जीते हैं सब अपने अन्दाज़ से ज़िंदगी
कुछ की ज़िंदगी कट जाती है, दो जून की रोटी कमाने में
तो कुछ, ज़िंदगी को तलाशते हैं महलों में
कुछ, तलाशते हैं ज़िंदगी को हरी नाम में
तो कुछ हरी को बेच कर, गुज़ारते हैं ज़िंदगी
कुछ के लिए शोहरत का नाम है ज़िंदगी
तो कुछ के लिए सिर्फ, गुमनामी है ज़िंदगी
कुछ के लिए औरों का सुख है ज़िंदगी
कुछ अपने सुख की तलाश में बिता देते हैं ज़िंदगी
कुछ मैं और मेरा में बिता देते हैं ज़िंदगी
कुछ सब के भले के लिए लगा देते हैं ज़िंदगी
ना जाने और कितने तरीक़े हैं जीने के ज़िंदगी
ना जाने कितने ढंग हैं जीने के ज़िंदगी
कुछ सही, कुछ ग़लत नहीं है इसमें
जीते हैं सब अपने अन्दाज़ से ज़िंदगी
७ अगस्त २०१६
दिल्ली