बहार बन के तुम आए पतझड़ में
चाँद बन के तुम आए अमावस में
झील बन के तुम आए रेगिस्तान में
क़रार बन के आए तुम बेक़रारी में
हसीन ख़्वाब बन कर आए तुम सूनी आँखों में
मधुर संगीत बन कर तुम आए सुनसान फ़िज़ाओं में
ख़ुशी बन कर आए तुम ग़म की सियाह रात में
मरहम बन कर समा गए तुम ज़ख़्मी दिल में
रहमत बन कर आए तुम रूठी तक़दीर में
प्यार का सागर बन कर आए तुम बेज़ार ज़िंदगी में
४ जून २०२७
ऐम्स्टर्डैम