मैं कुछ-कुछ समझ पा रही थी, मेहमानों की चहल पहल और कल्पना की सौतेली मां का सबके सामने कल्पना से इतना प्यार करना, और जैसे सबको दिखाना कि वह कल्पना से कितना प्यार करती है, मुझसे कल्पना की मां ने कहा कि कल्पना को अच्छी तरह से तैयार कर दो, वैसे तो कल्पना इतनी खूबसूरत थी कि उसे सजने सवरने की कोई जरूरत ही नहीं, कल्पना किसी परी से कम नहीं लगती, जो भी उसे देखता ,तो बस देखते ही रह जाता ..
हम सब घर आए मेहमानों की आवभगत में लग गए, उनके लिए अलग-अलग तरह के पकवान बनाए गए और सब ने बैठकर साथ खाए, मेहमानों के जाने के बाद सब ने कहा कि चलो सब कुछ अच्छे से हो गया।
मैं भी मेहमानों के जाने के बाद अपने घर आ गई, कुछ दिनों के बाद फरमान आया कि तुम्हारी बेटी कल्पना हमें बहुत पसंद है, हम हमारे बेटे का विवाह आपकी बेटी कल्पना से करना चाहते हैं, अगर आप लोग विवाह के लिए तैयार हो तो, जल्द ही तिथि निकालकर हम कल्पना और हिमेश का विवाह कर देंगे, मेहमानों को यूं घर बुलाना, कल्पना से उनके सामने प्यार दिखाना, यह सब दामिनी देवी की सोची समझी साजिश थी।
विवाह की बात सुनकर तो जैसे दामिनी देवी के मन का ही हो गया, लेकिन कल्पना के पिताजी ने कहा कि अभी तो कल्पना मात्र पंद्रह वर्ष की है, और स्कूल में ही पढ रही है, इतनी जल्दी शादी..........
तभी बीच में ही ठोकते हुए दामिनी देवी ने कहा, पंद्रह वर्ष कोई कम उम्र नहीं होती, इतने वर्ष में तो लड़कियों का विवाह हो ही जाता और जब आगे से इतना अच्छा रिश्ता आया है, तो हमें मना नहीं करना चाहिए, ऐसे रिश्ते चिराग लेकर ढूंढने से भी नहीं मिलते,
सुना है कि वह केवल दो भाई है, और घर में अच्छी खासी खेती है, और दो ट्रैक्टर भी है, हमारी बेटी वहां राज करेगी, तब कल्पना के पिता ने भी इस प्रस्ताव के लिए हामी भर दी।
जब कल्पना को इस बात का पता चला, तो वह कुछ ना कह पाई, बस अपनी मां की तस्वीर के सामने जाकर बैठ शांत होकर देखने लगी, क्योंकि कल्पना की मां का सपना था कि कल्पना खूब पढ़े लिखे, आज वो सपना कल्पना को टूटता हुआ नजर आ रहा था,
जब मुझे इस बात का पता चला तो मैं कल्पना से मिलने कल्पना के घर गई, कल्पना को देख मेरी आंखों में आंसू आ गए, मैंने कल्पना से कहा कि तूने इस विवाह के लिए हां क्यों कहा????तब कल्पना ने कहा कि मेरी मर्जी यहां पूछी ही किसने.......
तब मैंने कल्पना से कहा कि तू जाकर इस विवाह के लिए मना कर दे, और साफ-साफ कह दे कि मुझे आगे पढ़ाई करना है, तब कल्पना ने कहा कि नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती, मेरे लिए मां और पिताजी ने जो फैसला लिया होंगा मेरे विवाह के लिए, वह सही ही लिया होगा, माता-पिता अपने बच्चों का कभी बुरा नहीं चाहते,
तब मैंने कहा हां, मुझे मत बता तेरी सौतेली मां का प्यार, कितना प्यार तुझे वह करती है, दिन भर तुझ पर कितना प्यार लुटाती है, देख रही हूं सब.......
पंद्रह वर्ष में तेरा विवाह करने का नहीं सोचती, अगर तू जाकर मना नहीं करेगी तो मैं खुद जाकर मना कर देती हूं, तब कल्पना ने उसे कहा नहीं, तू भी ऐसा नहीं करेगी और अपनी दोस्ती का वादा देकर उसने मुझे चुप करा दिया, तब मैंने कहा कि मुझे तो तेरी मां पर उसी दिन शक था, जब उस दिन घर में मेहमानों को बुलाया था, मैं तभी समझ गई थी कि इनके मन में जरूर कुछ चल रहा है,
मेहमानों के सामने तेरी इतनी तारीफ करना और तुझे इतना लाड़ दुलार करना, मुझे सब समझ आ रहा था, समझती तो कल्पना भी थी, लेकिन कभी कुछ बोल ना पाई........
