शिल्पी , कायरा से कहने लगी सच तो अब मेरे सामने आया, जब मैं इनकी सलामती देखने लौट कर आयी, और इन को सुना और देखा जिसमें वही मेरी बहन अब मेरे पति पर अपना हक जमा उनकी बाहों में थी, और यह दोनों खुशी-खुशी यह बातें कर रहे थे, कि कैसे इन दोनों ने मुझे रास्ते से हटाया, साजिश के तहत मुझे मारा और अब अपनी जीत का जश्न मना रहे हैं, काश की कायरा मैं यह सब नहीं देख पाती, क्योंकि ऐसे सच को ना जानना ही अपनी रूह को शांत करने के लिए अच्छा है, क्योंकि कल तक कितना सुकून था मेरे मन में, कितना प्यार था परिवार के लिए अपने मन में, और आज................
कहते हुए शिल्पी आग की तरह जलने लगी, उसके अचानक उभरे क्रोध को देख तालाब के पानी की हलचल को दूर भागती मछलियों को समझा जा सकता था, उसके मन के दर्द और क्रोध को शायद प्रकृति के बाकी तत्व भली-भांति समझ चुके थे, इसलिए शायद हवा अचानक तप्त हो गई और सारा वातावरण गमगीन सा लगने लगा,
शिल्पी की ऐसी दशा देख, कायरा ने कहा, अगर ऐसा है तो तब तो इन्हें सजा मिलनी ही चाहिए, चलो चल कर देखते हैं, कहते हुए कायरा शिल्पी के घर की ओर चल पड़ी.......
कायरा जो कायनात ए हुस्न थी, जाकर शिल्पी के पति अर्पित के पास जाकर खड़ी हो गईं, जो इस समय बागान में टहल रहा था, अचानक कायरा की खूबसूरती को देख अपने स्वभाव के अनुसार उसकी ओर आकर्षित होने लगा, और कायरा से उसका परिचय पूछा, उसे अपनी बातों में उलझा ही रहा था कि तभी डिंपी, शिल्पी की बहन उस जगह आई और अपने हक को छीन देख, गुस्से में आकर अर्पित को अपने साथ ले गई।
कायरा मुस्कुराते हुए शिल्पी के साथ अगली सुबह के इंतजार में.......
और अगली सुबह जैसे मौका मिला, वह फिर डिंपी के पास पहुंच गई, कायरा को देख डिंपी का क्रोध सातवें आसमान पर था, वह तो जैसे कायरा को मार ही देना चाहती थी, वह कहने लगी, तुम यहां कैसे???????
क्या दूसरे के पति पर डोरे डालते तुम्हें शर्म नहीं आती????
दूसरे का पति?????
डिंपी दूसरे का पति??????
वाकई, क्या वह तुम्हारा पति है??????
माफ करना भूल गई, मुझे लगा वह शिल्पी का पति है।
क्या श...... श...... श....... शिल्पी????????
तुम कैसे जानती हो शिल्पी को???????
अरे कौन हो तुम ????????
और जो भी हो इतना सुन लो, अर्पित, शिल्पी का पति था, और अब मेरा पति हैं, वह मुझे सौप गई अपने परिवार को, और अब उनका ध्यान रखना मेरी जिम्मेदारी है,
अच्छा वाकई?????? लेकिन ऐसा है तो चलो एक बार अपने छीने हुए पति से हमें भी मिलवा दो, डिंपी को काटो तो खून नहीं, उसके चेहरे पर आश्चर्य और भय के भाव साफ शब्दों में देखे जा सकते थे,
कौन हो तुम??????
और कैसे जानती हो??????
इतना सब कुछ कहते हुए वह तमतमाती हुई कायरा की ओर बड़ी, लेकिन तभी जोरदार झटको के साथ वह दूर जाकर फेंका गई, उसके गिरने की आवाज से दौड़कर अर्पित आया और उसे उठाकर पूछने लगा,
क्या हुआ????? कैसे गिरी तुम डिंपी??????
