कातिल हसीना (एलिना)- 52
जैसे हर किताब के पहले पन्ने पर सिर्फ लिखने वाले का नाम होता है, और कुछ भी नहीं ना आगे ना पीछे.... हर कोई उस पेज को छोड़ दूसरे पेज से लिखावट को पढ़ता है, लेकिन सही मायने में वह पहला पन्ना ही अपने आप में सहज चंद शब्दों के साथ पूरी पुस्तक का परिचय होता हैं,
सिर्फ चंद शब्द मिलकर उस सम्पूर्ण लेख का परिचय देता है, पता है क्यों????? क्योंकि वास्तव में वह पन्ना खाली नहीं होता, ऐसा कोई भी पाठक नहीं होगा जिसने कुछ समय तक उस पहले पन्ने को घुरकर ना देखा हो, और ऐसा संभव भी नही, क्योंकि खुद लेखक सिर्फ संदर्भ ढूंढने में ना जाने कितना ही समय उस पन्ने के साथ उस पन्ने के सामने गुजार देता है, तब कहीं संपूर्ण लेख की वस्तु स्थिति, जानकारी, विचार और बहुत कुछ का निचोड़ चंद शब्दों में लेख के संदर्भ लेखक के रूप में सामने आता है।
वह कोरा पेज कोरा नहीं होता, उसके पीछे लेखक के मन में उपजने वाले कई ऐसे भाव भी होते हैं, जिन्हें वो लिख नहीं पाया, जिन्हें वह दिल से लिखना तो चाहता है, लेकिन लोक, लज्जा और समाज के कारण लिख नहीं पाता, ठीक उसी पन्ने की तरह, हर किसी के जीवन का एक हिस्सा होता है, जहां होता तो बहुत कुछ हैं, लेकिन वहां सिर्फ व्यक्ति परिचय के अलावा कुछ नजर नहीं आता और ना ही आप पढ़ सकते हैं, जब तक लेखक या वह व्यक्ति दिल खोलकर वह बात ना बताना चाहें।
गगन उर्फ गणेश राम पटेल की इतनी गहरी बात सुनकर सब के दिलों दिमाग में सबके राज उभरते सामने नजर आए , जो उनके चेहरे पर साफ पढ़े जा सकते थे, ऐसे राज जिसे आज तक उन्होंने कभी किसी के सामने बयां नहीं किया, यहां तक कि जिसे उन्होंने खुद से भी छिपा कर रखा था,
लेकिन इसी बीच सिस्टर से बर्दाश्त नहीं हुआ, वह कहने लगी, गगन भटकाओं मत, अभी मैं किसी पुस्तक को पढ़ने के मूड में नहीं हूं, मुझे सिर्फ सच जानना है, सुबह से हर कोई घुमाता जा रहा है, ज्ञानी पंडित इतना सब कुछ छिपा रखा था, हमें पता ही ना लगा......
सच सच बता दे भाई, अब और धैर्य नहीं होता, लेकिन तभी फिर से फोन की घंटी बज उठी, जिसे सुनकर सिस्टर का धैर्य खो गया...
उसने फोन उठाते ही कहा, हां बोलो.... क्या हैं????तभी सामने से फिर वही जानी पहचानी आवाज ने एक नया नाम पुकारा, सिस्टम नाराज हो, क्या मैं आपकी असिस्टेंट सरला सिस्टर से बात कर सकता हूं????? अबकी बार तो जैसे उसे और भी खतरनाक झटका लगा, लेकिन गगन उर्फ गणेश राम पटेल शांतिपूर्वक सुन रहा था।
तभी सरला ने आकर बड़े सम्मानपूर्वक कॉल करने वालों को नमस्कार किया, और बोली हां सर ठीक है, अभी सब ठीक है,कुछ लोग आ रहे हैं, लेकिन चिंता ना करें, मैं हूं और सबकी जानकारी है मेरे पास, बस कोई एक नया शख्स नजर आया था, फोटो आपको भेज दी जिसे मैं नहीं जानती, हम सब यही है और फोन काटने से पहले उसने अपना परिचय "सैफी नंबर 27" कहकर फोन काटा।
सिस्टर का दिमाग चकरा गया, और वह वही चेयर पर बैठ गई, क्योंकि अब तक जिसे वह जो जो समझ रही थी, सब कुछ भिन्न था, एक पल में ही जैसे उसे सब कुछ नया लगा उसे लग, उसे लग रहा था जैसे उसके पास खड़ा हर शख्स उसके लिए अनजान है,क्योंकि जब वह उसके सबसे नजदीकी शख्स गगन और सरला को ना पहचान पाई, तो क्या पता पूरे हॉस्पिटल में कौन-कौन छिपे चेहरे में नजर आए,
यह सोच उसे चक्कर आने लगे और वह वहीं बैठ गई, कुछ ऐसे ही हालात काउंटर पर बैठे बाकी लोगों की भी थी, सिस्टर को पानी पिला थोड़ा नॉर्मल होने पर वह सरला की ओर इशारा कर बोली......
