दिन गुज़र जाता है तेरे इंतज़ार में
रात गुज़र जाती है तेरी याद में
कट रही है ज़िंदगी बस यूँही
तेरी याद में, तेरे इंतज़ार में
चला जाता हूँ रोज़ घर खुदा के
पर जब भी लेता हूँ नाम उसका
तेरा ही नाम आ जाता है ज़ुबान पर
झुकता हूँ सर जब उसके सजदे में
दिख जाता है तेरा ही चेहरा बंद आँखों से
कट रही है ज़िंदगी बस यूँही, काफ़िर बन के
२९ दिसम्बर २०१६
डिब्रुगढ़