अभी तक आपने पढ़ा -शब्बो को लेकर तारा ,रात में किसी होटल में रूकती है ,वहाँ तारा शब्बो को समझाती है ,कोई काम है ,जिसको करने से तुम्हें बहुत पैसा मिलेगा। किन्तु शब्बो सोचती है -मुझे पैसे की क्या आवश्यकता है ?मेरे पापाजी के पास तो पहले से ही बहुत पैसा है। वो अकेली ,कमरे में डरती है ,वो तारा के पीछे -पीछे ही चल देती है किन्तु वहां तारा किसी से कह रही थी- कि मैंने उसे अच्छे से समझा दिया है ,अब वो न ही भागेगी ,न ही शोर मचायेगी। उसकी बातों से एक बार को तो तारा को उस पर विश्वास हो जाता है किन्तु जब उसकी बातें सुनती है और उसकी योजना के विषय में पता चल जाता है ,तो उसका डर समाप्त हो जाता है ,अब आगे -
वो अपने बचाव के लिए सोचती है ,एक बार वो ,वहां चली गयी तो अपने देश आना मुश्किल हो जायेगा। अपने को अकेले पाकर वो रोने लगती है और फिर सोचती है -मैं इतनी छोटी ,इन बदमाशों का सामना कैसे करूंगी ?तभी उसे स्मरण होता है ,जब वो व्यक्ति उससे कहता है -जहाँ शारीरिक ताकत से काम न चले तो दिमाग़ का उपयोग करें। कुछ सोचकर ,वो चुपचाप सो गयी उसकी तब आँख खुली जब तारा उसके सिर पर खड़ी ,कह रही थी -शबनम, प्यारी बच्ची उठो !अभी हमें काफी दूर जाना है ,रास्ते में सो जाना। शब्बो उठी और बोली -क्या दिन निकल आया ,अभी कितना बजा है ?
तारा -अभी तो पांच बजे हैं किन्तु हमें जल्दी निकलना है। शब्बो बोली -मैं तो अपने घर में आठ बजे उठती थी ,अभी मुझे और सोना है। तारा का मन किया, कि इस लड़की के चेहरे पर एक जोरदार तमाचा लगाए किन्तु ऐसे में बात बिगड़ सकती थी।
आवाज में मिठास घोलते हुए बोली -मैंने अभी कहा न ,रास्ते में सो जाना !
ठीक है कहकर ,शब्बो बोली -भूख लगी है ,कुछ खाने को तो मंगा दो।
ये लड़की भी न ,तारा दाँत पिसते हुए बोली -इतनी सुबह तुम्हारे लिए कौन उठकर नाश्ता बनाएगा ?
बनाएगा।
बनाएगा क्यों नहीं ?जब हम उसे ज्यादा पैसे देंगे तो उसका बाप भी बनाएगा ,शेरू और बिल्ला उसकी बात सुनकर मुस्कुराये और बोले -इस लड़की के तेवर तो देखो। उनकी मुस्कुराहट देखकर ,शब्बो की हिम्मत बढ़ी और बोली -पता नहीं ,आगे जहाँ हम जायेंगे ,वहाँ रास्ते कोई दुकान खुली भी होगी कि नहीं। पता नहीं उस स्थान पर पहुंचने में कितना समय लग जाये ?मेरी मम्मीजी कहती हैं -जब घर से बाहर जा रहे हों तो खाली पेट नहीं जाना चाहिए।
तारा को उस पर क्रोध आ रहा था ,बोली -ये कितना बोलती है ?तभी बिल्ला बोला -मैं जाकर देखता हूँ ,कुछ इंतजाम हो तो ,तब तक तुम लोग तैयार रहो।
कुछ समय पश्चात ,वो दूध और डबल रोटी लेकर आता है ,बोला -अभी सब आराम कर रहे हैं ,अभी तो बस यही है। तारा बोली -ले ठूंस ले।
शब्बो बोली -इन्हें खाते हैं ,अब तुम सभी देखोगे और मैं खाऊँगी ,ये तो अच्छा नहीं लगेगा। अच्छा हम तुम्हारी तरफ नहीं देख रहे ,अब खाओ !शब्बो जल्दी -जल्दी खाने लगी और तश्तरी और गिलास वहीं मेज पर रख दिया। बोली -हाथ धोकर आती हूँ और उनके संग चलने के लिए तैयार हो गयी। अपने मन का वहम निकालने के लिए ,शेरू शब्बो से बोला -हम कहाँ जा रहे हैं ?वहीं ,जहाँ बहुत सारे पैसे मिलते हैं और मजे भी करते हैं ,तारा की तरफ मुस्कुराकर बोली।
वो लोग अपने कमरे से बाहर आते हैं ,और कमरे की चाबी काउंटर पर देते हैं ,अब तक शब्बो और तारा ने बुरखा भी पहन लिया था। बाहर निकलते हुए ,शब्बो दरवाजे पर टकराई ,गिरते -गिरते बच गयी किन्तु दरबान ने उसे संभाल लिया। बाहर गाड़ी पहले से ही तैयार थी। उनके बाहर निकलते ही फोन बज उठे। -हैलो ! पुलिस स्टेशन !
