तेरे नाम को दिल में छुपाके रखा है
तेरी पहचान को सीने में दबा के रखा है
है ज़िक्र तेरा हर नज़्म में मेरी
पर तुझे पहचान न ले कोई
इसलिए क़लम को अपनी बाँध के रखा है
चुरा तो ली थी नज़रें तुझ से
पर तेरी तस्वीर इन में ही क़ैद हो गयी है
कह ना पाया था जो दो लफ़्ज़ तुझ से
आज है ज़िक्र उनका हर नज़्म में मेरी