किसी भी राज्य में शासन किसी राजा का नहीं होता , अपितु वहां की प्रजा, सेवादार ,सैनिक, मंत्री और सलाहकार सही मायने में एक अच्छे शासन का लुफ्त उठाते हैं, राजा तो सिर्फ सिंहासन और राजसत्ता से बंधा हुआ एक ऐसा व्यक्तित्व होता है ,
जिसकी सीमाएं सही मायने में यह सभी मिलकर तय करते हैं, लेकिन ऐसा नहीं किसी राज्य को चलाने में सिर्फ उनकी ही भूमिकाएं है, अपितु इन सबसे बढ़कर कुछ गुमनाम व्यक्तित्व और पद ऐसे भी होते है, जिनकी कोई सीमा नहीं होती,
जिन्हें कहीं भी आना जाना किसी भी शक्ति का प्रयोग करना और किसी भी निर्णय को बदल देने के क्षमता इन लोगों के पास होती है, लेकिन यह सब इसलिए क्योंकि आम लोगों की तरह उनकी कोई वास्तविक पहचान नहीं होती, और ना ही कभी अपनी पहचान प्रकट होने देते हैं।
इनकी गुमनाम सी जिंदगी के बलबुते पर ही कोई राज्य खड़ा रह सकता है, और इन्हीं में से एक गुप्त चरो का प्रधान विक्रम था, जो राज्य में अपार विद्याओं का मालिक अनेक रहस्य से भरा, लेकिन अनजान समाज की नजर में से भी और बेकार विक्रम वास्तव में इस राज्य की ढाल था,
जिसमें वर्षों से ना जाने कितनी बार ऐसी ऐसी गुप्त जानकारियां, रहस्यमई पहेलियों के साथ भी जिससे ना जाने कितने ही विवाद और नुकसान राज्य का टला था,
इसलिए विक्रम साधारण होकर भी एक असाधारण व्यक्तित्व था, उसकी बात को टाल पाना राज्य में किसी प्रधान पुरुष के लिए संभव नहीं था,
उसके संदेश देने के तरीके बहुत भिन्न हुआ करते थे, कभी पेड़ की पत्तियों पर लिखकर गुप्त संदेश देना, या किसी और के बहाने मिलना, उसका तरीका बड़ा ही अजीब था, लोगों को लगता था, वह जंगलों की सैर करने वाला बेकार आदमी है,
लेकिन वास्तव में वह राज्य की सीमाओं के निरीक्षण और सुरक्षा में लगे हुए किसी सैनिक से कम नहीं, ना जानें कितने ही गुप्त रास्ते उसने बना रखे थे, एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से जाने के लिए उसके पड़ोसी राज्य में पहुंच, उसके इसी पागलपन वाले साधारण जीवन के कारण संभव है।
कोई ध्यान ही नहीं देता इन लोगों पर ,क्योंकि इनकी पहचान एक ऐसे तपके से होती है, जिनके आने जाने या रहने से किसी देश को कोई फर्क नहीं पड़ता, कई बार यह अधिकारी बनकर, तो कभी साहूकार बनकर अचानक प्रकट होते हैं ,तो कभी पकडे जाने पर गुमनामी में ही अपना जीवन गवा देते हैं।
गुप्तचर नाम ही ऐसा होता है, और फिर ना जाने वह गुप्त चर किसका है ????यह उसके तपके और उसके स्वामी पर निर्भर करता है,
ठीक इसी तरह विक्रम उस राज्य की नींव की तरह था, सुकेश का पिता जिसने कुछ ही दिन पहले विक्रम का अपमान किया था, वह बड़े संकोच के साथ विक्रम के घर के सामने आ बैठ गया, लेकिन विक्रम को घर में ना पा उसने उसके घर के सामने कुछ दूरी पर उसने अपना अड्डा जमा लिया, और इंतजार करने लगा।
जिंदगी में पहली बार उसने किसी के इंतजार में पूरी दोपहर बिताई थी, उसका एक-एक पल किसी युग की तरह बीत रहा था, न जा कितने ही सवाल उसके मन में आ जा रहे थे, वह रह रह कर कभी सड़क की और, तो का भी विक्रम के घर की ओर देखता।
वह सोच रहा था कि जाने-अनजाने ही सही, लेकिन उसको कोई हक नहीं था कि वह किसी का अपमान करें, लेकिन तभी हल्की सी सांझ ढलने के साथ उसे विक्रम आता हुआ नजर आया, वह लपक कर विक्रम के पास जा पहुंचा, और कहने लगा, विक्रम भाई मेरी मदद करो।
किसी अनजाने शख्स के कहने पर मैंने तुम्हारे दरवाजे पर दस्तक दी है, इस उम्मीद के साथ कि शायद तुम मेरी मदद कर सको।
मेरे इकलौते बेटे को सिर्फ तुम ही छुड़ा सकते, विक्रम ने कुछ ज्यादा कहा नहीं, बस इतना कहा, मैं भला मैं क्या मदद कर सकता हूं???? फिर भी यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ चलकर विनती कर सकता हूं किसी बड़े अफसर अधिकारी से....
