वो अलग-अलग रंगों के गुब्बारे, रेहड़ी और छोटी दुकानों से उठने वाले धुएं में मिश्रित मिठाई की खुशबू, बच्चे की चहकने की आवाज, और तरह-तरह के झूलो और उनमें बैठे कुछ खुशनुमा तो कुछ डरावनी शक्ल लिए हुए बैठे बच्चे,जो बड़ी बहादुरी से झूलों में बैठने गए,
लेकिन दो चक्कर लगाने के बाद ही उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी, तब तो उनके चेहरे देखने लायक होते हैं, और ऐसे बच्चे जानबूझकर झूला रुकने पर सबसे आखरी में उतरने का ढोंग करते हैं, और ऐसे चलते हैं, मानों उन्होंने कोई बड़ी सी जंग जीत ली हो।
इसी बीच निशानेबाजी करतबबाजी और बंगाल के जादू की दुकानों के साथ एक मूल्य में सब सामान की आवाजें पूरे मेले में आनंद को और भी दोगुना कर देती है, उस समय महिलाओ के दिमाग में जैसे पूरी रसोई उतर आती है, और वह छांट छांट कर सामान येसे लेती है, जैसे आज ही पूरे रसोई की कमी पूरी कर लेगी।
इस समय में वह बनिए दुकानदार को बेवकूफ और खुद को बड़ा चालक अनुभव करती है, और बनिया भी उनकी इसी कमजोरी का फायदा उठा आवाज देते हुए उन महिलाओं को अपनी ओर से सभी रसोई के सामान की लिस्ट पढ़कर बड़ी चतुराई से सुनाता, जिससे वह अधिक से अधिक सामान खरीदे, कभी-कभी इसी बीच में बच्चे भी चतुराई से थोड़ा मोड़ा अपना सामान भी खरीद लेने में सफल हो जाते हैं,
वाह कितना अद्भुत और अच्छा वातावरण होगा वहां का, यह सोचकर कायरा मन ही मन मुस्कुरा रही थी, उसे याद है अच्छे से बचपन में, कई बार अपने माता-पिता के साथ ऐसे कई मेले में गई थी ,और आज फिर उसे पिता ने ऐसे ही एक मेले में जाने के लिए कहकर गए थे, जिसमें गांव के बहुत से लोग काफिला बना कर जाएंगे, क्योंकि इतनी दूर का सफर यूं ही अकेले तय करना सुरक्षित नहीं होता।
कबिले के सभी लोगों ने मिलकर यह तय किया कि, वह तड़के सुबह निकल कर शाम तक मेले वाली जगह पहुंच जाएंगे, और उन पीर की (समाधि स्थल) के दर्शन कर रात वहीं गुजारेंगे, और अगले दिन फिर मेले का आनंद ले, वहां से मध्य रात्रि तक घर लौट आएंगे।
सबके मन में मेले की कल्पना अपने अपने अनुसार थी, बच्चे को वहां की रंगत, खिलौने और झूले याद आ रहे थे, तो थोड़ी मध्यम आयु के युवाओं को सफर सुहाना लग रहा था, क्योंकि यही वह मौका था , जो वह बे रोक-टोक एक साथ सफर और मेले दोनों का आनंद ले सकते थे, खासकर वापसी में चांदनी रात के मजे सबके मन में अपनी अपनी बातें अपनी अपनी सोच के अनुसार चल रही थी।
लेकिन कायरा शांत होकर सिर्फ आज की रात में चमकते तारों को निहार रही थी , शायद इसलिए क्योंकि उसके लिए प्रकृति का आज और कल दोनों ही दिन बराबर थे, लेकिन फिर भी ना जाने क्यों इस बार का मेला उसे कुछ अजीब सा लग रहा था, लेकिन वह खुद भविष्य में जाकर देखना नहीं चाहती थी, और उसे कोई खौफ नहीं, यह सोचकर वह आनंद लेकर सो गई।
घर के जरूरी सदस्यों को छोड़कर जिनका रहना पशुओ और घर की सुरक्षा के लिए अनिवार्य था ,या वे सदस्य जो पिछली बार मेला हो आए थे, उन्हें छोड़कर बाकी सब अगली सुबह मेले के लिए निकल पड़े।
