मुझे आपका बेखौफ विचरण इस हवेली में यह तो साफ दर्शाता है कि आप की सासू मां से मिलने के पश्चात आप काफी खुश है, यह मेरे लिए हर्ष की बात है, लेकिन इधर उधर ताकती हुई आपकी नजरें और उस में छुपे हुए प्रश्न, जो अभी तक शेष है, उनका जवाब भी मुझे देना है ।
क्योंकि यदि इन प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया गया तो, शायद आपका मन अस्थिर बना रहेगा, जो आपके पारिवारिक जीवन पर असर डाल सकता है।
और इस बात की दोषी मैं नहीं होना चाहती, क्योंकि वैसे भी नगरवधू की हवेली किसी शांति धाम से कम नहीं होती, यहां आने वाला कभी भी अस्थिर होकर नहीं लौटता, खैर शायद मेरे सवाल में ही आपका जवाब है,आइए आपको कुछ दिखाना है, शायद आपके कुछ प्रश्नों के जवाब मिल जाए।
कहते हुए धनंजय को एक और दरवाजे की ओर ले जाया गया, दरवाजा खुलते ही किसी तेज रोशनी ने जैसे उन्हें आंखें बंद करने पर मजबूर कर दिया, रजनी देवी ने मुस्कुराहट के साथ चुटकी बजाई , और पल भर में रोशनी काफूर हो गई, सब कुछ सामान्य हो गया।
आश्चर्य घोर आश्चर्य, चमत्कारी शक्तियां वह भी रजनी देवी के पास, वह सोच ही रहा था कि रजनी देवी ने मुस्कुरा कर कहा, सती का सतीत्व और उसकी साधना कोई कम नहीं होती, यदि वह चाहे तो स्वयं सर्वशक्तिमान बन, विदा तक की स्थिति को भी चुनौती देने में सक्षम हो सकती है,
शायद आप समझ गए होंगे, यदि आपने शास्त्रों का अध्ययन किया होगा तो,
खैर मैं आपकी विद्वता पर नए सवाल नहीं खड़ा करना चाहती, भीतर आइए आपको आपके सवाल के जवाब मिल जाएंगे, जैसे ही धनंजय जी ने उस विशाल कक्ष में प्रवेश किया, देखकर दंग रह गए,
क्योंकि वह कोई सामान्य कक्ष नहीं था,किसी महल का सुशोभित राज सिंहासनो और उसकी सभी साज सज्जा सहित वहां अनेकों अस्त्र-शस्त्र भी थे, जिन्हें देखकर ऐसा लगता जैसे उन्हें अभी अभी साफ कर रखा गया है।
इन सबके बीच एक दीवार पर कुछ तस्वीरें टंगी थी, जिन्हें देखकर ऐसा लगता था, जैसे किसी पुराने चित्रकार ने बड़ी फुर्सत से उन्हें बनाया हो, उन चित्रों में उस समय के महाराजा रजनी देवी के साथ और उनके छोटे भाई अलग-अलग स्त्रियों के साथ नजर आए, और हर किसी के साथ एक तिथि अंकित थी, और परिचय लिखा हुआ था।
आश्चर्य, घोर आश्चर्य रजनी देवी किसी बड़े राज घराने की बेटी, चंदा देवी की मां उसी राजघराने से , और ऐसे ही बची हुई पांच स्त्रियां रानी की तरह नजर आ रही थी।
मतलब यह सब क्या है????? रजनी देवी मुस्कुराते हुए कहने लगी,कुछ नहीं जमाई सा....
