अभय का बर्ताव दिव्या के प्रति बिल्कुल भी अच्छा नहीं था, वह दिव्या को यातना देने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता था, और वह दिव्या को हर समय निचा दिखाते रहता, छोटे घर से आई हो इसलिए अपना मुंह बंद करके ही रखा करो, इतने बड़े घर में आने की तुम्हारी औकात नहीं है, हमेशा दिव्या को खरी-खोटी सुनाते रहता, दिव्या अभय की इन हरकतों से बहुत परेशान हो गई थी,
लेकिन वह यह सोच कर अपने मां पिताजी को अभय के बारे में कुछ नहीं बताती कि मेरी दो बहनो की शादी करनी हैं, अगर मैं अपने मायके जाकर रहने लगूंगी तो उनकी शादी में परेशानी आएगी।
अभय दिव्या से छुटकारा पाने के लिए दिव्या को अपने प्रेम जाल में फांसने की साजिश रचने लगता है, जिससे सभी को लगता है कि अभय अब सुधरने लगा है, लेकिन दिव्या भी अभय का इस प्रकार का अचानक परिवर्तित व्यवहार देख बहुत खुश होती है।
एक दिन अभय दिव्या से कहता है कि चलो आज हम घुमने के लिए बाहर चलते है, तभी दिव्या खुशी-खुशी तैयार होकर आती है और अभय के साथ चली जाती है, काफी देर दिव्या को घुमाने के बाद अभय गाड़ी को जंगल की ओर मोड़ देता है, और घने जंगल में पहुंचने के बाद दिव्या से कहता है कि शायद गाड़ी में कोई खराबी आ गई है,चलो हम उतर कर देखते हैं।
दोनों गाड़ी से नीचे उतरते हैं, अभय दिव्या से कहता है कि मैं गाड़ी स्टार्ट करके देखता हूं, तुम यहीं खड़ी रहो, अभय गाड़ी में बैठकर तेज गाड़ी चलाकर, वहां दिव्या को उस घने जंगल में अकेला छोड़कर तेजी से निकल जाता है।
दिव्या डर के मारे बहुत चिल्लाने लगती है, लेकिन वहां उसकी चीख-पुकार भला कौन सुनने वाला था, और यही शायद अभय की सबसे बड़ी भूल थी, क्योंकि इस प्रकृति में शब्द कभी खाली नहीं जाता, और ना ही सच्चे दिल से लगाई गई पुकार.....
ईश्वर ने मुझ जैसी न जाने कितनी ही दिव्य आत्माओं को नियुक्त किया होगा, यह तो हम खुद ही नहीं जानते, दिव्या की आवाज जैसे ही मुझे महसूस हुई, मैंने तुरंत जाकर उसकी मदद करनी चाहिए, उसके लिए एक मोटे पेड़ को चुना, जिसे मैंने अपनी शक्ति से एक घर में परिवर्तित कर उसे रोशनी से भर दिया, जिससे दिव्या उस गुफा जैसे झोपड़ी में जाकर बैठ गई, लेकिन तब भी उसका डर खत्म नहीं हुआ था।
अब मेरे लिए यह अनिवार्य था कि किसी भी तरह में कायरा तक उसकी खबर पहुंचा पाऊं, क्योंकि उसकी मदद सिर्फ कायरा ही कर सकती थी।
इसके लिए मैंने हैसल का सहारा लिया, मैंने उसका ध्यान इस ओर आकर्षित किया, जिसे उसने तुरंत कायरा को चुना और देखते ही देखते कायरा उसकी मदद के लिए आ पहुंची, बस फिर क्या था कायरा उसे साहस बंधाया,और उसे उसके मां-बाप के घर छोड़ आई।
इधर अभय नाटक बाज जो यह मान बैठा था, कि दिव्या जंगली जानवरों से सुरक्षित ना बची होगी, बेफिक्र होकर घर जा कर यह बोला कि वह दिव्या को उसके घर छोड़ आया है, नाटकिय रूप से अपने घर में रहने लगा, उसे तो बस अब इंतजार था दिव्या की मौत की खबर का........
