मिली जब वो बाद बरसों के
नज़रें उसकी कह रही थी कई बातें
चुरा रही थी वो नज़रें, पर
साफ़ झलक रही थी मोहब्बत, उन नज़रों में
वो ही अन्दाज़ था आज भी उसका
कर रही थी बातें औरों से
रही थी मुस्कुरा औरों के साथ
पर मन और दिल कहीं और था
देख रही थी छुप छुप कर किसी को
पर नहीं थी हिम्मत आज भी
बढ़ कर हाल दिल का अपने, बताने का
थी अब भी यही उम्मीद कि
बढ़ा कर क़दम कोई आएगा उसकी ओर,
करेगा बात पहले
पर ऐसा हुआ नहीं
और फिर रह गए दो दिल मिलने से
फिर बिछुड़ गए दो प्रेमी
अगली मुलाक़ात तक के लिए
२६ जुलाई २०१६
अबूज़ा के रास्ते में