जब हम लोग छोटे थे, तब परीक्षा में अक्सर विलोम (विरोधी) शब्द लिखो, परीक्षा में प्रश्न पूछा जाता था और हम खुशी-खुशी उत्तर लिख देते थे जैसे- सुख का दुख, खुशी का गम, हंसने का रोना इत्यादि-इत्यादि । किन्तु इस प्रकार के परीक्षा में पूछे जाने वाले विरोधाभाषी शब्द, कब और कैसे हमारे जीवन का अभिन्न भाग बन कर समाहित हो जाने के बाद, उनका उत्तर देना बड़ा ही कठिन और दुष्कर हो जाता है ।
आइए, इस सम्बंध में एक चीन देश की कहानी के बारे में बताता हूँ -
एक छोटे से गाँव में एक किसान के पास एक बुड्ढा घोड़ा था । एक दिन किसान उसे पहाड़ी पर चराने के लिए लेकर गया और घोड़ा वहाँ से भाग गया । उसके पड़ोसियों को, जब इसकी जानकारी हुई, तब वे बोले कि, “अरे... यह तो दुर्भाग्य की बात है ।” किसान ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, “दुर्भाग्य या सौभाग्य ? किसको पता ?” एक सप्ताह बाद वही घोड़ा, अन्य कुछ जंगली घोड़ों के साथ, किसान के आँगन में आकार वापस खड़ा हो गया ! अचानक रूप से कई घोड़ो का मालिक बन जाने पर, उसके पड़ोसियों द्वारा बधाई देते हुए कहा गया कि, “अरे... यह तो सौभाग्य की बात है कि, घोड़ा वापस आ गया और साथ में दूसरे घोड़ों को भी साथ में लाया ।” किसान ने फिर शांति से जवाब दिया कि, “दुर्भाग्य या सौभाग्य ? किसको पता ?” कुछ समय गुजरने के बाद, जंगली घोड़े को प्रशिक्षित करने के दौरान, उसका इकलौता जवान लड़का, घोड़े से गिरा और उसकी एक टांग बुरी तरह से टूट गई । पड़ोसियों ने कहा, यह तो बड़े ही “दुर्भाग्य की बात है ।” किसान ने पुनः जवाब दिया, “दुर्भाग्य या सौभाग्य ? किसको पता ?”
कुछ समय बाद सीमा पर भीषण युद्ध चला और एक दिन गाँव में सेना आई और गाँव के जितने भी शक्तिशाली नौजवान थे, उन्हें सेना में भर्ती करना जरूरी होने से, लेकर गए और उन्हें सेना में भर्ती कर लिया । इस कारण से गाँव के सभी वृद्ध/बुजुर्ग दुखी हो गए । आर्मी वालों ने किसान के बेटे को देखा और उन्हें लगा कि, इस लंगड़े का लश्कर में क्या काम ? उसे सेना में भर्ती नहीं किया । अब आप ही बताइए कि, इसे सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य ? ...किसको खबर ?
जीवन में अनेक समय इस सौभाग्य नाम के गिफ्ट को, अक्सर दुर्भाग्य नाम के रेपिंग पेपर में बंधा हुआ आने की आदत होती है । इसे हम “Blessing of Disguise" के नाम से स्वागत करते है । इसके विपरीत, कई बार ऐसा भी होता है कि, चमचमाते रेपिंग पेपर के अंदर...! जब ऐसा होता है, तब हम कहते है कि, मुसीबतों मे भी ‘मुसीबतों का पहाड़ टूटना’ । उक्त वर्णित कहानी में उस किसान को हम “स्थितप्रज्ञ" ही कहेंगे ।
जीवन अर्थात ‘सौभाग्य’ एवं ‘दुर्भाग्य’ रूपी सिक्का उछालने का खेल ! “ टॉस ” करना । इस “चांस” को आस्तिक ‘पाप या पुण्य' के चौखटे में समझने का प्रयास करता है और नास्तिक इसे ‘Probability' अर्थात सम्भावना का नाम देता है । कोई इसे ‘भाग्य का खेल' कहता है, तो कोई इसे ‘नसीब की बलिहारी' ; कोई इसे ‘Destiny’ का नाम देता है तो कोई इसे ‘कर्म-फल’ का नियम कहता है । बाकी तो, जो होना है, होकर ही रहता है ।
वास्तव में अनेक बार ऐसा बनता भी है कि:- जब गेम में हमारे हारने की पक्की उम्मीद होने के बावजूद भी हम जीत जाते है... जब हम आंसुओं को सुखाने की कला सीख लेते है, तब रोने के लिए कंधे का सहारा मिले... जब हम तिरस्कार करने की कला में पारंगत हो चुके होते है, तब कोई दिल से चाहने वाला मिले... जब हमें सबसे अधिक अपनों की आवश्यकता हो तब वे हमें ही छोड़ दें... जब हम सूरज के प्रकाश का घण्टों इंतजार करके सो जाएँ, तब सूरज बाहर आए...
बस यही तो ‘जीवन’ है !! आपने चाहे कितना भी ‘प्लानिंग' किया हो, आपको क्या खबर कि, जिंदगी ने आपके लिए क्या ‘प्लान' कर रखा है ?
अक्सर देखा गया है... “सफलता” आपका परिचय दुनिया से करवाती है जबकि, ‘निष्फलता' के दौरान आपका दुनिया में कौन ‘अपने’ एवं ‘पराए’ है, का परिचय होता है । कई बार ऐसा भी होता है कि, जब हम पूर्ण निराश हो चुके होते है और विचार करते है कि, अब खेल खतम... ! तब इस संसार को चलाने वाला सर्वशक्तिमान हँसते हुए संदेश देकर कहता है कि, “शांति रखो वत्स शांति, यह तो एक जीवन का मोड़ है, अन्त नहीं" ।
अतः हमेशा भूतकाल से सीख लेते हुए और भविष्य की अनावश्यक चिंता किए बिना, वर्तमान में खुश रहने का भरपूर प्रयास करे और हमेशा “खुश रहें" ।