क्या हुआ किस सोच में डूबे हो????मुझे तुम्हारे चेहरे पर चिंता साफ नजर आ रही है, अगर कुछ प्रश्न हो तो तुम पूछ सकते हो??अब यह सुनते हुए जैसे बलवीर कुम्हार चौंक पड़ा, क्योंकि जैसे ही उसने वह पोटली उस सुनार को दी थी,और जिस लहजे में उस बूढ़े सुनार ने उसे आश्चर्य से देखकर किसी किमती वस्तु की तरह पकड़ा था, उसे देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे वास्तव में कोई बेशकिमती चीज उसके अंदर छिपाकर रखी गई है।
लेकिन बलवीर के सामने ही तो उन सुखते हुए पत्तों में से एक पत्ता उसके सामने ही एक छोटे संदूक में रखा था, जिसे उस समय बलवीर को यह सोच हंसी आ रही थी, कि भला पत्तों को सुखाने के लिए भी कोई इतना व्यस्त हो सकता है।
और महज एक पत्ते को उसी के सामने उठाकर पहले छोटे संदूक में रखा गया, फिर उसे पोटली में रखा, विक्रम ने सचमुच इतने अदब से दिया था, जितनी अदब से इस बुढ़े सुनार ने उसे स्वीकार किया।
क्या वाकई में यह दोनों ही पागल है???? या फिर बलवीर के समझने में कोई कमी है, आखिर चल क्या रहा है?? और क्यों उस पोटली को देखते ही इतना बड़ा सुनार यह समझ गया कि, यह विक्रम के ही द्वारा दी गई है,
और विक्रम ने ऐसा क्यों कहा कि बाकी पत्तों के सूख जाने पर पहुंचा दिए जाएंगे ,और फिर ऐसा क्या हुआ की पोटली हाथ में आते ही बड़ी सावधानी से अपने बेटे को इशारा कर, बलवीर को ले उसी दुकान के एक बड़े रास्ते से होते हुए, जैसे किसी गुप्त कमरे में आकर रुके गए।
इस बीच कई बार बलवीर के दिल और दिमाग में उठता हुआ स्वर चीख चीख कर जानना चाहता था, कि आखिर पोटली को देखकर विक्रम की पहचान कैसे??? पोटली में यह क्या है ????और उस सुनार का विक्रम से क्या रिश्ता है???
लेकिन तभी एक बड़े से कमरे में गोल मेज के पास वह बुढ़ा थोड़ा रुक गया, और वहां रखी कुर्सी पर बलवीर को बैठने का इशारा किया, उसे पीने को थोड़ा पानी ,शरबत सब कुछ बड़े सम्मान से दिया गया।
अनेकों सवाल लिए बलवीर कुम्हार किसी स्वप्न की भांति सब कुछ देखने को विवश था, उसे यकिन नहीं हो रहा था, कि जिसे सारा गांव फिरशता, अवघड़, बैरागी, जंगली और ना जाने क्या-क्या कह कर पुकारता है।
उसकी पहचान महज मिल जाने से उसकी आवभगत हो रही है, जिसकी कल्पना स्वप्न में भी संभव नहीं, तभी बूढ़े सुनार ने एक स्वर्ण मुद्रा से भरी पोटली बलवीर के हाथों में थमा दी, और बोला मैं जानता हूं, कि विक्रम यूं ही किसी को हमारे पास नहीं भेजता।
अवश्य ही तुम्हें कोई बड़ी परेशानी होंगी, लेकिन बेफिक्र रहो, यदि इतने में ना हो पाए तो तुम बेझिझक कह सकते हो, अभी इसी समय उसे भी पूरा कर दिया जाएगा।
बलबीर ने अपनी पोटली खोलकर देखा तो, उसे पहले ही जरूरत से कहीं ज्यादा और सोच से परे धनराशि बिना मांगे मिल चुकी थी, लेकिन क्यों,, अभी उसके दिमाग में अपनी जरूरत से कहीं ज्यादा विक्रम की पहचान जानने की जिज्ञासा उठ रही थी।
