विकलांगता की सीमाएँ तोड़,
जीवन को फिर से देंगी मोड़,
पेरिस की भूमि में अब गूंजेगी,
सपनों की नई उड़ान मिलेगी।
संघर्ष के धागे से बुनते जीत,
विजय गाथा लिखेंगे ये गीत,
शारीरिक बंधन भले हो मीत,
मन की शक्ति गढेंगी नवरीत।
एथलीटों का जज़्बा तो देखो,
कभी न कदम थकने वाले हो,
पैरालंपिक का मंच सज रहा,
हर सपना अब साकार हो रहा।
समावेशिता का ये है पावन पर्व ,
सबको साथ लिए चले ,कर गर्व
समानता दीप जलाकर प्रेम से
सारे बंधन मिटायें रोशन दीप से
पेरिस की धरा गूंजें,जयगान से
नए इतिहास रचें बड़े अरमान से,
कदम जो बढ़ते यहाँ जी-जान से ,
वो गूंजेगे पीढ़ियों तक महान से।
विजय का ये पर्व मिल मनाएंगे,
संघर्ष की महिमा संग में गाएंगे,
पेरिस पैरालंपिक 2024 खेल,
सपनों का है नया विहान सुमेल।
स्वरचित डॉ. विजय लक्ष्मी