इधर कायरा दिव्या का दर्द सुनकर उसे उसी जंगल में पड़े हुए खजाने में से कुछ भारी भरकम संपत्ति देकर, बिना ससुराल वालों को बताएं अपने परिवार की मदद करने को कहा, और साथ ही साथ दिव्या के पिताजी को भी आर्थिक रूप में मजबूत बनाने में मदद की, क्योंकि इतनी स्वर्ण मुद्राएं और धन कायरा ने उस परिवार को दे दिया।
अब वह अभय के परिवार से भी कर ज्यादा अमीर हो गए, एक माह में ही देखते ही देखते दिव्या का परिवार किसी चमत्कारिक रुप से संपन्न हो गया, अच्छा घर और उच्च रहन-सहन के साथ ही साथ उसके पिता ने कुछ खेती खरीदकर एलिना को धन्यवाद कहा, और अब गरीब ही सही अच्छे लड़कों से अपनी दोनों बेटियों की शादी करने का ठाना, क्योंकि अभय के ऐसे व्यवहार की अपेक्षा दोनों परिवार में से किसी ने नहीं की थी।
इधर अभय से रहा नहीं गया कि आखिर दिव्या का क्या हुआ???और मां-बाप का भी दबाव बढ़ने लगा था, इसलिए वह झूठे ही सही कुछ सोचकर ससुराल की और उसी जंगल की और निकल गया, लेकिन अचानक देखते ही देखते जिस स्थान पर उसने दिव्या को छोड़ा था, मूसलाधार बारिश होने लगी, जंगल का संपूर्ण वातावरण बदलने लगा और बड़ी मुश्किल से डरते डरते वह अपने ससुराल जो पुराने घर के सामने आ खड़ा हुआ, लेकिन यह क्या... वहां तो कोई भी नहीं था,
अभय समझ ना पाया कि करे तो क्या करें, लेकिन तभी उसे एक जानी पहचानी सी आवाज ने जैसे पलटने पर मजबूर कर दिया, वह कोई और नहीं दिव्या ही थी, एक अलग ही सुंदर रूप में, मारे डर के अभय बेहोश होकर गिर पडा, जब उसे होश आया तब तक उसका आधा शरीर लकवा मार चुका था और उसने अपने आपको अपने ससुराल में पाया, सामने उसके मां पिताजी और ससुराल के सभी लोग बैठे हुए थे और वे अभय के पिता जी को सारी बातें बता चुके थे।
उन्होंने यह भी कहा कि मन तो उनका अभय की मदद करने का एक प्रतिशत भी नहीं था, क्योंकि जिस आदमी ने उनकी बेटी को मारने के लिए अकेला छोड़ दिया हो, भला उसे कैसे माफ कर दे ????
लेकिन दिव्या के कहने पर वे भी मजबूर थे, अब ऐसी परिस्थिति में अभय आत्मग्लानि से भरा हुआ था, और पश्चाताप कर रहा था,
दिव्या ने मन ही मन कायरा को धन्यवाद किया, और मैंने उसके मन में ससुराल और पति के प्रति मन में प्रेम की झलक देख उसके पति को धीरे धीरे ठीक होने की शक्ति दिव्या को दे आई, जिससे दिव्या की सेवा से अभय धीरे-धीरे ठीक होने लगा, और अपनी गलती की क्षमा मांग उसने दिव्या को पुनः अपने घर चलने का प्रस्ताव रखा, लेकिन इस दफा ऐसा ना हो पाया, क्योंकि शर्त के तौर पर अब अभय को दिव्या के घर पर ही रह कर सारा जीवन बिताना था, घर जमाई के रूप में, और यह शर्त खुद अभय के माता-पिता ने रखी थी, उसके ऐसे कुटिल व्यवहार को सजा के तौर पर.....
इस तरह एक बार फिर मेरी सखी कायरा ने नारी शक्ति की मदद की और एक परिवार टूटने से बचाया,
लेकिन संसार में भला समस्या कहां खत्म होने का नाम लेती है, एक नई समस्या कायरा का इंतजार कर रही थी????
वह कैसे?????
शेष अगले भाग में.......