क़िस्मत पर नहीं करता मैं यक़ीन
पर ना जाने क्यों लगता है कि
यह क़िस्मत ही मिलाएगी हमें
तक़दीर पर नहीं करता मैं यक़ीन
पर ना जाने क्यों लगता है कि
बंधी है मेरी तक़दीर तेरे ही साथ
मुक़द्दर पर नहीं करता मैं यक़ीन
पर ना जाने क्यों लगता है की
बनेगा मेरा मुक़द्दर तेरे ही साथ
नसीब पर नहीं करता मैं यक़ीन
पर ना जाने क्यों लगता है कि
खुलेगा नसीब मेरा तेरे ही साथ
हाथ की लकीरों पर नहीं करता मैं यक़ीन
पर ना जाने क्यों लगता है कि
लिखा है तेरा ही नाम इन लकीरों में
क़िस्मत पर नहीं करता मैं यक़ीन
२६ जून २०१६
जिनेवा