उसने हिम्मत जुटाकर बूढ़े सुनार से पूछ लिया, नहीं नहीं जरूरत से बहुत ज्यादा है, लेकिन बस एक छोटे से सवाल का जवाब मिल जाता तो, उसके प्रश्न पूरा करने से पहले ही सुनार ने कहा कि, विक्रम की पहचान जानने को छोड़कर जो भी सवाल हो, पूछ सकते हो।
बस इतना कह सकता हूं, हमारा पुराना परिचय है, और उसके लिए यह कुछ भी नहीं... पत्ता, पोटली, संदूक सब माध्यम है, यह कुछ खास नहीं है, बस कुछ खास बनावट और तरिके हमें अपनो की पहचान दिला देता हैं,
आपको मेरा सेवक अगली गली तक छोड़ आएगा, बस एक बात याद रखिएगा, कि यहां जो भी हो, और आपने जो भी देखा इस विषय में किसी से भी कोई जिक्र ना करें, और दोबारा इस और आना नहीं बिना किसी उचित कारण के, कहते हुए उन्होंने सेवक को इशारा किया।
जबरदस्ती ही सही बलवीर को सेवक ने उठाकर उस घर के ना जाने कितने ही गलियारों में घुमाया, जिसे देख कर यह साफ स्पष्ट था, कि उसे भटकाया जा रहा है, और फिर अचानक एक दरवाजे से उसे बाहर ले आया।
आंखों में पट्टी बंधी होने के कारण बलवीर कुछ समझ ना पा रहा था, बस उसने बड़ी ताकत से उस पोटली को जकड़ रखा था, और यह प्रयास कर रहा था कि रास्ता याद कर सकूं, लेकिन यह संभव ना हो सका।
सेवक ने जैसे ही उसे एक दरवाजे से बाहर निकाला, तो सुरज की तेज रोशनी का स्पर्श पा बलवीर समझ गया, कि वह खुले मैदान में आ चुका है, सेवक ने थोड़ी दूरी पर ले जाकर बलवीर को खड़ा किया और उसे अपने ही स्थान पर तीन बार घुमाकर छोड़ दिया, और एक झटके से उसकी आंख में बंधी हुई पट्टी को खोल कर बड़ी फुर्ती से वहां से भाग गया, किसी बच्चे की तरह, जैसे कोई आंख मिचौली का खेल चल रहा हो।
बलवीर आश्चर्यचकित था कि पूरे दिन का सफर करने के बाद चलकर वह जिस जगह पहुंचा था, वहां से वह चंद मिनटों में चौराहे पर कैसे आ गया??? क्योंकि यह चौराह उसके गांव के नजदिक बनी पगडंडी के पास था, वह कहां से निकला और कहां गया, उसे कुछ समझ ना आया।
मारे डर के अपने घर की ओर भागा और घर जाकर सर्वप्रथम उन स्वर्ण मुद्राओं को गिना, जो बिल्कुल ठीक-ठाक और सही मात्रा में थे, पत्नी को सारी बातें वो विस्तार से न बता सका, क्योंकि उसे स्पष्ट आदेश दिया गया था, और इतनी देर में वह समझ चुका था, कि सुनार की कही गई किसी भी बात का उल्लंघन करना उसके लिए हितकारी नहीं होगा।
वह चुपचाप अपने काम में लग गया, और अगली सुबह उसने देखा, विक्रम को जंगल की ओर जाते हुए।
बड़ी कृतज्ञता से वह विक्रम के पास गया, लेकिन उतनी ही मासूमियत से विक्रम ने मुस्कुराते हुए सिर्फ इतना पूछा काम हुआ ????चलो ठीक ,अपना ख्याल रखो ,और इसका किसी से कोई जिक्र ना करना।
पर्याप्त धनराशि तुम्हें मिल चुकी है, और अपने व्यापार को बढ़ाओ , और भूल जाओ इस घटना को कहते हुए वह अपनी मस्ती में जंगल की ओर चल दिया।
ऐसी मासूमियत, विनम्र व्यवहार और सब कुछ होने के पश्चात अंजाना बना रहना, जैसे ना जाने कि उसके मन में विक्रम के प्रति भक्ति भाव पैदा कर रहा था, क्योंकि अब वह दोबारा कभी शायद विक्रम के बारे में कोई अपशब्द कहे, तो वह अब नहीं सुनेगा।
शेष अगले भाग में......