जो ढूँढते थे हमसे मिलने के बहाने
वो आज बिछड़ने के तरीक़े ढूँढते हैं
बैठे रहते जो पहरों डाल आँखों में आँख
वो आज आँखें चुराने के बहाने ढूँढते हैं
हाथ पकड़ हमारा, चलते थे मीलों जो
वो आज हाथ छुड़ाने के बहाने ढूँढते हैं
दूर जाने के ख़याल से जो घबरा जाते थे
वो आज दूर रहने के बहाने ढूँढते हैं
साथ जीने मरने की क़समें खाते थे जो
वो आज हमारी मैयत में ना आने के बहाने ढूँढते हैं
२६ फ़रबरी २०१७
जिनेवा