उतार देता हूँ अपनी मोहब्बत,
इन काग़ज़ के पन्नों पर
इसी उम्मीद में कि एक दिन तो
तुम पलटोगी इस किताब के पन्नों को
और शायद समझ जाओगी
मोहब्बत जो लबों से तो ना कीं बयान हमने
पर इन पन्नों पर लिखे हर अल्फ़ाज़ में है की बयान हमने
मोहब्बत जो, नज़रों में तो ना दिखी तुमको
पर इन पन्नो में लिखी हर नज़्म में दिखेगी तुमको
ज़स्बाद जो उभर कर ना आ सके सामने तुम्हारे
पर इन पन्नो में मेरी रूह बनकर दिखेंगे तुमको
उतार देता हूँ अपनी मोहब्बत को इन काग़ज़ के पन्नों पर
१९ जून २०१६
जिनेवा