येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वाम् प्रतिबध्नामि रक्षे माचल माचलः ।।
श्लोक का अर्थ
इस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था उसी रक्षासूत्र के बंधन से मैं तुम्हें बांधता हूं ,जो तुम्हारी रक्षा करेगा । हे रक्षा सूत्र तुम चलायमान मत हो चलायमान मत हो ।
रक्षा सूत्र से बांधने का मतलब धर्म हेतु प्रतिबद्ध करना है जिससे तुम्हारा मन स्थिर रहे । ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानो को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना था ।
इस की परंपरा शास्त्रों के अनुसार बहुत ही प्राचीन रही है सतयुग से ही इन तीन कच्चे धागों को बट करके रक्षासूत्र बनाया जाता था ।मान्यता है कि लक्ष्मी जी ने ही सूत्र को राखी का स्वरूप दिया था (त्रिदेव स्वरूप) है।प्रकृति भी त्रिविध (सत,रज,तम गुण)
गायत्री मंत्र भी त्रिपदी है ।इसकी त्रिशक्ति धाराएं है । (ह्रीं -- सद्ज्ञान की,श्रीं-- वैभव की ,क्लीं-- शक्ति की) हैं।
योगी 2 धागे का भी प्रयोग कर लेते है जीव व ब्रह्म का अद्वैत स्वरूप।
हमारे सभी प्राचीन कर्मकांडो के पीछे विशेष अभिप्राय होता था जो कि पूर्णतया वैज्ञानिक आधारित होते थे ।
चाहे तिलक लगाना हो, बड़ों के पैर छूना हो ,सूर्य को जल देना हो या यज्ञ हवन आदि पूजा पाठ हो । उनमें एक विशेष वैदिक परंपरा निहित थी ।
हाथ में कलावा ,मौली या रक्षासूत्र बांधने के कुछ नियम थे तभी पूरा लाभ मिलता था । इसका वैदिक नाम उपमणिबन्ध भी है । कलाई मे बांधने के कारण कलावा नाम मिला ।आज भी किसी धार्मिक कर्म काण्ड, पूजा के समय हाथों में लाल या पीले रंग का रक्षासूत्र बांधने का चलन चलता आ रहा है ।
शादी विवाह के समय पुरोहित मण्डप पूजन (यज्ञ स्तंभ) के समय पांच या सात रक्षासूत्र बांधते हैं ।लकड़ी के पाटे ,कलश ,मण्डप ,वर या वधू ,दीपक कहीं-कहीं नारियल सुपारी को भी बांधते है ।ये एक प्रकार का रक्षाकवच होता है।
कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो ।
हमारे शास्त्रों के मुताबिक यह कच्चे धागे से बना होता है । इसे अड़िया, कुकरी कहते है । नियमानुसार इसमे 3 धागे लिए जाते है ।मैने अपने बचपन मे अपनी दादी को देखा है वे कपास की रुई की पूनी से तकली या चरखे से धागा कातती फिर उसे अटेरन (लकड़ी का बना ) पर लपेटती 3 धागे एक साथ ले बट देती ( तीन धागे इड़ा पिंगला सुषुम्ना के सूचक बताती ) फिर उसको टेशू (पलाश ) के फूल के रंग से या हल्दी से रंग,हरा पारिजात की व अपराजिता की पत्तियो को पीसकर रंग चढ़ाकर सुखाकर रख लेती पूजन के समय काम आता । लाल पीला हरा 3 रंग का धागा तैयार कर रखती । फिर पूजन आदि मे प्रयोग करती।
अब तो बाजार मे बहुत से कलावे रक्षासूत्र विभिन्न तरह के उपलब्ध है पर कितने नियमानुसार (विधि-विधान से )बने है कह नही सकते ।तभी तो आज पूजन अर्चन उतने फलदाई नहीं है।
मेरी दादी रक्षाबंधन के कुछ दिन पहले वैदिक राखी बनाती । उसमें वही घर का बना हुआ धागा जिसमें दूर्वा घास, अक्षत (चावल) केसर या हल्दी , चंदन, सरसों के दाने पांच वस्तुओं को रेशम के लाल या पीले कपड़े में सिल कर या पोटली बनाकर रखती फिर स्वस्तिवाचन कर गायत्री मंत्र या उपरोक्त येन राजा बलि--- मंत्र पढ़कर ही बहनों से वही राखी बंधवाती।
(तीन धागों की प्रतीक इडा पिंगला में सूर्य चंद्रमा का वास होता है) इड़ा अधिक सक्रिय हो तो स्त्रियोचित गुण ,पिंगला अधिक सक्रिय हो तो पुरुषोचित गुण होते ।संतुलन होने पर ही प्रभावशाली बनते हैं ।सुषुम्ना मे ऊर्जा शक्ति जाते ही वैराग्य आ जाता है विदेह बन जाते हैं ।इड़ा--बायीं ओर पिंगला दायीं ओर मध्य मे सुषुम्ना होती है ।
