रोशनी का दर्पण,समाज के सागर
प्रेमचंद जी,शब्दों के रथ पर सवार
आप कहानियों के नायाब जादूगर
गाँव की गली से लेके शहरी रफूगर
हिन्दी के पितामह उपन्यास सम्राट
कलम के सिपाही लेखक हैं विराट
31 जुलाई 1880 के शुभ दिन जन्मे
बनारस के लमही में मोती बन चमके
माँ आनंदी देवी पिता थे अजबराय
असली नाम श्रीवास्तव धनपत राय
गोदान कर्म भूमि सेवा सदन निर्मला
कफन,पूष की रात बूढ़ी काकी भला
समाज के दर्पण में, झलकती सच्चाई,
कर्म और धर्म की, हर जगह हो बड़ाई
गरीबों का दर्द ,अमीरी बड़बोली बातें
बेनकाब होते रिश्ते की दिखती सौगातें
गांव की औरतों की, संघर्ष की दास्तां
मासूम बच्चे बूढ़ों की इच्छायें गुलिश्तां
हर किरदार आपका, जीवन्त लगता है
मन को छू, दिल को झकझोर जाता है
गांव की गलियों से उठती एक आवाज़
श्रमिक की मूठ और किसान का ताज
हर दिल की धड़कन में गूंजते हैं प्रेमचंद
वो कथा-शिल्पी ,जनकवि अमर बुलंद
अगणित शब्दों में छुपी समाजी सच्चाई
सच्ची कहानियाँ और त्याग की भलाई
हमेशा ताजे रहे उनके विचार और वचन
गहरी सोच के साथ जीवन शास्त्र गठन
आज भी आपकी रचनाएँ हैं बेमिसाल
समाज सुधारक, महान लेखक ,फटेहाल
आपकी याद में,सिर झुकाए सारा संसार
8अक्टूबर 1936 को जग छोड़े होनहार
हर कहानी में बसे मानवता की पहचान,
हर पात्र में छुपी दिखे मेहनत की अजान
श्रम और संघर्ष की राह में हीरे की चमक
उनकी जयंती पर सच्ची श्रद्धांजलि महक
जीवनधारा में बहते समर्पण की वे मूरत
मुक्ति खोज में बंधी न कोई भ्रांति सूरत
संघर्ष के संग पली-बढ़ी कवि की महिमा
प्रेमचंद की जयंती पर श्रद्धांजलि गरिमा