इतना कह कर उसने इशारा किया और दोनों चल पड़े, विक्रम अभी भी अनजान सा उस बूढ़े के साथ चला जा रहा था, और बूढ़ा उसे उस ओर ले जा रहा था,जहां मदद की उम्मीद थी।
दोनों ने पहुंचकर देखा, उसके बेटे को सलाखों के पीछे किसी जानवरों की तरह रखा था, और कुछ सैनिक उससे पूछताछ कर रहे थे, यह देख बूढ़ा वही रोने लगा, क्योंकि यह सब देख पाना किसी भी पिता के लिए संभव नहीं था।
सैनिकों ने क्रोध में आकर उस बूढ़े और विक्रम को भी पकड़ा लिया और धमकी देने लगे, कि यदि शीघ्र अतिशीघ्र वह वहां से नहीं गए तो, उन दोनों को भी सलाखों के पीछे डाल दिया जाएगा, लेकिन भला वे दोनों कहां वापस जाने के लिए आए थे।
बहुत गहमागहमी के बाद सैनिकों को जब कुछ समझ ना आया, तो उन्होंने उन दोनों को पकड़कर प्रधान के पास पेश किया, इतना करते-करते लगभग रात की हो चुकी थी, और प्रधान खुद ही किसी काम से बाहर गए हुए थे, इसलिए सैनिकों ने उन्हें वहीं घर के सामने दो जमादारो के साथ छोड़ आए।
काफी इंतजार के बाद दोनों एक टिमटिमाती रोशनी के साथ किसी को आते देखा, तो बूढ़ा सजग हो खड़ा हो गया, विक्रम भी उसका अनुसरण करते हुए हाथ जोड़ प्रणाम की मुद्रा में खड़ा हो देखने लगा,
थोड़ी देर में प्रधान बड़े रूआब के साथ आ पहुंचा, तो जमादारो ने अपनी वफादारी दिखाते हुए सारा वर्णन सुना, उन दोनों को पेश किया, उन्हें देखते ही या सही मायने में कहा जाए, कि विक्रम को देखते ही प्रधान थोड़े समय के लिए सन्न रह गया।
फिर संभलकर बोलो क्यों आए हो दोनों?????
बूढ़े ने रोते गले से अपने बेटे के लिए रिहाई मांगी, और विक्रम ने सिर्फ उसका साथ दिया, जिसे सुन प्रधान ने बड़ी सजगता से जमादारो को संदेश दिया, मुझे लगता है शायद कोई भूल हुई है, यह सच कह रहा है, अभी इसके साथ इसके बेटे को जाने दो ।
हम निर्णय बाद में लेंगे कि क्या करना है, और वैसे भी यह कहां भाग कर जा सकता, थोड़ी नजर रखना और चेतावनी के साथ छोड़ दो , जमादारो इससे पहले की कुछ कह पाते, प्रधान ने सख्ती के साथ, सिर्फ इतना कह देना कि मैंने कहा है, जाओ जाने दो इन्हें, कह कर वह फुर्ती से चला गया, बूढ़ा बड़े आश्चर्य में था, और साथ ही साथ क्रोध में भी ,
क्योंकि उसे लगा था कि विक्रम शायद कुछ सिफारिश करेगा, या कुछ काम आएगा, लेकिन उसने तो एक शब्द भी नहीं कहा, वह अकेले रो रो कर अपनी विनती सुनाता रहा,
मतलब साफ था कि उसके मन में विक्रम को लेकर अभी भी वैसा ही परिचय बना रहा,जैसे पहले था, लेकिन वह इस बात से अनजान था, कि उसके साथ विक्रम का जाना ही पर्याप्त था, कहने या ना कहने की आवश्यकता हर समय नहीं होती, प्रधान भली भांति जानता था ,कि यदि विक्रम साथ में हैं,मतलब अवश्य ही प्रार्थी निर्दोष होगा।
शेष अगले भाग में.......