एक तरफ मौलवी हैरान था, उस घटना से और उत्सुकता के साथ में चलने वाले हर हमसफर को बारी-बारी शक भरी निगाहों से देख रहा था, वह यह जानना चाहता था कि आखिर उससे भी ज्यादा शक्तिशाली इल्म का मालिक कौन है ????जिसे वह साथ रहकर भी नहीं पहचान पा रहा है।
उसने सुना तो बहुत था, लेकिन आज परखना भी चाहता था, पहली दफा वह ऐसे हालात से रूबरू हो रहा था, जो कि उसके सामने कई ज्यादा बड़ी शक्ति थी, और वह पहचान नहीं पाया।
उससे भी बड़ा आश्चर्य कि वह इतने वर्षों से गांव में दर-दर से परिचित था, लेकिन अब तक वह क्यों ना पहचान पाया, आखिर क्या शक्तियों को इतनी खामोशी से कोई समेट कर रख सकता हैं, असंभव??????
बिल्कुल भी संभव नहीं है, वह अकेले में बड़बड़ा रहा था ,जो उसकी व्यथित मनोदशा को झलकाने में काफी था, लोग यह सोच रहे थे कि मौलवी अवश्य ही जिन्न जिन्नादों को लेकर साथ चल रहा है, और रह रहकर शायद उन्हीं से बातें करता है।
यह सोच उससे थोड़ी दूरी बनाकर सभी अचंभित थे, लेकिन इसके ठीक विपरीत मौलवी अपनी व्यथित व्यवस्था में खुद ही एक-एक करके सबसे मिलता, और मुस्कुराकर बातें करता कि शायद किसी के चेहरे का नूर पढ़ वह समझ सके, कि आखिर वह जिसे तलाश रहा है, वह कौन है??????
लेकिन शायद उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा, कि पूरी कायनात को हिला देने वाली शक्ति की मल्लिका एक स्त्री भी हो सकती हैं।
शायद यह उसका पुरुष होने का अहंकार था, या यूं कहे कि पुरुष प्रधान समाज की सोच ने उसे यह सोचने पर मजबूर कर दिया था, कि कोई स्त्री भी प्रकृति की तमाम ताकतों को अपने पहलू में बांधकर रख सकती है, उसमें इतनी ताकत हो सकती है कि यदि वह चाहे तो महज पैर के नाखून से कुरेद कर जमीन से पानी निकाल , या अगर नजर उठाकर गौर से बादलों को देख ले तो उन्हें भी बरसने पर मजबूर होना पड़े।
उसका अहंकार नारी की उस शक्ति के अस्तित्व को यह जानते हुए भी जब एक नारी महज पल भर की स्वीकृति और अनुभूति से प्राप्त अति सूक्ष्म शुक्राणु से एक मानव की रचना कर देने में सक्षम है, यदि वे चाहें तो पूरी सृष्टि रचने में सक्षम होती है।
इस पर भी उसे इतना अभागा और सामान्य आंकने की भूल वह कर रहा था, शायद इसलिए उसका ध्यान उन लड़कियों, महिला और बच्चों पर नहीं गया, जो अपनी मस्ती में चले जा रहे थे।
उनकी हंसी किलकारियां और दौड़ लगाकर कभी आगे चले जाना, तो कभी जानबूझकर पीछे रुक पुनः दौड़ लगाकर साथ में आ जाना,सब कुछ भीड़ का उत्साह बढ़ा रहे थे।
यह उन बच्चों की मस्ती ही थी, जिसे बड़े बुजुर्ग किसी डांट से ठीक चलने को तो कहते, लेकिन मन ही मन उनकी बाल क्रीड़ाओ का आनंद भी लेते।
जब मौलवी सब से मिल चुका था, और उसे तब भी समाधान ना मिला, तब उसे लगा कि अवश्य ही किसी के साथ सामान में कोई ऐसी चमत्कारिक वस्तु है, जिसका असर मौजूद तो है, लेकिन महसूस वह नहीं कर पा रहा है।
बहुत परेशान होने पर उसने अंत में अपने सेवक जिन्न को याद किया, और आदेश दिया कि वह चुपके से सबके सामान और पोटलियों को जाकर खंगाले और पता लगाने का प्रयास करें, कि आखिर क्या चमत्कारिक पदार्थ या और कुछ उनके साथ है???? जिनका असर वह नहीं जान पा रहे हैं,
जिन्न ने अपना काम एक सरसरी निगाह में किया, और जैसे ही कुछ बोलने को तैयार हुआ, अचानक उसकी बोलती बंद हो गई, और वह माफी सरकार...... माफी सरकार......