ऐसे समय में कायरा के घर का नौकर जोंबो को घर की सारी जिम्मेदारियां सौंप और जरूरी एतिहात के साथ एलिना और उसका परिवार कबीले के अन्य सदस्यों के साथ, जो कहीं ना कहीं उनके परिवार से ही ताल्लुक रखते थे,और कहीं ना कहीं एक ही रिश्ते में बंधे हुए थे, सभी ने मिल जुलकर सूर्य की पहली किरण के साथ सफर की शुरुआत की।
इन सबसे हटकर अगर कोई साथ था, तो वह था गांव का एक मौलवी, जो समाज में अच्छी प्राण प्रतिष्ठा और अपने अच्छे व्यवहार के लिए प्रसिद्ध था, जो किसी भी समुदाय और सदस्य के साथ में बैठने की अहमियत रखता था, वह भी साथ हो चला।
कायरा ने मन ही मन गुरु जी को नमस्कार किया, और अपने मेमने की सुरक्षा सुनिश्चित कर वह भी आगे बढ़ी, लेकिन थोड़ी ही दूर चलने पर उसे यह भान होने लगा कि कहीं ना कहीं कोई उस पर विशेष नजर बनाए रखे हुए हैं।
पहला तो स्त्री होने के कारण वह आसानी से खुद को देखने वाली नजर को भाप सकती थी, और दूसरा कोई भी अदृश्य शक्ति उसे धोखे में डालने में सक्षम नहीं थी, लेकिन कौन???? यह जानना शायद उसने अभी जाना जरूरी नहीं समझा, क्योंकि अक्सर भीड़ में कहीं ना कहीं अनजाने में नज़र फिसल जाना, या इधर-उधर ताकते रहना एक आम बात है।
इसके लिए ज्यादा अच्छा है कि खुद को सहज कर रखा जाए, कोई ऐसी गलती या हरकत ना करें कि कोई नाजायज फायदा उठा , बाकी सारे समाज से लड़ना संभव नहीं, फिर चाहे वह कोई भी हो।
इधर मौलवी अपनी मस्ती में चला जा रहा था, कुछ घंटे चलने के बाद विश्राम के लिए सभी एक घने छायादार पेड़ के नीचे रुख गए, मौलवी पेड़ के निचे लेट गया, और उसकी नज़र ऊपर पेड़ पर पड़ी, जहां उसे कुछ छाया आकृति अत्यंत भयभीत नजर आई।
एक पल के लिए मौलवी चौंका और सतर्क हुआ, क्योंकि वह काली किसी को भी नुकसान पहुंचा सकती थी, लेकिन यह क्या???? उसकी सोच तब दुगना हुई जब उसने मौलवी के सतर्क होने के बावजूद भी रत्ती मात्र भी हलचल ना देखी।
ऐसा लग रहा था कि किसी ने उसे अपनी ही जगह पर बांधकर रख दिया हो, ऐसा कैसे हो सकता है???? भला मेरे ना किए ऐसा काम किसने किया???यहां सोच मौलवी के अहम को ठेस लगी, और स्वाभाविक भी था, उसके लिए यह जानना अत्यंत जरूरी बन गया, कि आखिरकार ऐसी कौन सी शक्ति उनके साथ है, जो बिना देखें उपस्थिति मात्र से नकारात्मकता को निकाल देने में सक्षम है ।
यह सोच मौलवी के मन में सूझा कि यदि वाकई यह सच है, तो जरूर वह उसका पता लगाएगा, और संभव हुआ तो वह पीर शरीफ के दरगाह पर जाकर ऐसी शक्ति मांगेगा, और यकीनन उसे मिलेगी।
लेकिन यह सोचते सोचते ना जाने क्या हुआ,उसने उस शक्ति की जांच करना चाहा,और कुछ बुदबुदाने लगा, और हाथ में एक तिनका ले उछालने को हुआ ही था, कि वह तिनका अचानक जलकर राख हो गया,
बड़ी मुश्किल से उसने अपने आप को जलते जलते बचाया, और चीखते हुए उठ बैठा, उसकी चीख-पुकार सुनकर लोगों ने उन्हें सांत्वना दी, सबको ऐसा लगा जैसे उन्होंने कोई बुरा ख्वाब देखा हो, लेकिन सच तो वह मौलवी और कायरा ही जानती थी, जिस बात से स्वयं मौलवी अभी तक अनजान था, लेकिन क्या?????
शेष अगले भाग में......