एकात्म मानववाद: एक समग्र दृष्टिकोण
एकात्म मानववाद (Integral Humanism) एक दार्शनिक विचारधारा है, जिसे भारतीय विचारक और जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने प्रस्तुत किया था। यह विचारधारा भारतीय संस्कृति, परंपरा और समाज की मौलिकता पर आधारित है और मानव जीवन के समग्र विकास की अवधारणा को प्रकट करती है।
एकात्म मानववाद का सिद्धांत
एकात्म मानववाद का मूल सिद्धांत यह है कि मनुष्य का विकास केवल भौतिक समृद्धि में नहीं बल्कि उसकी आत्मिक, मानसिक और शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति में निहित है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने इसे 'चतुर्विध पुरुषार्थ' के रूप में व्यक्त किया है, जिसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष शामिल हैं। उनका मानना था कि मनुष्य को संतुलित विकास की ओर ले जाने के लिए इन चारों पुरुषार्थों का संतुलन आवश्यक है।
भारतीयता और एकात्म मानववाद
एकात्म मानववाद भारतीयता (Indianness) को उसके संपूर्ण रूप में स्वीकार करता है। यह विचारधारा मानती है कि पश्चिमी देशों द्वारा स्थापित भौतिकवादी और उपभोक्तावादी दृष्टिकोण भारतीय समाज के लिए उचित नहीं है। पंडित उपाध्याय ने कहा कि भारत को अपने मूल्यों और परंपराओं पर आधारित एक समाजिक और आर्थिक व्यवस्था की आवश्यकता है, जिसमें मानवता का विकास हो सके।
समाज और राज्य
एकात्म मानववाद में समाज को एक जीवित इकाई के रूप में देखा गया है। इसके अनुसार, समाज का प्रत्येक व्यक्ति एक अंग के रूप में है और समाज की भलाई के लिए व्यक्तिगत हितों को समाज के हितों के साथ जोड़ा जाना चाहिए। राज्य का कर्तव्य है कि वह समाज के विकास के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करे, न कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता को हानि पहुंचाए।
एकात्म मानववाद और अर्थव्यवस्था
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में, एकात्म मानववाद का दृष्टिकोण यह है कि अर्थव्यवस्था का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों की आवश्यकताओं की पूर्ति होना चाहिए, न कि केवल लाभ अर्जन। इसमें स्वदेशी के सिद्धांत को प्रमुखता दी जाती है, जिसके अनुसार देश की अर्थव्यवस्था को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाया जाना चाहिए।
एकात्म मानववाद और आधुनिकता
एकात्म मानववाद आधुनिकता को नकारता नहीं है, बल्कि उसे भारतीय संस्कृति और मूल्यों के साथ सामंजस्य स्थापित करने की बात करता है। यह विचारधारा मानती है कि विज्ञान और तकनीक का विकास आवश्यक है, लेकिन इसे मानवीय मूल्यों और नैतिकता के साथ संतुलित करना चाहिए।
निष्कर्ष
एकात्म मानववाद पंडित दीनदयाल उपाध्याय की वह अनूठी विचारधारा है, जो भारतीय समाज के समग्र और संतुलित विकास के लिए एक दिशा प्रदान करती है। यह विचारधारा आज भी प्रासंगिक है और भारतीय समाज की चुनौतियों का समाधान करने में सहायक हो सकती है। एकात्म मानववाद में निहित विचार न केवल सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।
स्वरचित डॉ विजय लक्ष्मी