मेरी पुनः संरचना शक्ति रूप में की गई थी, जिसका मूल उद्देश्य मेरी सखी कल्पना के पूर्व जन्म की सुरक्षा और सहायता के साथ जुड़ा हुआ था, कल्पना मानव शरीर के रूप में पुनः जन्म लेने के कारण आज की कायरा अपनी पूर्व स्मृति से अवगत नहीं थी,
क्योंकि ईश्वरी नियम ही कुछ ऐसे हैं कि हमें पूर्व जन्म के किसी भी अच्छी या बुरी घटना ठीक उसी तरह याद नहीं रहती ,जैसे सामान्य बातें हो, क्योंकि यदि ऐसी स्मृति में पूर्व जन्म की दुखित घटनाएं या मृत्यु का कारण उस समय उपजा है, जो भय, शोक संवेदना हो सकता है, इस जन्म को अवसाद से भर दे, और शायद इसलिए पूर्व जन्म की कोई भी बातें याद नहीं रहती।
लेकिन कुछ लोग सृष्टि के नियम बदल, पूर्व जन्म की यादों के साथ स्मृति पर जन्म लेते और काफी परेशान भी रहते हैं, जिनकी संख्या सामान्य मनुष्य में नहीं आंकि जा सकती है, ऋषि मुनि अपनी योग साधना से सब कुछ जानने में समर्थ हो जाने के पश्चात भी दूसरों के विषय में जानकारी दे देते हैं, लेकिन खुद के पूर्व जन्म में झांककर नहीं देखते है।
यह ईश्वरी शक्ति के प्रति सम्मान भी हो सकता है, या यूं कह लें कि उस विज्ञान को भलीभांति जान चुके होते, जो प्रकृति का सदुपयोग बनाए रखने के लिए अत्यंत अनिवार्य है।
ठीक इसी तरह मेरी मित्र कायरा ने भी शक्तिशाली होने के बावजूद भी कभी अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं किया, वह तो आज भी उतनी ही सरल अपने मेमने को दिनभर लेकर बैठने वाली कायरा थी, उसने संपूर्ण सृष्टि की रचना और मजबूत आत्माओं को न्याय दिलाना ही अपना कर्तव्य मान लिया था, जिनकी तरफ से या जिन्हें कोई भी मदद देने को तैयार नहीं था।
ऐसी उन अबलाओ की मदद करना जी समाज आज चंद समय कि गुमनामी के पश्चात ढूंढने का प्रयास नहीं करती, शायद इसलिए क्योंकि उन्हें सिर्फ साधन की तरह इस्तेमाल किया जाता है, या किसी अपने की ही करीबी की मदद से गुमनाम होने के लिए मजबूर कर दिया जाता है।
मेरी सखी कायरा चाहती तो खुद एक नई सृष्टि का निर्माण कर पाने में सक्षम होती, यदि वह चाहती तो अपने पूर्व जन्म में पुनः झांक सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और शायद यह अच्छा भी था, क्योंकि जिस दर्द के साथ उसने अपने प्राण पूर्वजन्म में त्यागे थे, यदि उसके 1% का भी ज्ञान उसे इस जन्म में हो जाता , तो शायद वह बर्दाश्त न कर पाती।
लेकिन ईश्वरी न्याय कभी टलता नहीं और इस संपूर्ण कायनात को चलाने वाली शक्ति जिसे आज तक कोई न जान पाया, जिसकी नजर में अमीर, गरीब, छोटा , बड़ा ,जीव जंतु या मनुष्य कीट पतंगे और यहां तक कि सूक्ष्मजीव में भी कोई अंतर नहीं, वह सबको बराबर की नजर से देखता, सबके लिए उसने एक निश्चित कर्म विधान बना रखे थे , जो कहीं ना कहीं सृष्टि के संतुलन हेतु अनिवार्य है।
जब भी कोई इसके परे जाने का प्रयास करता, और अत्याचार तो वह निश्चित तौर पर उनके लिए दंड का भी प्रावधान रखता है, और शायद वह समय आ चुका था, कि जब मेरी सखी कायरा स्वयं ऐसा इंसाफ करने जा रही थी , जो खुद उसके पूर्व जन्म से जुड़ा हो।
कल की कल्पना आज कायरा के रूप में असीम शक्तियों की धारणा करने वाली यह तो नहीं जानती थी, कि उसका पिछला जन्म क्या था ????और ना ही उसने कभी यह जानने का प्रयास किया, क्योंकि उसके साथ पिछले जन्म में क्या हुआ था, लेकिन यह भी सच था की स्मृतियां में जाने के बाद भी कुछ खुशनुमा पल कुछ चेहरे जिससे बहुत अपनापन होता है, उसने अगले जन्म में मुलाकात पर भी आत्मीयता झलकती है।
वही ऐसे खौफनाक पलों को भूल पाना जिससे मानव शरीर ही नहीं, रूह को भी चोट पहुंचाई हो, उसे भुला पाना उस आत्मा की भी शक्ति के वश में नहीं होता, शरीर की यादें शरीर के साथ समाप्त हो जाती, लेकिन अंतरात्मा को मेरी तकलीफ को ईश्वरी शक्ति भी नहीं मिटा पाता है।
शायद इसलिए जब कायरा किसी स्त्री पर अत्याचार देखती है, तो उसका वह स्वरुप प्रकट हो जाता हैं, जिसकी कल्पना कर पाना भी संभव नहीं है, शायद इसका मूल कारण उस पर हुए अत्याचार की तरफ जो उसकी अंतरात्मा ने बर्दाश्त की होगी।
