कहते हैं कि ईश्वर ने बिना भेद के इस प्रकृति को बनाया है, उसने हर रंग को बड़ी खूबसूरती से एक अलग पहचान दी,
हां यह बात और है कि उसे इंसान ने अपनी नजरों से अलग-अलग रूपों में देखा, लेकिन जब कायनात ए हुस्न की और ईश्वर की सबसे सुंदर रचना की बारी आई तो तब तो हर रंग ही लाजवाब है, और खासकर जब सुंदर मुस्कान, कटीले नैन, नक्श, कमर से नीचे तक लटकती हुई चोटी, और सुशील स्वभाव के साथ चंचल स्वभाव , सुंदर सांवली, जिसे ईश्वर ने जैसे प्रकृति का साकार रूप दे दिया हो।
ऐसी खूबसूरत लाडो आकृति रामचरण की बेटी सबका मन मोह लेने वाली जब कहीं से भी गुजरती तो उसकी उपस्थिति का भार, उसकी खुशबू और मधुर मुस्कान के साथ धीमी लेकिन सुरीली आवाज और संस्कारों से परिपूर्ण अदाएं उस संपूर्ण वातावरण को खुशियों से भर देती है, वह जहां भी जाती जैसे एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव होने लगता है।
रामचरण उस गांव का गरीब किसान लेकिन बेटी के नाम पर सबसे धनी माना जाने वाला एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व का किसान था, उसकी बेटी उसकी मां की तरह सबका मन मोह लेने वाली अत्यंत संस्कारों से भरी और चंचल बातों से सब को हंसा देने वाली एक सफल नायिका से कम नहीं थी, साथ ही साथ ऐसा लगता था जैसे मां सरस्वती की उस पर एक अलग ही कृपा है, वह किसी भी व्यक्ति, वस्तु या कुछ और को भी एक बार देख लेती तो भूले ना भूलती,
ठीक ऐसे ही वह अपने स्कूल में भी सबसे प्रतिभाशाली छात्रों में अव्वल थी, शिक्षकों के कहे अनुसार आगे चलकर संपूर्ण ग्रामीण का नाम रोशन करने वाली एकमात्र ग्राम बेटी का गौरव प्राप्त करने वाली थी, और इसलिए शिक्षकों और ग्राम वासियों के ध्यानाकर्षण का प्रमुख बिंदु भी थी,
वहां हर कोई उसे एक तुलनात्मक दृष्टिकोण से देखता था, हर कोई चाहता कि उसके बच्चे सांवली आकृति या दूसरे शब्दों में जिसे लोग प्यार से श्याम की छवि अर्थात छाया भी कहते, उसी की तरह बने...
सब का मानना था कि उसके पिता रामचरण की सेवा से प्रसन्न होकर जगत को होने वाले सुंदर श्याम ने उन्हें वरदान स्वरूप श्याम सलोनी आकृति को पुत्री रूप में प्रदान किया, धीरे-धीरे समय की डोर बदली और पता ही ना चला की आकृति कब अपने नए रूप में नजर आने लगी, जो अत्यंत ही मनभावन और कांतिमय था,
अभी कुछ दिनों पहले निकली सरकारी नौकरी में उसने महज यूं ही फार्म भरा और उसका चयन पटवारी पद के लिए हो गया, लेकिन शायद यह उसका सपना नहीं था, वह आगे और पढ़ना चाहती थी, जिसकी इच्छा उसने अपने पिता रामचरण के समक्ष प्रकट की और आगे पढ़ने का निवेदन किया।
लेकिन पिता रामचरण मजबूर थे, क्योंकि शहर की पढ़ाई का खर्चा उठा पाना उनके वश में ना था, लेकिन बेटी की इच्छा को भी भला वे कैसे टालते, खासकर जबकि उसकी लग्न सच्ची हो और वह मेहनत करने को नजर आती हो,
तब रामचरण ने मन बनाया कि वह गांव के जमींदार से कुछ कर्ज लेकर अपनी बेटी को शहर पढ़ाने भेजेंगे, इस हेतु उसने अपने रिश्तेदारों और अन्य जानकारों से भी सलाह ली, सबने मिलकर उसे कुछ ना कुछ मदद करने का आश्वासन दिया और यह आश्वासन दिया कि बच्ची की उत्तम पढ़ाई में किसी भी प्रकार की कोई व्यवधान नहीं आने देंगे।