कहकर गायब हो गया।
अब तो जैसे मौलवी के लिए सफर अत्यंत दुभर हो गया था, क्योंकि उसका सेवक जिन्न का अचानक शांत हो जाना, और कुछ ना बोल पाना अत्यंत ही चिंता का विषय था, इस घटना ने उसे अंदर तक हिला के रख दिया, उसकी शक्तियों का अहंकार चूर-चूर हो गया, क्योंकि उसने सबसे शक्तिशाली जिन्न का शांत हो जाना, और मांगी गई जानकारी नहीं देना।
मतलब साफ था, कि वह शक्ति उसकी सोच से भी कहीं ज्यादा परे हैं, और ऐसे में जब उसने दो बार प्रयास कर चुका हैं ।
उसका मतलब यदि अब दोबारा उसने कोई ऐसा दुस्साहस किया तो, शायद उसकी जान पर भी बन सकती है, या यह भी हो सकता है, कि उसकी बेवकूफी भरी हरकत की सजा उसे किसी बड़े रूप में अभी तुरंत ही मिल सकती है।
देखते ही देखते यह सोचते हुए उसका चेहरा पीला पड़ने लगा, पसीने की चंद बूंदे उसके माथे पर नजर आने लगी,
देखते ही देखते उसे चक्कर आने लगे , और पसीने की चंद बुंदे झलककर उसके माथे पर नज़र आने लग गई, उसके पैर लड़खड़ाने लगे, और वो वहीं जमीन पर गिर गया, गिरते हुए लोगों ने उन्हें संभाला, और उसके कौड़ी के जिन्न ने तुरंत प्रकट हो, सारे वातावरण को धूप से छांव में और शीतल हवाओं के झोंकों में परिणित कर दिया।
यह कौड़ी जो किसी पात्र की तरह थी, उसे उसके नवाब अर्थात गुरु ने दिया था, और कहा भी था जब निश्चेत होने लगे, और सारी शक्तियाँ बेकार हो जाए, उस समय यह जिन्न अपने आप कौड़ी से बाहर आ जाएगा, और उसकी रक्षा करेगा।
उसके लिए उसे कोई भी आदेश अलग से देने की जरूरत नहीं है, चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, इस भले जिन्न के प्रकट होते ही मौलवी की रक्षा कवच बन जाएगी , और उसे पूर्ण सुरक्षा प्रदान करने की ताकत उसके गुरु (नवाब)ने उस कौड़ी के साथ सौंपा था।
इसमें कहीं ना कहीं उस नवाब की सारी जिंदगी की कमाई का सार भी छिपा रहा होगा, भले जिन्न के प्रकट होते ही उसने कायरा की शक्ति को पहचान लिया, और कायरा से इल्म की इजाजत ले ही उसने, सारे वातावरण को बदला था, इस शर्त पर की कायरा के बारे में वह मौलवी को भनक भी ना लगने दे।
कायरा की स्वीकृति ले भले जिन्न ने जैसे ही वातावरण में प्रवेश किया, सबको बड़े ही सुख की अनुभूति हुई, और सबका ध्यान मूर्छित पड़े मौलवी पर पड़ गया, जिसे सबने बड़ी मिन्नतों तो उसे होश में लाया ,और उसके बाद तो जैसे मौलवी सारी घटना को भूल सा गया हो।
वह शांतिपूर्वक और लोगों की तरह अब यात्रा में शामिल हुआ, जैसे उसे कुछ याद ही ना हो, और वो सोच तो रहा था, कि शायद कुछ तो हुआ होगा, लेकिन बहुत जोर देने पर के बाद भी उसकी स्थिति किसी भी सदमे को उठे हुए बच्चे की तरह थी।
वह रह कर कुछ याद करने की कोशिश करता, और फौरन समुद्र की लहरों की तरह अपना ध्यान उस ओर से हटा देता, ऐसा लगता मानो भले जिन्न ने उस मौलवी के गुरु से मौन स्वीकृति ने उसके कुछ पल की याददाश्त मिटा दी हो,
और भी ना जाने ऐसे कितने मौलवी खुद आने वाले समय में कायरा की इजाजत से समाज का भला करने वाले होंगे, तब फिर यह मामूली सा अभिमान में चूर मौलवी कहां कायरा के बारे में जान पाता।
शेष अगले भाग में....