एक देश, एक चुनाव: भारतीय लोकतंत्र में सुधार की दिशा
परिचय: "एक देश, एक चुनाव" का विचार भारतीय लोकतंत्र में सुधार के उद्देश्य से प्रस्तावित एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसका उद्देश्य लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का है, ताकि चुनावी खर्चों में कमी आए और प्रशासनिक दक्षता बढ़े। वर्तमान में भारत में विभिन्न राज्यों और केंद्र के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिसके कारण लगभग हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं।
इतिहास और पृष्ठभूमि: भारत में 1952 से लेकर 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही होते थे। लेकिन 1968-69 में कुछ विधानसभाओं के पहले भंग हो जाने के कारण यह क्रम टूट गया। इसके बाद से देश में अलग-अलग समय पर चुनाव कराए जाने लगे।
2014 के बाद इस विचार को फिर से चर्चा में लाया गया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "एक देश, एक चुनाव" की आवश्यकता पर बल दिया। इस प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य चुनावों के लगातार चलने वाले चक्र से बचते हुए प्रशासन की गति और विकासात्मक कार्यों को तीव्र करना है।
लाभ:
1. चुनावी खर्चों में कमी: हर चुनाव के लिए बड़े पैमाने पर धन खर्च होता है। अगर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते हैं, तो इससे चुनावी खर्चों में भारी कमी आएगी।
2. संसाधनों का बेहतर उपयोग: चुनाव के दौरान बड़ी मात्रा में प्रशासनिक संसाधनों की जरूरत होती है, जैसे कि सुरक्षाबल, चुनाव आयोग के अधिकारी, मतदान कर्मी आदि। एक साथ चुनाव से इन संसाधनों का बेहतर उपयोग किया जा सकेगा।
3. शासन व्यवस्था में स्थिरता: लगातार चुनावी चक्र से सरकारी नीतियों पर असर पड़ता है, क्योंकि हर चुनाव के दौरान सरकार को मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट (आचार संहिता) का पालन करना पड़ता है, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। एक साथ चुनाव होने पर यह समस्या काफी हद तक समाप्त हो जाएगी।
4. वोटर की भागीदारी: जब सारे चुनाव एक साथ होंगे, तो जनता की रुचि और सहभागिता अधिक हो सकती है, क्योंकि यह एक बड़े लोकतांत्रिक उत्सव का रूप ले सकता है।
चुनौतियां:
1. विधानसभाओं का कार्यकाल: सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल समान नहीं होता। कई बार विधानसभा भंग हो जाती है, जिससे फिर से चुनाव की जरूरत होती है। ऐसे में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
2. संविधानिक मुद्दे: संविधान के अनुच्छेदों में कुछ संशोधन की आवश्यकता हो सकती है। साथ ही, राज्यों और केंद्र के कार्यकाल को समायोजित करना भी एक बड़ी चुनौती है।
3. राजनीतिक सहमति की कमी: देश की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के बीच इस मुद्दे पर सहमति बनाना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि हर पार्टी के अपने हित और दृष्टिकोण होते हैं।
4. वोटर का बोझ: एक साथ चुनाव कराने से मतदाताओं पर अधिक जिम्मेदारी आ सकती है। उन्हें एक ही समय पर केंद्र और राज्य सरकार के लिए उम्मीदवारों का चयन करना होगा, जो कई बार भ्रमित कर सकता है।
समाप्ति: "एक देश, एक चुनाव" एक विचारधारात्मक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से एक बड़ा कदम हो सकता है, जो भारत के लोकतांत्रिक व्यवस्था को अधिक प्रभावी और सशक्त बना सकता है। लेकिन इसे लागू करने के लिए व्यापक राजनीतिक सहमति, संवैधानिक संशोधन, और एक सुसंगत कार्ययोजना की आवश्यकता है। इसके सफल क्रियान्वयन से लोकतंत्र की जड़ें और गहरी हो सकती हैं, लेकिन इसे लागू करने से पहले सभी पहलुओं पर गंभीर विचार-विमर्श की आवश्यकता है।
स्वरचित डॉ विजय लक्ष्मी
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