तभी कल्पना बस कर और कितना गुस्सा करेगी जो मेरी किस्मत में है वही होकर रहेगा,किस्मत का लिखा कोई नहीं बदल सकता और कहते हुए कल्पना की आंखों में आंसू आ गए, शादी की तिथि चार महीने बाद की निकली, अब कल्पना शांत शांत सी रहने लगी, मैं जब भी कल्पना से मिलती तो उसका बुझा बुझा सा चेहरा मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता, पर मैं हर पुरजोर कोशिश करती कि कैसे भी कल्पना के चेहरे पर थोड़ी ही सही पर खुशियां ला पाऊं
मैं उसे बहुत हंसाती और हम दोनों के बचपन की बातें याद करके हम बहुत हंसा करते, उधर कल्पना की मां ने कल्पना के शादी के लिए जो गहने बनाए वह उसकी सौतेली मां दामिनी देवी ने रख लिए थे, और उसने कल्पना के पिताजी को कह भी दिया कि कल्पना को गहने देने की कोई जरूरत नहीं है, उसका तो इतने बड़े घर में विवाह होने वाला हैं, तब उसे वहां किस चीज की कमी होगी, कल्पना के पिताजी ने भी दामिनी की बातों में आकर हामी भर दी, अब शादी की सारी तैयारियां दामिनी के हिसाब से ही हो रही थी,
शादी में कितना खर्च करना है??किसे बुलाना है?? और क्या-क्या करना है?? सब कुछ दामिनी के हिसाब से ही चल रहा था, दामिनी का जैसा पूरे घर पर अपना कब्जा था, और उसने एक बार भी कल्पना की मर्जी जानने की कोशिश तक नहीं की,
आखिर उसकी भी कुछ इच्छा कुछ सपने रहे होगे, स्वाभाविक सी बात है कि हर लड़की के अपनी शादी को लेकर कुछ सपने होते, पर कल्पना की सौतेली मां ने कल्पना की हर इच्छा को मार दिया.......
मैं जब भी कल्पना के घर कल्पना से मिलने जाती, तब यह सब अपनी आंखों से एकटक होकर सिर्फ देखती रहती, पर कुछ कह न पाती, उसकी मां के आगे उस घर में किसी की भी एक ना चलती,
एक दिन मैं कल्पना से मिलने गई और मैंने देखा कि कल्पना की मां बैठकर भोजन कर रही थी और कल्पना इतनी धूप में बाहर काम कर रही थीं,
मुझसे तो उस दिन रहा ही नहीं गया और मैंने कल्पना की मां से कह दिया, चाची भले कल्पना की आंखों पर तुमने पट्टी बांध दी होगी, लेकिन मुझे सब कुछ दिखाई देता है, अरे वह और इस घर में कितने दिनों की मेहमान है, जो तुम उससे इतनी धूप में भी काम कराने से पीछे नहीं हटी, और खुद आराम से बैठकर भोजन कर रही हो,
तब कल्पना की मां का गुस्से में तमतमाता हुआ चेहरा और उन बड़ी-बड़ी आंखों से मेरी तरफ देखना,
कल्पना ने मुझे इशारा कर शांत होने के लिए कहा, मां को कुछ ना बोल, मुझे मां ने नहीं कहा यह सब करने को, मैं ही अपनी मर्जी से यह सब कर रही हूं, मां ने तो मुझे पहले भोजन करने को कहा पर मैंने ही मां की बात न मानी और धूप में निकल कर काम करने लगी,
तब मैंने कहा, कल्पना बस कर और कितनी बातें इनकी यूं ही छुपाती रहेगी, बस करो उनके गुणगान गाना..... मुझे कोई सफाई देने की जरूरत नहीं, मुझे सब कुछ दिखाई देता हैं,अंधी नहीं हूं मैं,
कल्पना की मां गुस्से से अंदर चली गई, मैंने कल्पना को पहले भोजन करने के लिए कहा और उसके बाद हम दोनों बातें करने बैठ गए।
देखते ही देखते पता ही नहीं चला और चार महीने कैसे बीत गए, आख़िर विवाह की तिथि का वह दिन आ ही गया, जिस दिन कल्पना की शादी होने वाली थी।
शादी के बाद कल्पना की जिंदगी में क्या मोड़ आता है????
शेष अगले भाग में.........