कोशिशें हज़ार क़ीं
दर्द अपना छुपाने की
ज़ख़्म इतना गहरा था
कि, मुस्कुराहट के पीछे भी
रंजीदगी छुप ना सकी
कोशिशें हज़ार क़ीं
आंसुओं के सैलाब को रोकने की
भरा था दिल इतना मगर
आँखों के बाँध भी
उसे बहने से रोक ना सके
कोशिशें हज़ार क़ीं
यादों को दफ़नाने की
प्यार बेंतिहा था मगर
कब्र से भी लौट आयी
यादें मुझे सताने को
कोशिशें हज़ार क़ीं
३ जनवरी २०२१
जिनेवा