भला ऐसे कैसे हो सकता है, कि एक सामान्य स्त्री को संसार की वह ताकत सौंप दी जाए, जो सृष्टि के समस्त नियमों को अपने अनुसार परिवर्तित करने में सक्षम हो, और फिर क्या विधाता यह नहीं जानता कि स्त्री और बालक मन बहकावे में आने वाले सबसे प्रथम चरण में रखे गए हैं,
क्या भरोसा कब किस पर मोहित हो जाए, और संपूर्ण संसार की शक्ति को दांव पर लगा बैठे , और फिर आखिर वह एक नवयुवती ही तो है, कहते हुए वह अत्यंत क्रोधित जान पड़ता था,
वास्तव में उसका क्रोध इसलिए था, क्योंकि उसने वर्षों से तपस्या कर उस लालमणि को प्राप्त करने की इच्छा रखी थी, जिसे आदिशेष ने अपने शिष्य को दिया, और उन्होंने अपनी शिष्या कायरा के गुरु को प्रदान कर दी, जिसे कायरा के गुरु ने इस सृष्टि के सबसे सुरक्षित स्थान कायरा के हृदय में स्थापित कर दिया,
जिसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी संपूर्ण श्रेष्ठ शक्तियों की थी, लेकिन क्यों इस बात से सभी अनजान थे, और शायद इसलिए पहाड़ की तलछटी में खड़ा हुआ यह योगी या यूं कहे किसी शक्ति का पूजारक अपनी नाराजगी जाहिर कर रहा था, क्योंकि वह किसी भी तरह से उस शक्ति को हासिल करना चाहता था , जो संपूर्ण शक्ति का मूल आधार है।
और दूसरी बात तो यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था, कि जिस शक्ति की इच्छा के लिए उसने वर्षो तक तपस्या कि वह किसी स्त्री को यूं ही प्रदान कर दी गई हो, और यही उसकी सबसे बड़ी भूल थी,
जिसे देख उसके समक्ष खड़ी देवी शक्ति उसकी नादानी पर मुस्कुरा रही थी, जैसे ही उसकी नाराजगी बढ़ने लगी, अचानक तेज क्रोध के साथ देवी का गुस्सा जाहिर हुआ,
वह कहने लगी शांत रहो अवध कुमार , सबसे पहले अपनी सोच में परिवर्तन लाओ, अपने पुरुष का अभिमान छोड़ किसी स्त्री की महत्ता को कम मत आंको, तुम्हें इस संसार में मनुष्य का रूप प्रकट करने वाली एक स्त्री ही थी, वरना भटकते रहते सृष्टि में यहां वहां,
बिना किसी स्त्री के त्याग और समर्पण भाव के साथ उसका आश्रय लिए इस सृष्टि पर तो ईश्वर भी कदम ना रख सके, तो फिर तेरी क्या औकात ,
और हे अबोध बालक तू करता साधना देवी की हैं, और उन्हीं के सामने स्त्री पक्ष का गलत आकलन.....
आश्चर्य है तेरी सोच पर ,
आदिशेष अच्छे से जानते थे, किसे इस मणि को सौंपना है, और वह बहुत सही भी थे, हर किसी के बस में नहीं शक्ति को संभाल पाना, खासकर तुम जैसे के लिए, यदि मुझे तुम्हारी साधना का विचार ना होता, तो मैं इसी समय तुम्हारी इस दुष्टता का परिणाम दिखा देती, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि यह नियम के खिलाफ होगा।
लेकिन हां तुम्हें चेवतानी देती हूं कि, गलती से भी उसे साधारण समझकर उसके निकट जाने का भी प्रयास मत करना, वरना तुम्हारा अस्तित्व भी तलाश पाना हर किसी के लिए असंभव होगा, और फिर उस समय मेरे रक्षा कवच की कल्पना भी न करना, यह कहते हुए देवी अंतर्ध्यान होगी।
लेकिन लगातार कठोर साधना के कारण मिली हुई सिद्धियां और उसके मन में भभकती हुई आग ने जैसे उसके सोच-समझ को नष्ट कर दिया था, वह कोई साधक ना होकर एक प्रभावशाली विवेकहिन पुरुष से कोई कम न था, जो किसी भी प्रकार अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता था।
उसने अपनी शक्ति का प्रथम प्रयोग पास ही दिखने वाले झरने पर किया, और गर्जना करते हुए कहने लगा, तिलस्मी झरने मुझे दिखा, आखिर कौन और कहां है वह ?????
