घर के सामने जमा भीड़ और सुनाई देता कोहराम, चीख चीख कर रोने की आवाज से ऐसा जान पड़ता हैं, जैसे घर के किसी सदस्य की मृत्यु हो गई हो, ऐसा विलाप की सुनने वाले के दिल दहल उठते है।
जमा भीड़ में कुछ लोग अपनी मुस्कान छिपाकर सात्वना देने की झूठी पुरजोर कोशिश कर रहे थे, तो कुछ यह सोच रहे थे कि कहीं परिवार मदद ना मांग बैठे।
घटना के खिलाफ अपना पक्ष रखते नजर आए, अचानक बलवीर कुम्हार अपने गधे के साथ उस रास्ते से गुजरा और ऐसा मंजर देख वहीं रुक गया , क्योंकि ऐसे समय में उसकी उपस्थिति अनिवार्य है।
वैसे भी चाहे कोई खुशी का माहौल हो या मृत्यु का समाचार ,दोनों ही स्थिति में गांव का धोबी और कुम्हार दोनों की उपस्थिति अनिवार्य हो जाती है, यही सोचकर बलवीर कुम्हार उस भीड़ को चीरता हुआ घर के आंगन में जा पहुंचा और शुक्रिया अदा किया, उसने कि ईश्वर का धन्य है, किसी की मृत्यु का अंदाज नहीं लगता।
तब फिर आखिर क्या हुआ क्या था???? यह जानने के लिए उसने कुछ उत्साहित लोग से पूछा ,जो यह इंतजार ही कर रहे थे, काश कोई उनसे पूछे और वह प्राप्त जानकारी में मिर्च मसाला लगा, लाग लपेट और उचित भाव के साथ अपनी प्रस्तुति दे सके।
सच में बड़ा सुकून मिलता होगा उन लोगों को ऐसा करके , इसलिए वह बड़े ही होशियारी से अपने भावार्थ के साथ मुझे पूरी बात बता कर ऐसे तृप्त हुआ, जैसे तेज प्यास लगने वाले व्यक्ति को ठंडा ठंडा शरबत पीने को मिल जाए।
लेकिन यह सुनकर बलवीर को क्रोध आया कि ,आखिर यह भीड़ तमाशा देखने के लिए यहां संख्या बडा रही है, मदद कोई करने को तैयार नहीं था, किसी को इतना भी रहम नहीं कि उसकी बूढ़ी मां से कह दे की चिंता ना करो, हम आपके साथ हैं।
वास्तव में आज तड़के सुबह ही कुछ सैनिकों ने उसके बेटों को किसी अनजाने जुर्म में उठाकर ले गए थे, बिना किसी कुछ बताएं।
आखिर क्या हुआ??? और वह इस परिवार का एक इकलौता वारिस था, जिसके ऊपर परिवार की सारी जिम्मेदारियां थी, क्योंकि उसकी लगन और मेहनत से ही घर का खर्चा चलता था, लेकिन अनजाने में ही आज सुबह शायद किसी गलतफहमी के कारण सैनिक उसे जाने किस जुर्म की सजा के लिए उठाकर ले गए ,
तब से उस परिवार का यह हाल हो गया, और उसकी बूढ़ी मां अपना दुख बेकार ही यह सोचकर प्रकट कर रही थी, कि शायद कोई उसकी मदद करेगा, लेकिन वह खुद भी इतने समय में यह जान चुकी थी, कि यह सिर्फ और सिर्फ दूसरों के दुख में मजा ढूंढने और चर्चा का विषय बनने के अलावा और कुछ ना करने वाले, इसलिए धीरे-धीरे उसका स्वर घटता चला गया।
और भीड़ का हर सदस्य वह अपने लिए उचित रस न समझ लौटने लगा, सबके चले जाने के बाद बलवीर कुम्हार को देख उस घर का मुखिया बलवीर के पास आकर , आंखों में आंसू लिए कहने लगा।