आज वह यदि निर्दयता से अपराधियों को दंड दे पाने में सक्षम है, तो शायद उसके इसी क्रोध के ऊपज का मुख्य स्रोत पूर्व जन्म की तड़प ही है।
आज सुबह सुबह अचानक ना जाने क्यों कायरा किसी अनजान सफर पर निकल पड़ी, उसका मन ना जाने क्यों अशांत सा लग रहा था, लेकिन उसकी गति और भटकाव से मुझे साफ नजर आ रहा था, कि वह कुछ कर पाने में सक्षम नहीं हो पा रही थी ,और इसका मूल कारण शायद उस पुकार को ना पहचान पाना।
लेकिन जबरन ही उस और खिंचाव उसे व्यतीत कर रहा था, और शायद इसलिए ऐसी परिस्थितियों के लिए ही मुझे मेरी सखियों की मदद करने हेतु भेजा गया था, कायरा के लिए स्वर नया था हो सकता था , लेकिन मेरे लिए नहीं।
वास्तव में यह पुकार कल्पना के पिता की थी, उन्हें ना जाने कितने दिनों से एक कमरे में बंद कर सिर्फ इसलिए रखा गया था, क्योंकि उन्होंने इतने दिनों बाद कल्पना की मौत का सही पता कर लिया था, और अपनी स्वयं की अपनी ही पत्नी का उसमें शामिल होना, उन्हें बहुत ही दुख पहुंचा रहा था।
जब उन्हें यह मालूम पड़ा की कल्पना की सास के भड़काए जाने के बाद खुद कल्पना की सौतेली मां ने लालच में खुद अपने ही बहन की शादी करवाने का विचार हिमेश (कल्पना का पति) के साथ करने की पूरी योजना के साथ कल्पना को प्रताड़ित करना, एक मां का फ़र्ज़ भुल उसे अंजाम तक पहुंचाना, वह भी बिना किसी खौफ के।
और इसके पश्चात कल्पना के पिता को भ्रम जाल में डाल अपनी सगी बहन की शादी हिमेश से करवाने हेतु प्रस्ताव रखना, और अपनी योजना में सफल हो जाना।
इन सब के पश्चात कल्पना के पिता को यह किसी अनजान शख्स से यह पता चलाता, विरोध और क्रोध किए जाने पर उन्हें वृद्धा अवस्था का लाभ उठा, पूरी संपत्ति की मालकिन बन बैठी कल्पना की सौतेली मां, हिमेश साथ मिलकर उन्हें काफी दिनों से एक कमरे में बंद रखा, तड़प कर मरने के लिए, और ऐसे समय में वह पिता जिसे अभी अभी अपनी ही बेटी के खिलाफ रची गई कूटनीति में अनजाने में शामिल हो जाने की आत्मग्लानि खाए जा रही थी।
और वह हर पल हर दिन अपनी दिव्यंगत बेटी कल्पना से माफी मांगते रहते,और उन्हें अब भूख प्यास की तड़प कम,लेकिन हमेशा अपनी बेटी की चिन्ता सताते रहती।
आखिरकार कायरा अपने उस स्थान पर पहुंच ही गई, जहां उसका पूर्व जन्म हुआ था , जो उसका गांव था, कैसे कब वह चलते-चलते गई , और देखते देखते हो अपने पिता के पास अचानक पहुंच गई, और अपनी सौतेली मां और अपने पति हिमेश को देखकर उसे बहुत गुस्सा आता है,
हिमेश और कल्पना की सौतेली मां कायरा को देखकर आश्चर्यचकित होती है, तब कायरा कहती है, आश्चर्य हो रहा है , तुम दोनों को मुझे जिंदा देखकर ,
तुम वही हिमेश हो ना जिसने मुझे धोखे से जंगल ले जाकर और मेरी निर्मम हत्या कर दी थी, और अपनी मां से क्या कहूं, तुम तो मां कहलाने के लायक ही नहीं हो, अपनी बहन की शादी हिमेश से करवाने के लिए तुम लोगों ने इतनी बड़ी साजिश रची, और मुझे मौत के घाट उतार दिया।
अब इसका दंड मैं तुम्हें उस जन्म में तो नहीं दे पाई, लेकिन ईश्वर ने मेरा पुनर्जन्म तुम लोगों को दंड देने के लिए ही किया है, और कायरा अपनी शक्तियों का उपयोग करके दोनों के ऊपर एक फूंक मारती है, और दोनों ही अपाहिज होकर वहीं गिर पड़ते हैं, वे लोगों की येसी हालत हो जाती, कि उन्होंने अपने पूर्व जन्म में कल्पना के साथ जो अत्याचार किया था, उसकी माफी मांगने के लायक भी नहीं बचते हैं।
कायरा अपने पिता से जाकर गले लगती है, तब उसके पिता कहते हैं, बेटी मुझे माफ कर दो, जब सबसे ज्यादा जरूरत तुम्हें मेरी थी, तब मैं कुछ नहीं कर सका, तब कायरा अपने पिता से कहती हैं, इसमें आपकी कोई गलती नहीं थी,
कायरा के पिता कहते कि अब मैं भी यहां रह कर क्या करूंगा???? तब कायरा अपने पिता को कुछ शक्तियों के साथ दुसरे लोक भेज देती है।
और हिमेश की पत्नी उर्फ दामिनी देवी की बहन भी हिमेश को छोड़कर चले जाती है, अब वे दोनों एक अपाहिज का जीवन बिताते हैं ,
और मैं यह सब देखकर बहुत खुश होती हूं, कि आखिर मेरी दोस्त कायरा को अपने पिछले जन्म में जो कि कल्पना थी, उसे इस जन्म में आकर इंसाफ मिला, और कायरा खुशी खुशी अपने एक नए राह की और चल पड़ती है ।
शेष अगले भाग में......