नास्ति मातृसमा छायाः नास्ति मातृसमा गतिः । नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा। | स्कंद पुराण के संस्कृत के इस श्लोक का अर्थ है
" माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नहीं"। इसी बात की पुष्टि करती हुई मेरी ये कहानी*****
माँ " माँ" ही होती है ममता, वात्सल्य, स्नेह, धैर्य, सहनशीलता, सजगता, तरलता चेतनता की प्रतिमूर्ति होती है।सभी में अपनी संतान के प्रति असीम ममत्व सहज आत्मनिहित वात्सल्य होता है।
बेजुबान पशु पक्षी भी अछूते नहीं है आज मैं उस बेजुबान निरीह बंदर माँ की कहानी (जिस ने अपने बच्चे को किस बुद्धि तत्परता व साहस के साथ बचाया ममत्व के इस चरमोत्कर्ष पराकाष्ठा को एक वात्सल्य पूर्ण हृदय ही इस भाव की अनुभूति कर सकता है) साझा करना चाहती हूं।
मैं और मेरे पति चित्रकूट रेलवे स्टेशन में ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी उद्घोषणा हुयी की ट्रेन अपने निर्धारित समय से 1 घंटे लेट चल रही है हम दोनों बैठे बातचीत कर रहे थे।
चित्रकूट स्टेशन में बहुत ही बंदर रहते हैं। धार्मिक स्थल होने के कारण लोग खाने का सामान देते रहते हैं हम दोनों भी बंदरों के क्रियाकलापों को देखकर प्रसन्न हो रहे थे कि अकस्मात दाहिनी ओर से स्टेशन में बहुत तेज शोर सुनाई पड़ने लगा।
हम दोनों भी खड़े होकर देखने लगे कि कहां क्या हो गया है ? देखा तो थोड़ी दूर पर एक बंदर का बच्चा हाईटेंशन लाइट की चपेट में आ गया था टीन शेड लोहे का था बच्चा तड़प रहा था और उसी में चिपक गया था। बच्चा खीं खीं करते हुए छूटने की नाकाम कोशिश कर रहा था पर वह छूट नहीं पा रहा था।
बंदर की मां बहुत ही विह्वल दृष्टि से हर एक आदमी के नजदीक जा सहायता के लिए द्रवित भाव से याचना पूर्ण दृष्टि डाल रही थी। कभी कोई को खींचने का प्रयास करती कभी संकेत से बच्चे की स्थिति दिखाती। माँ का करुण क्रंदन देखा नहीं जा रहा था हर दिल द्रवित अपने को असहाय अनुभव कर विद्युत कर्मचारियों की प्रतीक्षा कर रहा था पर इतना साहस कोई नहीं कर पा रहा था कि उसे बचाया जा सके। सभी किंकर्तव्यविमूढ़ से खड़े थे। विद्युत विभाग को रेलवे कर्मचारियों ने फोन कर दिया था और शायद वह भी उन के आने का इंतजार कर रहे थे।
बच्चे का रुदन भी धीरे-धीरे मंद हो था पर मां का हृदय चीत्कार कर रहा था कभी इधर भागती कभी उधर किसी उम्मीद में। दूसरे बन्दरों ने भी रेलवे कार्यालय को घेर रखा था।
कहा जाता है कि बच्चे पर मुसीबत पड़ने पर मां शेरनी बन साक्षात मौत से भी टकरा जाती है बच्चे की मां ने त्वरित बुद्धि से छलांग लगाकर टीन शेड के बीच -बीच में पड़ी हुई लकड़ी की राड (डंडे ) को पकड़ लिया और बाएं हाथ से डंडे को पकड़ दाहिने हाथ से बच्चे को खींचती फिर थक जाने पर दाएं हाथ से डंडे को पकड़ती और बच्चे को बाएं हाथ से खींचती इस तरह क्रमशः कुछ समय तक करती रही पर डंडा बच्चे से दूर होने के कारण बलपूर्वक खींच न पाती।
अंत में उस ने अपनी त्वरित बुद्धि से विद्युतिगति से छलांग लगाकर वेग से बच्चे को खींच दूसरे हाथ से डंडा पकड़कर नीचे कूद आई और बच्चे को अश्रुपूरित नेत्रों से चूमने- चाटने लगी तब तक विद्युत कर्मचारी लाइन कट चुके थे बच्चा भी टिमटिमाती आंखें खोलते संज्ञान में आ चुका था। यह सब इतनी तीव्रतम गति से हुआ कि विस्फारित नेत्रों से ताकते रह गये।सभी बन्दर खुश होकर खों खों खींखीं कर मानो खुशी का जश्न मना रहे थे।
आज एक मां की ममता अपने बच्चे को साक्षात यमराज के मुख से खींच कर ले आई थी।उस पल कुछ भी हो सकता था अपनी जान की बाजी लगा बच्चे को बचाया। प्रत्येक व्यक्ति की आंख हर्ष और रोमांच के अतिरेक से भरी थीं।
आज भी वह घटना नेत्रों के आगे चलचित्र सी चलने लगती है। जब हत्बुद्धि हो चित्रलिखित से जड़ होकर
हम बुद्धिजीवी दूसरे की सहायता की प्रतीक्षा कर रहे थे ऐसे तत्क्षण विलक्षण साहसी माँ को एक सैल्यूट बनता है।
वात्सल्यमयी माँ तुझे सलाम !!सधन्यवाद