आइने में देखता हूँ तो नज़र आती हो तुम
ज़मीन पर देखता हूँ अक़्स अपना, तो नज़र आती हो तुम
चाँदनी में नहाए चाँद को देखता हूँ, तो नज़र आती हो तुम
खिलते कमल को देखता हूँ, तो नज़र आती हो तुम
जगमगाते कोहिनूर को देखता हूँ, तो नज़र आती हो तुम
दिल में अपने झाँक कर देखता हूँ, तो नज़र आती हो तुम
किताब में लिखे हर लफ़्ज़ में, नज़र आती हो तुम
तस्वीरों के रंगों में, नज़र आती हो तुम
कायनात के हर ज़र्रे ज़र्रे में, नज़र आती हो तुम
मेरी कविता की हर पंक्ति में, नज़र आती हो तुम
१४ दिसम्बर २०१५
अबूज़ा