वो आँखों में आँखें डाल कर पहरों बैठना
वो हाथों में हाथ थाम कर मीलों चलना
वो साथ में बैठ कर घंटों संगीत सुनना
वो रातों में घंटों फ़ोन पर बातें करना
वो एक दूसरे को अपने हाथों से खाना खिलाना
वो बीमारी में एक दूसरे के सिरहाने बैठ ढाँढस बढ़ाना
वो इम्तिहान की घड़ियों में एक दूसरे की हिम्मत बढ़ाना
वो रूठ कर, दिनों तक, एक दूजे से नज़रें चुराना
वो बिन कुछ कहे, नज़रों से दिल की बात समझना
वो थक कर, एक दूसरे के कंधे पर सर रख सो जाना
वो सर झुका कर मंदिर में एक दूसरे की सलामती की दुआ माँगना
वो डरते हुए, एक दूसरे से अलग होने की धमकी देना
ज़िंदगी के सफ़र में देखे, महसूस किए
इतने एहसास
जिनका लफ़्ज़ों में पिरोना सम्भव नहीं
अबूज़ा
१० जून २०१६