तुझ से कोई गिला नहीं
नाराज़गी ख़ुद से है
रहते थे जब नज़दीक तेरे
तो दूरियाँ बना रखी थी
अब जब दूर रहते हैं
नज़दीकियों को तरसते हैं
कहना चाहती थी जब कुछ
अनसुना कर देते थे
अब आवाज़ तुम्हारी
सुनने को तरसते हैं
नज़रें मिलते ही तुम से
पलट जाते थे
अब तुम्हें देखने को तरसते हैं
तुझ से कोई गिला
नाराज़गी ख़ुद से है
१७ अप्रेल २०१७
जिनेवा