इतने वर्षों की साधना ने उसे अचूक शक्तियां प्रदान की थी, इसलिए देखते ही देखते झरने में कायरा की तस्वीर नजर आने लगी, इतना सुंदर रूप देख उस कपटी के मन में अन्य घिनौनी भावनाएं भी जन्म लेने लगी, अब वह उस मणि के साथ साथ कायरा को भी पाने का मन बनाने लगा, और बड़ी तेज गति से उस स्थान के नजदीक जा पहुंचा, जहां कायरा प्रतिदिन आकर कुछ समय शांत होकर आराधना करती थी,
वह मन ही मन विचार बनाने लगा कि कैसे कायरा को बस में किया जाए , लेकिन उसकी उपस्थिति का आभास उस वातावरण से छुपा ना रह सका, तब फिर भला मुझसे कहां छुपता , लेकिन मैं जानती थी कि जिसे खुद देवी ने चेवतानी देकर समझा दिया हो, और फिर भी वह मूर्खता कर रहा हो तब भला मैं क्या करती,
उसने तरह-तरह के व्यूह रचना की, और कमबख्त दिन निकलने का भी इंतजार ना कर सका, शायद यह उस पर गलत शक्तियों का प्रभाव था,
अर्ध रात्रि में ही जब उसने प्रतिशोध में मंत्रों का उच्चारण किया, देखते ही देखते वहां का वातावरण परिवर्तित होने लगा, खड़े हुए हरे पौधों में अचानक आग लगने लगी, पक्षी यहां वहां उड़ कर भागने लगे, और ऐसा लगने लगा जैसे वह पूरा जंगल ही अपने क्रोध की अग्नि से नष्ट कर देगा, और तभी उसने अपने हाथ में ना जाने कुछ लेकर कुछ अभी मंत्रणा की और उसे हवा में उछाल दिया,
और तभी अचानक सारा वातावरण जादुई रूप से परिवर्तित हो गया, ऐसा विचित्र माया को समझ पाना एक पल के लिए मेरे लिए भी असंभव था, जिसे पेड़ में कुछ पल पहले आग लगी हुई थी, वह अचानक स्वर्ण फूलों की तरह सुशोभित सा दिखने लगा, यह देख घबरा कर भागने वाले पक्षी भी आश्चर्यचकित हो वापस आने लगे ।
वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर हो क्या रहा है , इसलिए पेड़ के पास आकर ठहर से गए, तभी अचानक सुगंधित फूलों से सारा जंगल आच्छादित हो गया, वह खुद भी सुंदर रूप लेकर अपनी जगह किसी साधक की तरह बैठ गया, जैसे वह कुछ और ही चाहता हो।
इतनी सुगंधित हवा और बार-बार परिवर्तित होने वाला वातावरण को देख कायरा समझ तो चुकी थी, कि माजरा क्या है????
लेकिन फिर भी अवध कुमार को नारी शक्ति का बल दिखाना अत्यंत ही अनिवार्य हो गया था, इसलिए वह अनजान बन उस जगह टहलती हुई जा पहुंची, अवध कुमार को एक बार तो ऐसा लगा जैसे वह सफल हो गया, लेकिन कायरा को सामने खड़ा देख वह मंदबुद्धि भटका हुआ साधक समझ ना पाया, कि स्त्री सम्मान क्या होता है ????
और दुःसाहस कर जैसे ही कायरा की ओर बढ़ने का प्रयास करने हेतु अपने स्थान से उठने को तैयार हुआ तो अचंभित हो उठा,
उसे ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने उसे उसी स्थान पर बांध रखा हो, तब तो वह सब कुछ भूल अपने वास्तविक रूप में आ गया ,और तेजी से गर्जन कर उसने अति विशिष्ट शक्ति का प्रहार मेरी कायरा पर किया, जिसे मैंने देखते ही देखते निष्फल कर दिया।
तब तो, अच्छा तो तू अकेली नहीं है, भूल मेरी ही है, जो मैंने तुझे अकेला समझा, कहते हुए वह अनेक रूपों में बिखर गया, वहां एक साथ तीन-तीन अवध कुमार नजर आने लगे, वह भाप चुका था मेरी उपस्थिति को.....
लेकिन कायरा किसी भी प्रकार का संग्राम नहीं चाहती थी, जिससे अन्य पशु पक्षियों ,वनस्पतियों को भी क्षण मात्र भी नुकसान हो।
कायरा क्षण भर में उसके तीनों रूपों के बीच जाकर खड़ी हो गई , और उसने अपना हाथ अवध कुमार की गर्दन पर रख, सिर्फ इतना ही कहा की चेतावनी के पश्चात ऐसी दुष्टता करने वाले अवध कुमार अब तेरी रूह को दोबारा मानव काया नहीं मिलेगी, कहकर एक झटके के साथ उसके सर को धड़ से अलग कर दिया,
और देखते ही देखते उस सिर को उसने एक फूंक के साथ अपने मुख से निकलने वाली ज्वाला में भस्म कर दिया, उसके धड़ से तेज रोशनी के साथ दूसरा सिर निकलने को था ही , कि कायरा ने अचानक अपना क्रोध से एक ही झटके में उसके शरीर को दो टुकड़ों में बांट दिया, जो शायद कायरा के हाथों की तपिश को बर्दाश्त ना कर सके और राख के ढेर में तब्दील हो गए।
सारा वातावरण सामान्य हो गया , और कायरा झरने के पानी में अपने हाथों को साफ कर, पानी की कुछ बूंदें को जमीन पर छिड़का ,जहां उसकी राख बिखरी हुई थी, जैसे वह दया दृष्टि से उसे मुक्ति प्रदान करना चाहती है, और देखते ही देखते वहां से चली गई।
मैंने आज तक कायरा का इतना क्रोधित और अचानक इतना शांत हो जाने का स्वभाव नहीं देखा था, लेकिन मैं जानती थी कि मेरी कायरा कोई साधारण नहीं, इसलिए उसके लिए कुछ भी असामान्य नहीं।
लेकिन जाने क्यों मुझे ऐसा लगता था कि महज यह तो शुरुआत है, राक्षसी शक्तियों और देव युद्ध की तरफ, क्योंकि एक बार मणि की खोज में यदि कोई बुरी शक्ति निकल जाए, तो फिर अवध कुमार जैसे कितने ही सिर्फ आहुतियों के तिल की तरह होते हैं।
राक्षसी शक्तियां अपना प्रयास करना नहीं छोड़ते, इसलिए यह अनिवार्य था कि मैं अब मैं खुद इस घटना से जाकर गुरु जी को अवगत कराऊं, और विशिष्ट शक्तियों का आह्वान कर कायरा को विशेष सुरक्षा प्रदान करे,
यह सोच कर मैंने सफर आरंभ किया शक्ति संयोजन का....
शेष अगले भाग में .......