वे उनके परिवार की होनहार बेटी है, और उसे पढ़ाना उन सब की जिम्मेदारी है, उसे जमींदार के पास जाने की कोई आवश्यकता नहीं, लेकिन बात छुपे कहां छुपती,
बात फैलते फैलते जमींदार के कानों तक पहुंची, जिसने पहले से ही आकृति के बारे में काफी कुछ सुन रखा था, लेकिन स्वयं अपनी तरफ से पहल कैसे करें, सोचकर उसने योजनाबद्ध तरीके से ग्राम के सभी होनहार बच्चे को पुरस्कृत करने का फरमान जारी किया,
चूंकि वह सरपंच भी था, इसलिए ग्राम समिति ने सभी होनहार बच्चों के साथ आकृति का नाम भी प्रस्तावित किया, उस समय तक आकृति के पदस्थापना की तिथि और स्थान का निर्धारण भी सरकार के द्वारा प्रकाशित कर दिया गया था, उसका नियुक्ति पद उसी ग्राम में नवनिर्वाचित पटवारी के रूप में नियुक्त दिनांक के साथ जब सरपंच के पास पहुंचा तो उसके मन में लालच भर आया , और वह अविलंब बिना कोई इंतजार किए उसी दिन अपने चयनित रिश्तेदारों के साथ रामचरण के घर बिना किसी सूचना के साथ आ पहुंचा ।
वह अपने पक्ष में गांव के कुछ सम्मानीय बुजुर्गों को भी उसने रामचरण के घर आने का बुलावा दे भेजा, सभी राजी खुशी यह सोचकर रामचरण के घर एकत्रित हुए कि शायद उन्हें नए पटवारी का स्वागत करने के लिए बुलाया गया, और फिर चाहे जो भी हो रामचरण के घर भला कौन न जाना चाहे, और खासकर जब खुद आकृति बिटिया को सम्मानित करने की बात हो तो सभी बन ठन कर और साथ ही साथ जिसे जो समझ पड़ा उपहार लेकर पहुंच गए।
पेन, डायरी, हाथ घड़ी वगैराह-वगैराह क्योंकि उस समय में पटवारी का पद ग्राम वासियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था , लेकिन सभी सभी एकत्रित होने तक जमींदार की मंशा से अवगत ना थे,
सबके आने पर सर्वप्रथम रामचरण को बहुत सी बधाइयां दी गई, आकृति का सम्मान किया गया, उसे ग्राम का आदर्श घोषित किया गया, और तब आगे फिर जमींदार ने अपनी इच्छा जाहिर करते हुए एक नया प्रस्ताव अपने रिश्तेदारों, रामचरण और सम्मानीय वरिष्ठ सदस्यों के बीच यह कहकर प्रकट किया, कि वह चाहता है कि ग्राम की प्रतिभा को उभारने का प्रयास किया जाए और इसे हेतु वह अपनी तरफ से भरसक प्रयास करें,
लेकिन इन सबके बीच वह आकृति बिटियां को देख थोड़ा लालची भी हो गया , अब वह उसे रामचरण की बेटी के रूप में शहर में पढ़ने ना भेज उसे अपनी बहू बनाकर निश्चित भाव से आगे की पढ़ाई के लिए अपने बेटे जो वर्तमान में ग्राम सेवक के रूप में कार्यरत हैं, और साथ ही आकृति के साथ में ही पढ़ा, और होनहार भी है।
यदि सब की राय हो तो कृपया कर समर्थन दें, यह बात सुन उस समय तो जैसे सबके होश ही उड़ गए, क्योंकि ऐसी कल्पना किसी ने भी ना की थी, खुद रामचरण ने भी नहीं, इतने बड़े घर का रिश्ता खुद चलकर इस तरह से उनके घर आएगा , और वह भी मन इच्छा के मुताबिक पढ़ाई के प्रस्ताव के साथ।
सभी ने खुशी-खुशी अपनी हामी भरी और ग्राम विकास और प्रतिष्ठा की दुहाई दे आकृति को भी तैयार कर लिया, लेकिन कहीं ना कहीं आकृति को आशंका की एक झलक नजर आ रही थी, क्योंकि वह जमींदार के बेटे को भलीभांति जानती थी, वह कहीं ना कहीं थोड़ा मतलबी भी अवश्य था, लेकिन इतने बुजुर्गों की सहमति और जमींदार के व्यवहार के साथ आगे की पढ़ाई की मनसा को देख वह भी इंकार ना कर सकी, और उसने थोड़ी आशंकाओं के बाद भी हामी भर दी,
आखिर आकृति को क्या आशंका थी???????
शेष अगले भाग में........