानून व्यवस्था को संभालने की जिम्मेदारी ऐसे शख्स पर हो, लेकिन चाहे इसे गुंजन का दुर्भाग्य कहें या फिर सरकार की गलती........
एक ऐसे ऑफिसर को पूरे स्टेट की जिम्मेदारी सौंप दी गई, जिसके साथ किसी भी डिपार्टमेंट का अधिकारी या कर्मचारी काम करना पसंद ना करें, जिसका मुख्य कारण उसकी स्त्रियों को लेकर गंदी सोच, वह किसी गांव के जमींदार या प्रधान की बिगड़ी औलाद थी, जिसमें सिर्फ और सिर्फ दमन, लोभ और जातिवाद में गिरी हुई संस्कृति के बीच जन्म लिया, और उसी में पला बडा।
वह समाज के उस पक्ष से नाता रखता था, जहां आज भी स्त्रियों को कमजोर और चारदीवारी में रहने वाली चिड़िया माना जाता था, जिसके मन में खूबसूरत बीवी के साथ उसमें गुलाम होने की भावना निहायत जरूरी थी, और उसकी ऐसी सोच के साथ साथ सिर्फ उसमें एक ही अच्छा गुण था कि वह अपराध को अपराध की नजर से ही देखता था।
वह बेशक बहुत बुरा अधिकारी, लेकिन रिश्वत उसके लिए हराम थी, बस यही दो गुण उसमें अच्छे बताने के लिए पर्याप्त थे, क्योंकि दुष्ट प्रवृत्ति का अधिकारी सिर्फ अपनी जिम्मेदारी के लिए परेशानी पैदा करता है, लेकिन एक भ्रष्टाचारी पूरे देश की व्यवस्था को बिगाड़ देने को पर्याप्त होता है।
उसकी सोच गंदी थी, लेकिन उसका कारण शायद स्त्री पक्ष का वह भाग भी था, जो उस समुदाय को सिर्फ अपने मतलब के लिए जिस्म दिखा कर ललाईत करती है, उनके लिए उनका शरीर मर्यादा से कई परे मात्र एक काया होती है, ऐसी स्त्रियां अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किसी भी सीमा तक गिरने में नहीं चुकती।
कई बार तो जिस्म दिखाने की परंपराओं में वह यहां तक निकल जाती है कि वह भविष्य में खुद को ही देखे तो शर्म आ जाए, वे आजादी के नाम पर अपने परिवार को भी दांव पर लगाने में नहीं चुकती, उन्हें सिर्फ अपने मनमानी से मतलब रहता है ,
शायद ऐसी ही महिलाओं के साथ रहने के कारण "अनिरुद्ध सरकार" नाम का यह ऑफिसर इसी बिगलैड सोच के साथ अभी तक चलते आ रहा था, और उसकी पदस्थापना जिस दिन गुंजन के शीर्ष अधिकारी पद पर हुई , सारे डिपार्टमेंट में कानाफूसी शुरू हो गई,
कुछ ने गुंजन को उस मक्कार से न मिलने की सलाह दी, तो कुछ ने बचके रहने के उपाय बतलाने शुरू कर दिये, क्योंकि सभी को भय था, कि गुंजन की खूबसूरती और जवानी का कमल कहीं ना कहीं उस बदमास भंवरे को आकर्षित कर ही लेगा,
लेकिन गुंजन का यह खौफ सिर्फ और सिर्फ अपने काम में रमे रहने वाली लड़की को भला किस बात का डर और सही भी था, क्योंकि यदि पुलिस अधिकारी महिला के मन में ही डर रहें तो भला आम जनता का क्या होगा????
अनिरुद्ध सरकार ने ऑफिस प्रोटोकॉल और अपनी फितरत के अनुसार पहले ही दिन तीन अलग-अलग प्रकार से बैठक का आयोजन किया, सबसे पहले उसने जॉइंट मीटिंग पुरुष और महिला अधिकारी दोनों के साथ, दूसरे बार में सिर्फ महिला अधिकारी और कर्मचारी अर्थात तीसरे बार में, संध्या के समय वेलकम पार्टी के नाम पर समस्त आला अफसरों को परिवार सहित आमंत्रित किया गया।
जनरल इंट्रोडक्शन के नाम पर, लेकिन हर मीटिंग में वह सिर्फ और सिर्फ खूबसूरत महिलाओं की टोली को तलाशता रहा, और उसमें उसने दिन भर में चालक और जल्दी हासिल हो जाने वाली महिलाओं को ही सूचीबद्ध किया, जिनके पास भी फटकना संभव नहीं,
चूंकि गुंजन आला ऑफिसर में सी थी, इसलिए उसकी सुर्खियां लगभग तीनों ही मीटिंग में नजर आई, और तीनों में उसने अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार बेस्ट परफॉर्मेंस किया, जिसके कारण पहले ही दिन अनिरुद्ध की नजर में वह प्रथम श्रेणी में आ गई।
अनिरुद्ध ने सर्वप्रथम गुंजन की पूरी जन्मकुंडली निकाली, उसकी पढ़ाई लिखाई, लालन पोषण, परिवार के सदस्य और उसके व्यवहार सब कुछ.....