इस शहर के पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर ,गुरिंदर सिंह चढ्ढा थे ,लगातार कई फोन ,आने से पुलिस स्टेशन में हड़कप मच गया। एक फोन आने पर तो उन्हें लगा -जैसे किसी ने ऐसे ही फोन कर दिया ,अभी वो लोग सोच ही रहे थे कि फोन कहां से आया ,तभी एक फोन और आया -हैलो ,पुलिस स्टेशन !कुछ लोग एक बच्ची को अगवा करके सीमा पार ले जाने का प्रयत्न कर रहे हैं। आप जल्दी आकर उस बच्ची को बचाइए। गुरिन्द्र चढ्ढा बोले -हाँ जी ,हम जानते हैं ,किन्तु आप कौन बोल रहे हैं ?जी मैं ,''सरदारजी ''होटल का दरबान बोल रहा हूँ ,वे लोग अभी हमारे होटल से निकले हैं। अब तो इंस्पेक्टर गुरिंदर को रास्ता मिल गया ,इससे पहले जिसने भी फोन किया था ,शायद वो डरा हुआ था ,न ही उसने अपना नाम बताया था ,न ही जगह ,बीच में ही फ़ोन काट दिया था। वो तुरंत तैयार होकर ,अपनी जीप लेकर बाहर निकले।
उनके जीप लेकर निकलने के बाद भी ,पुलिस स्टेशन में दो -तीन फोन और आये ,किन्तु अब उन्होंने कह दिया -जी ,वो लोग निकल चुके हैं। यार संजय !ये कौन लड़की है ?जिसे कुछ लोग लेकर जा रहे हैं और हमें ख़बर ही नहीं ,दुनिया को ख़बर हो गयी। अब साहब गए तो हैं ,कुछ न कुछ तो पता चलेगा ही।
यही बातें करतार इंस्पेक्टर साहब से पूछ रहा था ,इंस्पेक्टर चढ्ढा बोले -यह खबर सही हुई तो उनकी ख़ैर नहीं ,हमारे देश की बच्ची को बाहर ले जा रहे हैं।
वैसे करतार सिंह जी, ये किसका काम हो सकता है ?कौन सा गिरोह है ?चढ्ढा जी का दिमाग घूम रहा था।
जी ,हमें क्या मालूम ?हम तो अंदाजा ही लगा सकते हैं ,बच्चा चोर ,या फिर जो लड़कियों को बेचते हैं।वैसे ये बच्ची कहाँ से लाये हैं ?कोई बच्ची की गुमशुदगी की रिपोर्ट भी नहीं है, किसी और शहर की बच्ची हो सकती है। करतार की बातें सुनते हुए ,तभी इंस्पेक्टर चढ्ढा को उपाय सूझा और बोला -तेजेन्द्र तुम जरा थाने में फ़ोन लगाकर ,उन्हें बताओ कि क्या किसी लड़की की ''गुमशुदगी ''की किसी ने सूचना दी है या रिपोर्ट लिखवाई है ,हमारे आने तक पता लगाएं। यहां नहीं तो ,आस -पास के इलाकों में कोई लड़की ग़ायब हुई हो। जी साहब !कहकर तेजेन्द्र थाने फोन लगाता है।
कुछ देर पश्चात ही ,वे उस ''सरदार जी ''होटल के सामने आ गए ,तभी उसका दरबान भी आ जाता है और उन्हें ''जय हिन्द ''करता है। इंस्पेक्टर गुरिंदर चढ्ढा ,जीप से उतरकर उससे पूछते हैं -तुम्हें कैसे पता चला ? कि लड़की अगवा हुई है।
दरबान बोला -जी, वो लोग रात में यहीं ठहरे थे। सुबह लगभग पांच या साढ़े पांच के क़रीब वो जाने लगे ,तभी एक बुरखे वाली मुझसे टकराई ,और गिरते -गिरते बची।
मैंने उठने में उसकी सहायता भी की ,तभी मेरे हाथ में एक पर्ची आ गयी ,पहले तो मैंने सोचा -ऐसे ही कोई कागज होगा और मैंने फेंक दिया फिर देखा उस पर तो कुछ लिखा है ,वो भी ''गुरुमुखी ''में। मैंने उसे पढ़ा और तुरंत आपको फोन लगा दिया। ये कहते हुए उसने पर्ची निकालकर ,उन्हें दे दी। वो एक'' टिशू पेपर ''था जिस पर काजल की पेन्सिल से लिखा था।
ऐसा उस पर्ची में क्या लिखा था ?और वो पर्ची किसने लिखी थी ?और भी अन्य कौन लोग थे जो पुलिस स्टेशन में फोन कर रहे थे ,उन्हें कैसे पता चला ?जानने के लिए पढ़िए - ''बदली का चाँद ''