यह वचन, अधिकार और कर्तव्य तीनों का समावेश है।
एक बार राजा अपने भाइयों के साथ भ्रमण के दौरान हमारी राजधानी में पधारे थे, और हम बहनों को जब उन्होंने मंदिर में पूजन के दौरान देखा तो, हम पर मोहित हो, हमारे पिता से हमारा हाथ मांगा ,
चूंकि राजा सभी गुणों से परिपूर्ण थे, और हमारे पिता उनकी जानकारी रखते थे, इसलिए उन्हें सहज स्वीकार कर लिया, और हमारा विवाह बड़े धूमधाम से उन राजकुवरों से कर दिया गया।
विवाह के लगभग एक माह तक उन्होंने हमारी राजधानी में निवास किया,इसके पश्चात जब हम विदाई ले, उनके इस राज्य में आए,तब हमें पता चला कि पहले से ही राजा का विवाह हो चुका है ,और इत्तफाक से पहली रानी ने मुझे स्वीकार करने से इंकार कर दिया।
लाख समझाने बुझाने के पश्चात भी जब बात ना बनी और राजा अस्थिर नजर आने लगें, तब फैसला हुआ कि हम महल से ही लगे हुए इस हवेली में निवास करेंगे ,और राजा जब चाहे तब यहां आ जा सकते हैं, लेकिन मुख्य महल में रहने की अनुमति नहीं।
मैं स्त्री के मन को अच्छे से जानती थी, और चूंकि मैं दूसरी पत्नी थी, इसलिए प्रथम हक उनकी पहली पत्नी को ही था, और ज्यादा बात करने से बात बिगड़ती जो मैं नहीं चाहती थी,
रानी का यह व्यवहार देख शेष छः भाइयों ने दूसरा विवाह करने से इंकार कर दिया, और यह चुनौती दे डाली कि यदि बड़ी रानी सा ने मुझे स्वीकार नहीं किया, तो वे भी अपनी इन्हीं रानियों के साथ अपना सारा जीवन बिताएंगे या आजीवन बिना दूसरा विवाह किए यूं ही रह जाएंगे।
यह उनका मेरी बहनों के प्रति असीम प्रेम था, और हम सब यहां आ गए, महलों की ही प्रतिकृति इस हवेली को बना दिया गया, बस अंतर था तो इतना कि राजकुवरों का दिन तो वहां कटता था, लेकिन राते इसी हवेली में गुजरती थी।
धीरे-धीरे समय बीतता गया, और हम सभी ने पुत्रियों को जन्म दिया, लेकिन समाज का दृष्टिकोण नहीं बदला जा सकता, खासकर जब तबकि एक और समाज स्त्री को देवी की तरह पूछता है,
वहीं दूसरी ओर उन्हें कलंकिनी और अपशब्द कहने में पिछे नही हटता, हमारा मान सम्मान बचा रहे, और आजीवन किसी भी प्रकार का कोई कष्ट ना आए,यह सोच राजकुवरों और राजा के साथ मेरे पिता ने अपनी संपूर्ण संपत्ति को तिलिस्म के साथ हमारे पास एकत्रित कर दिया।
उन्हें मनुष्य पर अब विश्वास शेष ना बचा था, इसलिए अब उन्होंने नाग बंध का इस्तेमाल किया, जिन्हें कोई साधक या उस धन का सच्चा स्वामी ही खोल सकता था।
यह संपत्ति तभी प्रकृट होती हैं, जब इसका सच्चा स्वामी संयुक्त रूप से बिना किसी छल के सदकार्य या निज उपभोग के लिए उसे प्राप्त करना चाहे, अपनी दोहरी जिंदगी जीते जीते रानी या राजा दोनों ही थक चुके थे, और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए थे।
हम बहनों ने इसे अपना भाग्य समझ एकांतवास स्वीकार किया, चंद विश्वसनीय सेविकाओं के साथ हम यहां जीवन व्यतीत करते हैं, यह सारा माल एक चमत्कारिक शक्ति से घिरा हुआ है, जो हमारे परदादा ने अपने प्रधान तांत्रिक से तैयार किया था।
जब बेटियां विवाह के योग्य होने वाली लगी तो, हमें हमने राज परंपरा के अनुसार उन्हें स्वयंवर की अनुमति प्रदान की, और उन्हें लेकर वर्षों बाद आने वाले इस मेले में लेकर गए, जहां से आप लोगों ने आप की परंपरा के अनुसार उनका वरण किया।
आशा है अब आप हमारे कुल और अपनी पत्नी का सत्य जान चुके होंगे।
धनंजय जी गौरवान्वित हो उठे, यह जानकर कि चंदा कोई सामान्य नहीं, अपितु राजघराने की राजकुमारी है, लेकिन यह सोच उन्होंने रजनी देवी को प्रणाम किया, और बोले क्षमा करना, कुछ समय के लिए मैं भ्रमित हो गया था, और चंदा को लेकर मेरे मन में कुछ समय के भ्रांति पैदा हो गई थी।
पता नहीं कैसे और क्यों????? जबकि वरन के पश्चात स्त्री का कोई अस्तित्व शेष नहीं बचता, और उसके पति को उसके भूतकाल से कोई भी मतलब नहीं होना चाहिए।
यहि शास्त्रों का भी मत है, और खासकर तब मैं और भी झूठा हो जाता हूं, जबकि इतने वर्षों से वह मेरे साथ जीवन व्यतीत कर रही है, और मेरे संपूर्ण परिवार की बागदौड़ भलि भांति संभालते आई है,
निश्चय ही मैं अपने आप को भाग्यवान समझता हूं, कि मुझे चंदा जैसी पत्नी मिली, और मेरी आत्मग्लानि मैं नहीं जानता हूं कि मैंने और लोगों की तरह इस हवेली की तरह नगरवधू महल समझने का दुष्कर्म किया, बिना सच जानें,
मुझे क्षमा करें और आशीर्वाद दे कि मेरे समाज का कल्याण हो......
शेष अगले भाग में........