**जातीय जनगणना: एक सवाल
जातीय जनगणना आया सवाल,
फिर से उठी है एक पुरानी चाल।
क्या फिर बंटेगा समाजी आधार,
या बदलेगा अब न्याय का सार?
गिनती में जाति का क्या काम,
सबका सपना हो समता का नाम?
क्यों टूटें फिर से रिश्तों के धागे,
जाति की दीवारें फिर क्यों आगे?
हमने देखे हैं संघर्ष और मनोभेद,
अब चाहिए सबको हक और नेह।
जनगणना हो तो सबको ही गिनो,
जातियों के नाम से मत हमें छिनो।
क्या जाति से ही मापोगे तरक्की,
या देखोगे कि भूख कहां है बाकी?
शिक्षा,रोजगार ,यही हो मुद्दा हमारा,
जाति से ऊपर उठे तभी देश प्यारा।
समझें मिल इस जनगणना का मर्म,
बांटने की जगह जोड़ें हम देश-धर्म।
समानता ,स्नेह हो हर दिल का नारा,
तभी बनेगा भारत फिर से विश्वन्यारा।
स्वरचित डा. विजय लक्ष्मी