1--दूर्वा--- वंश वृद्धि के लिए भाई का वंश बड़े ,सद्गुणों का विकास हो ।दूर्वा विघ्न विनाशक (गणेश जी )को प्रिय है। इसलिए यह दूब सभी विघ्नों का नाश कर साथ ही जीवन हरीतिमा बनाये रखती है ।
2-- अक्षत --- चावल को कहा जाता है उसमें भी चावल पूरा समूचा होना चाहिए जिसमे कोई क्षति ना हो अक्षत रहे भाई बन्धु इसलिए बांधते हैं कि उनका बाल बांका न हो ।चावल चंद्रमा का भी प्रतीक है । चन्द्रमा मन की शांति का कारक है । चावल का संपर्क चंद्र नाड़ी से होता रहे और लाल रंग सूर्य चंद्र नाड़ी का संतुलन बना रहे ।
3-- केशर या हल्दी --- केसर की तरह तेजवान, ऊर्जावान ओजवान हो तेजस्वी,ओजस्वी ,यशस्वी बनें ।हल्दी नकारात्मकता को नष्ट करती है और सकारात्मकता को बढ़ाती है साथ ही उत्तम स्वास्थ्य सौभाग्य की भी प्रतीक है।
दाम्पत्य जीवन सुखमय की कारक गुरू ग्रह की प्रतीक है ।
4-- चंदन --- जीवन शांति व सयंम से रहे । यश की सुगंध फैले । किसी भी बुराई का समावेश (व्याप्ति ) ना हो सके। (चंदन विष व्यापत नहीं )
5-- सरसों--- समाज के दुर्गुणों को बुराइयों दोनो को तीक्ष्णता से ही दूर कर सकते हैं । क्योकि कहा भी गया है क्षमा शोभती उसी विषधर को जिस के पास गरल (जहर ) हो । सरसो मारण ,मोहन उच्चाटन वाली बुरी नजरों से भी बचाती है । इसी कारण बच्चो की नजर उतारने मे सरसो दाने ,नमक , लाल मिर्च का प्रयोग करते है ।
पर आज तो फैशन विकास व सबसे बड़ा अर्थ युग है सब पैसे वाले हैं ।ये सब तो अंधविश्वास व पिछड़ेपन की निशानी है ।राखी का भी आधुनिकीकरण व बाजारीकरण हो गया है ।
अब रंगानुसार व आध्यात्मिकता ज्योतिष की दृष्टि से देखा जाये*****
1---लाल रंग *****ज्योतिष के अनुसार कलावा लाल रंग का धारण करने से कुंडली में मंगल ग्रह मजबूत होता है मंगल भाई ,ऊर्जा,शक्ति साहस पराक्रम व शौर्य भूमि ,का कारक कहा गया है । मंगल का रंग लाल होता है । मंगल देव सेनापति भी है ।हनुमान जी का वरदान मिलता है ।मंगल ग्रह अच्छा होने से रक्त सम्बन्धित बीमारियो से बचाव होता है ।उच्च रक्तचाप, नेत्र रोग, गुर्दे मे पथरी ,चोट जख्म से भी बचाव करता है ।वात दोष का शमन होता है । हृदय सम्बन्धित, डायबिटीज व पैरालिसिस आदि ।
2--- पीला रंग*****यदि जातक पीले रंग का बांधता है तो इससे उनकी कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत होता है । जिससे व्यक्ति के जीवन में सुख ,समृद्धि ,आरोग्य ,पति या पत्नी प्रेम बढ़ता है संतान सुख का भी कारक है।
कैंसर ,लीवर की बीमारी से बचाव होता है । इन को देव गुरू की पदवी प्राप्त है । विद्या, बुद्धि आध्यात्म की प्रवृत्ति मे वृद्धि होती है ।
3--हरा रंग*****
हरा रंग विश्वास, उर्वरता, खुशहाली, हरियाली प्रकृति का प्रतीक माना गया है। दर्शन में हरे रंग को उत्सव का प्रतीक माना जाता है ।
ज्योतिष मे हरा रंग बुध ग्रह का प्रतीक है। नाक कान गले की बीमारियों सर्दी जुकाम से बचाव करता है । बुध ग्रह के देवता गणेश और विष्णु हैं जो चंद्रमा व तारा के पुत्र भी हैं ।यह संदेश वाहक देवता व भूतल के स्वामी है ।
इनके अच्छे होने से संवाद, वाणी, शिक्षण ,कैरियर ,बोलने की ताकत आर्थिक मामलों के कारक हैं ।इन्हें युवराज ग्रह की पदवी प्राप्त है । बुध के संतुलित होने से एकाग्रता और तर्क बुद्धि विकसित होती है।
भाग्य व जीवन रेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है ।
रक्षा सूत्र से
दैहिक दैविक भौतिक त्रितापों से मुक्ति मिलती है ।
1-- वाहन बहीखाता तिजोरी की चाबी आदि पर कलावा बांधने से अत्यंत शुभ फल की प्राप्ति होती है ।
2-- कलावा रक्षा सूत्र बांधने से नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है ।
वैज्ञानिक कारण*******
शेष अगले भाग में
अपनी दादी जी के स्मृति के पन्नो से संस्मरण ।
स्वरचित डा.विजय लक्ष्मी