लेकिन कायरा को देख आश्चर्यचकित हो,
अरे कायरा तुम यहां????
कैसे??????
लेकिन तभी कायरा ऐसे ही..... और डिंपी चिल्लाती हुई, इसकी बातों में मत आओ यह कायरा नहीं कोई छलिया है,
यह सब कुछ जानती है कि कैसे तुमने और मैंने मिलकर शिल्पी को मारा, यह सुनते ही जैसे अर्पित के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी, कायरा कहने लगी, क्या समझ रखा है तुमने, एक निर्दोष को अपने स्वार्थ के लिए मार दिया, यह सोच की कोई जान भी नहीं पाएगा, अरे क्या बिगाड़ा था इस बेचारी ने तुम्हारा ????
और तुम्हें बड़ा गुमान था, तुम्हारे हुस्न पर....
अपनी बहन का घर खाने वाली डायन तुझे सेवा करनी है ना अब कर सेवा, कहते हुए उसने क्रोध में अर्पित को हवा में उछाला और घर के छत पर दे मारा।
वह किसी गेंद की तरह दीवारों से टकराता हुआ फर्श पर आ पड़ा ना कोई होश ना ही कोई हरकत......
इतने समय में क्रोध से भर चुकी शिल्पी हरकत में आ कहने लगी कि, आखिर क्या बिगाड़ा था मैंने तुम दोनों का???????अरे तुम दोनों एक दूसरे से प्यार करते, तो एक बार मुझसे कहा तो होता, इस तरह मुझे यू मारने की क्या जरूरत थी???? मैं खुद ही तुम दोनों के रास्ते से हमेशा के लिए चले जाती,
तब डिंपी ने शिल्पी से कहा कि तुम्हें यह सब कैसे पता???????तो शिल्पी ने कहा कि मैंने तुम दोनों की बात सुन ली थी, कि जिस दिन अर्पित मुझे देखने आया था, उसी दिन से वह तुम्हें चाहता था, और अपने परिवार वालों के कहने में उसने मुझसे शादी की, लेकिन तुम दोनों ने मुझे मारने की यह साजिश रची थी, यह भी मुझे पता चल गया और आखिर एक दिन तुम दोनों अपने रास्ते से मुझे हटाने में कामयाब हो ही गए, और मुझे तुम दोनों ने मार ही दिया।
शिल्पी बहुत ज्यादा क्रोध में थी, और वह यह सब जोर-जोर से कह जा रही थी, उसने डिंपी के अंतरंगों को जैसे निचोड़ कर रख दिया, वह कराह कर तड़पती रह गई फर्श पर, क्योंकि अंदरूनी अंगों की चोट और तोड़ मरोड़ ने जैसे उसके सारे जोश को खत्म कर दिया हो, तड़पकर वह फर्श पर किसी सर्प की तरह रेंगने लगी और माफी की गुहार लगाने लगी, बार-बार माफी की गुहार लगाने लगी और बोलने लगी कि मुझे माफ कर दो, हम लोगों से बहुत बड़ी गलती हो गई है, लेकिन भला कौन सुनने वाला था, और कौन सुने भी, और सच कहे तो यह सजा बहुत कम थी उन दोनों के लिए,
उखाड़ कर रख दिया और छोड़ आए तड़पने के लिए उन दोनो को, और उनकी जिंदगी को..........
शिल्पी रोते हुए कायरा से कहने लगी, अब न तो इसका यौवन बचा, और न ही यह किसी लायक बचे, अब यह लोग पूरी उम्र सेवा करते ही गुजारे की यही इनकी सजा है,
धन्यवाद कायरा इस दूसरी दुनिया की मदद करने के लिए और इस दुनिया में इंसाफ दिलाने के लिए कहते हुए अब वह कायरा की शक्ति का एक हिस्सा बन चुकी थी,
आगे कायरा अब किसे इंसाफ दिलाएगी??????
शेष अगले भाग में..........