कुछ अनकही बातों को
कहने का मौक़ा ढूँढता हूँ
दिल में छुपे राज़ का इजहार,
करने का मौक़ा ढूँढता हूँ
खुली आँखों से देखे ख़्वाबों को
मुकम्मल करने का, मौक़ा ढूँढता हूँ
इस मोहब्बत को तुझ पे
लुटाने का मौक़ा ढूँढता हूँ
ज़िंदगी के इस पड़ाव पर
तेरा साथ पाने का मौक़ा ढूँढता हूँ
तुझे फिर अपना बनाने का
मौक़ा ढूँढता हूँ
७/७/१७
जिनेवा