रिश्तों की पहचान सब को है
फिर भी इनकी समझ कितनो को है
रिश्तों से उम्मीद सब को है
फिर भी इन्हें निभाते कितने हैं
रिश्तों में मिठास की ज़रूरत सबको है
फिर भी इनमे मिठास घोलते कितने हैं
रिश्तों की कड़वाहट लगती बुरी सब को है
फिर भी इसे ख़त्म करने की कोशिश करते कितने हैं
रिश्तों से ज़िंदगी बेहतर बनाने की चाह सब को है
फिर भी इनको सुंदर बनाने की कोशिश करते कितने हैं
२९ मार्च २०१७
जिनेवा