ईर्ष्या की ज्वाला में जले कई दिल,
लालची छांव सपनों में झिलमिल।
दूसरों की ख़ुशियों से आंखें चुराएं,
ख़्वाहिशों में सब कुछ खुद गवाएं।
पैसों की दौड़ में रिश्ते हैं बिखरते,
प्यार की राहें अब धुंध में सिहरते।
हर कदम में होड़, सांसों में घुटन,
लालच ने छीना इंसान का जीवन।
एक घर , जहां दिलों में था प्यार,
आज वहाँ केवल चुप्पी का भार।
ईर्ष्या ने डाली दरो-दीवार में दरार,
लालच ने किया रिश्तों को बेकार।
समय की आंधी ने सिखाया पाठ,
ईर्ष्या और लालच में छुपा है घात।
जो है पास, उसी में सुख बसा लें,
दूसरों की खुशी में खुशी सजा लें।
स्वरचित डॉ विजय लक्ष्मी