सरला ......मतलब तुम भी ?????हां मैडम मैं भी..... आपकी सरला उर्फ सैफी नंबर 27 उन नौ नंबर मरीज की सेविका हूं, बाकी की कहानी आपको पटेल सर बता देंगे,
पटेल सर...... मतलब कल तक जिसे तुम ऑर्डर देकर सफाई के लिए और चिल्लाकर बाकी कामों के लिए कहती थी, वह तुम्हारा सीनियर है, यार किस कंपनी के बने हो तुम....
ऐसा खतरनाक नाटक कि सीनियर चपरासी बन कर काम कर काम कर रहा हैं और जूनियर नर्स बनकर काम कर रही हैं, और कौन-कौन है यहां ऐसा???? यह भी बता दो????
यह सब क्या चल रहा है????कौन है यह नौ नंबर का मरीज????लेकिन आखिर क्या रिश्ता है तुम लोगों का इससे?????लेकिन तभी अचानक वह उठ खड़ी हो गई, क्योंकि डॉक्टर साहब पलटकर आ चुके थे,
बोले... क्या हुआ सिस्टर????
फिर अचानक दवाइयों की सप्लाई सेल्फ डिलीवरी कैसे होने लगी???? अब मुझे जानने की जरूरत नहीं, समझ नहीं आता अचानक नियम कैसे बदलने लगे, क्या तुम्हें पता है?? और तुम दोनों यहां क्या कर रहे हो???? इसे क्या हुआ कहते हुए डाक्टर ने सिस्टर की और देखा।
फिर गगन और सरला का कोई जवाब ना पाकर फिर से डॉक्टर ने पलटकर फिर सवाल पूछा....
सोनम सिस्टर क्या हुआ???आपको कोई प्रॉब्लम है क्या???कहते हुए उन्होंने सोनम को देखा, लेकिन शायद सोनम सिस्टर अपने से कहीं ज्यादा गगन और सरला पर भरोसा करती थी इसलिए कुछ नहीं सर..... बस यूं ही कह कर बताने को हुई, तभी उन तीनों के दरवाजे तक जाने से पहले डॉक्टर ने फिर एक नया सवाल रखा......
अच्छा क्या तुम में से कोई है बता सकता है कि आज हॉस्पिटल में इतनी हलचल क्यों है???? और मुझे ना जाने क्यों आसपास की गतिविधि में भी अंतर नजर आ रहा है, इतनी गाड़ियां लेकर लोगों का आना और बेतुकी बीमारियां बता कर यूं ही लौट जाना, जबकि उनमें कोई भी बीमारी के लक्षण नहीं थे, और ताज्जुब की बात तो तब थी जब लोग आते थे अपना इलाज करवाने और पूछते दूसरे पेशेंट के बारे में।
हां... खास कर वो केबिन नंबर नौ वाले पेशेंट, जरा उनकी फाइल लाना, मैं भी तो देखूं वह यहां कैसे पहुंचे???
आखिर क्या कारण होगा????
उन बुजुर्ग के इतनी पुछ परख का नौ नम्बर का सुनते ही एकदम से तीनों सक पका गए, जैसे उन तीनों की चोरी पकड़ी गई हो, सब ने उन तीनों की ओर देखा,
सर नौ नंबर .......उनकी ऐसी प्रतिक्रिया से डॉक्टर और भी चौंकना होकर बोले, हां..... हां..... मैंने नौ नंबर ही कहा, और उनकी पूरी फाइल चाहिए, विद पास्ट हिस्ट्री के..... और कौन-कौन उनसे मिलने आया, यह भी बताना।
तभी सरला सिस्टर ने फौरन ऑफिस की आलमारी से नौ नंबर की फाइल उनके हाथ में थमा दी, और डॉक्टर ने बिना देखे, सीधे एडमिशन फॉर्म को निकाला, और जिसे देखते ही वह अपनी कुर्सी पर ऐसे बैठे, जैसे ना जाने क्या देख लिया हो, बस उनके मुंह से इतना ही निकला.....
आई कांट बिलीव दिस.... यह नहीं हो सकता हैं?????
जमीन आसमान का फर्क है, इस तस्वीर में और उस तस्वीर में, जिसे मैं दिन-रात चेकअप के दौरान देखता हूं।
आखिर क्यों ना समझ पाया मैं....हे भगवान......
आखिर कौन था वो?????
शेष अगले भाग में......