बलवीर काश कि तुम्हारा आना सार्थक हो जाता, और मेरे पुत्र को ले जाने की जगह मुझे ही मौत ले जाती, बलवीर ने उन्हें हिम्मत बांधते हुए कहा, ऐसा ना कहें, मैं अच्छे से जानता हूं, सुकेश को ऐसा कोई गलत काम नहीं कर सकता कि उसे सजा मिले, फिर भी आपको एक उचित राह दिखा सकता हूं,
यदि आप मेरा नाम ना ले तो, इस गांव में एक शख्स ऐसा भी है, जो दिखने में साधारण है, लेकिन लोगों के लिए मजाक का पात्र है, और समाज से हटकर है।
मैं उसके असाधारण व्यक्तित्व से परिचित हूं, पर कैसे यह नहीं बता सकता, सिर्फ इतना कहूंगा कि यदि वह चाहे तो पल भर में सुकेश को छुड़ाकर ला सकता है, आप उसे बिना यह आभास कराएं कि मैंने उसका पता आपको बताया है।
यदि आप मदद पा सके तो अच्छा है, अंधा क्या चाहे दो आंखें, वह बुढ़ा बलवीर कुम्हार की और देख कहने लगा, दुनिया मैंने भी देखी और यह भली-भांति जानता हूं, किसी भी गांव का धोबी और कुम्हार कभी गलत खबर नहीं रख सकता, वह गांव के हर सदस्य से भलीभांति परिचित होता।
इसलिए तुम्हारी बात को मानने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता, चिंता ना करें, मैं भी तुम्हारा नाम नही बताऊंगा,
और उस भले व्यक्ति से मदद मांग लूंगा।
तब बलवीर ने फिर से अपनी बात दोहराते हुए कहा, संकोच ना करिएगा, क्योंकि वह व्यक्ति कोई और नहीं विक्रम बैरागी है, अचानक चौंकते हुए क्या मजाक करते हो????
विक्रम भला क्या मदद करेगा???? राजा के सैनिक जो किसी की ना माने, वह विक्रम की बात मान जाए, वह भी आसानी से......
भला यह कैसे संभव हो सकता है????मुझे नहीं पता, बलवीर कुम्हार ने तपाक से जवाब दिया, मुझे नहीं पता कैसे??? लेकिन मैं इतना जानता हूं, मदद एक ही जगह से होनी चाहिए। उस गांव का बडे से बड़ा जमीदार जो काम नहीं कर सकता, वह विक्रम चुटकी में कर देने की औकात रखता है।
यदि आपको मेरी बात पर विश्वास हो तो ठीक चलता हूं, बस विनती है कि मेरी बात को मजाक बनाकर किसी और से ना कहिएगा , वरना गरीब की इज्जत बेकार ही उछाल दी जाएगी, और आपका काम भी नहीं होगा, सो अलग....
बुढ़ा अच्छे से जानता था, कि बलवीर किसी से झूठी बातें नहीं करता, इसलिए वह चल पड़ा विक्रम के घर की ओर ,
गांव के आखरी कोने में पुराने महल की दिवार से सटा हुआ था, मन में संकोच लिए, कि उसे मदद मिलेगी या नहीं ????
क्योंकि कुछ दिन पहले ही उसने विक्रम का मजाक उड़ाते हुए कहा था, कि जंगलों में घूमने से भला क्या मिलेगा????
थोड़ी मेहनत कर ले तो भलाई है,
और वाकई गांव का सबसे बेकार कहे जाने वाला व्यक्ति उसकी मदद कर सकता है, और यदि हां यह बात सही है, तब फिर वह ऐसे तंग हाल में क्यों रहता है????वह दूर दूर तक सोच रहा था विक्रम की पुशतो के बारे में, लेकिन उसे कहीं तक भी यह अंदेशा नहीं हुआ, कि विक्रम या उसके पूर्वज में किसी का संपर्क राज परिवार से हुआ है,
क्या वाकई विक्रम उसकी कोई मदद करेगा या कर पाने में सक्षम होगा?????
शेष अगले भाग में.....