जब उसे गुंजन की पूरी तरह पूर्ण संस्कारवान होना, और अब तक किसी पुरुष के संपर्क में ना आने की खबर मिली, तब तो वह जैसे पागलों की तरह गुंजन से मिलने को उतारू हो उठा, यह जानते हुए भी कि गुंजन की सगाई बैंक मैनेजर से हो चुकी है।
उसने बड़े चतुराई से उसी बैंक में अपना एक खाता खोला, जहां गुंजन का मंगेतर राजेश पदस्थ था, और धीरे-धीरे उससे अपनी अच्छी जान पहचान बना ली, वह बड़ा ही चलाक और धूर्त आदमी था, इसलिए उसने गुंजन से मिलने से पहले विपरीत दिशा से पहचान बनाना शुरू किया।
गुंजन के गांव में आकस्मिक विजिट कर उसके परिवार वालों से भी जा मिला, ऐसा नहीं कि गुंजन को इन सब बातों की खबर नहीं थी, वह सब कुछ जानती थी, उसे इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि यह सब ऑफिशियल विजिट के दौरान हुआ।
तभी अचानक चुनावी माहौल आया और गुंजन की ड्यूटी विरान जंगलों के बीच फंसे बुथ सेंटर पर उसने लगा दी, वहां मात्र एक ही गेस्ट हाउस था, जिसमें चंद कमरों के साथ स्टाफ क्वाटर्स लगे हुए थे, यह सब सोची समझी साजिश थी।
अनिरुद्ध ने अचानक विजिट करने का बहाना बना, रात्रि सात आठ बजे के बीच अचानक अनिरुद्ध का विजिट हो गया, और सारी जानकारी लेने के बाद अपने कक्ष में चले गए, और रूम में जाकर उन्होंने सबसे पहले गुंजन को कॉल किया और रूम में आने को कहा।
गुंजन के दिमाग में रत्ती मात्र कुछ ऐसा ना था, तो फिर डर कैसा??????
गुंजन बेधड़क होकर अनिरुद्ध के कमरे में गई, जहां अनिरुद्ध शराब पी रहा था, उसने गुंजन से इधर-उधर की बातों के साथ उसे अपने जाल में फंसाने की कोशिश करने लगा, जिसे गुंजन ने बडे कठोर शब्दों में धमकी देकर अस्वीकार किया और वहां से लौट आई।
गुंजन के ऐसे व्यवहार ने उसे अपमानित कर दिया, और फिर उसने योजना अनुसार 100 नंबर पर डायल कर गुंजन को खबर दी कि स्थानीय जगह पर किसी आदिवासी महिला के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है,
गुंजन अपनी टीम के साथ वहां के लिए निकली तो, अचानक लोगों ने उन पर हमला कर दिया और देखते ही देखते सभी को अलग-अलग टुकड़ों में होना पड़ा, इसी दौरान गुंजन पर जोर से किसी ने पत्थर से वार किया और गुंजन बेहोश हो गई, बस उसके कान में एक ही बात गूंजती रही, कि अगर तुम अनिरुद्ध सरकार की बात मान लेती तो शायद ऐसा नहीं होता, और गुंजन पर दूसरा वार किया तो गुंजन वही झाड़ियों में कही जा गिरी गई,
जब गुंजन की आंखे खुली तब वो अपने आप को एक हॉस्पिटल में पाती हैं, जहां कायरा उसके पास खड़े रहती हैं,
कायरा ने अपना परिचय देते हुए कहा, गुंजन मुझसे कुछ नही छुपा हैं, तुम्हारी इस हालत का जिम्मेदार कोई और नही, बल्कि अनिरुद्ध ही है, उसने धोखे से तुम्हें बुलाकर अपने आदमियों से तुम्हें जान से मारने के लिए भेजा था, लेकिन मुझे उसका आभास हो गया था, और जैसे ही उन लोगों ने तुम पर वार किया,और तुम जाकर झाड़ियों के बिच जा फंसी, तभी मैंने तुम्हें वहां से निकालकर हॉस्पिटल ले आई।
और तुम्हें ये जानकर हैरानी होंगी की अनिरुद्ध अब इस दुनिया मे नही रहा, गुंजन आश्चर्यचकित हो जाती कि यह कैसे,कब हुआ????
अनिरुद्ध अपनी पिस्तौल साफ कर रहा था, और उसने ना जाने कैसे खुद अपने आप को गोली मार ली, और वही उसी जगह पर उसकी मौत हो गई।
तब गुंजन, कायरा के तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहने लगी कि मुझे और कुछ बताने की जरूरत नहीं कायरा.....
मैं तुम्हारी शक्तियों से भली-भांति परिचित हो चुकी हूं कायरा, अनिरुद्ध की मौत कैसे हुई है????? मैं सब समझ चुकी हूं, कहते हुए गुंजन ने कायरा का धन्यवाद किया।
कायरा अब अपने एक नए सफर की ओर चल पड़ी, किसी और को न्याय दिलाने के लिए, लेकिन किसे??????
शेष अगले भाग में.......