हूँ आज़ाद पर ना जाने क्यों
ख़ुद को बँधा हुआ महसूस करता हूँ
हूँ उन्मुक्त पर ना जाने क्यों
उड़ने से डरता हूँ
है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
पर ज़ुबान पर ताला लगा है
है आस्था की आज़ादी
पर इंसानियत निभाने पर पाबंदी है
है विचारों की आज़ादी
पर उन्हें व्यक्त करने पर रोक है
है लिखने की आज़ादी
पर खुल कर लिखने पर हो जाता बवाल
सवाल करने की छूट है
पर सवालों की सीमा बँधी है
है यह कैसी आज़ादी
है यह कैसी आज़ादी
६ मई २०१७
जिनेवा