शब्बो आज गर्भवती है ,वो ही शब्बो ,जो जीवन से ,अपने जज़्बातों से लड़ती ,जूझती न जाने ,उसकी ज़िंदगी कितने झंझावतों से गुजरती हुई ?आज इस मुक़ाम पर आ पहुँची।आज अपने को वो ,अपनी दुनिया में रचा -बसा समझ रही है। ये उसके लिए ख़ुशी के पल हैं किन्तु इस ख़ुशख़बरी को सुनकर भी ,बलविंदर कुछ प्रसन्न नजर नहीं आ रहा। आज उसके पास पैसा है गाड़ी है ,सुंदर पत्नी है ,एक नहीं दो -दो ,ये बात सिर्फ़ वो ही जानता है। प्रत्यक्ष देखने में तो ,सुखी परिवार है किन्तु इस परिवार में कौन अपना ,कौन पराया ?किसके दिल में क्या छिपा है ?कुछ कहा नहीं जा सकता ,जैसे बलविंदर का व्यवहार ,अब शब्बो को समझ नहीं आ रहा। ये खबर सुनकर उसे खुश होना चाहिए ,बच्चे के दादी -दादा ,नानी -नाना को सूचित करना चाहिए किन्तु उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया।
शब्बो पूछती है -तुम खुश क्यों नहीं हो ?मैं कारण जानना चाहती हूँ।
पहले तो बलविंदर ने कोई जबाब नहीं दिया किन्तु शब्बो के बार -बार कहने पर ,बोला -तुम इस बच्चे को गिरा दो।
शब्बो तो जैसे धरातल पर आ गिरी ,ये तुम क्या कह रहे हो ? ये तुम्हारा ही नहीं ,मेरा भी बच्चा है। हम दोनों के ''प्रेम ''की निशानी है ,प्रेम शब्द कहते वो थोड़ा हिचकी किन्तु अब कह तो दिया ही।
''प्रेम '' शब्द से बलविंदर भी थोड़ा चिढ सा गया। वो जानता था- कि कैसा प्रेम है ?बोला -एक बार कह दिया तुम ये बच्चा गिरा दो ,समझ नहीं आता।
क्यों गिरा दूँ ?कुछ पता तो चले......
क्योंकि ये बच्चा ,मेरा नहीं है।
शब्बो की ,कुछ तो ऐसी हालत ऊपर से ऐसे शब्द ,क्रोध के कारण उसका तापमान बढ़ गया और उसने उसके समीप जाकर पूछा -ये तुम क्या कह रहे हो ?तुम जानते भी हो ,जो कुछ भी तुम बोल रहे हो ,पूरे होशो -हवास में बोल रहे हो। तुम मेरे ऊपर इल्ज़ाम लगा रहे हो। क्या अब मैं तुम्हारी पत्नी नहीं ?तुम्हारे प्रति वफ़ादार नहीं। ये बच्चा ! तुम्हारा नहीं तो किसका है ? जब तुम ये बात जानते हो, तो ये भी जानते होंगे ,मुझे भी तो पता चले- कि इस बच्चे का पिता कौन है ?कहते हुए ,वो हांफने लगी ,उसे जीवन ''नर्क की आग ''के सिवा कुछ नजर नहीं आ रहा था। वो पास ही पड़े पलंग पर बैठ गयी और बोली -इसका अर्थ मैंने तुम्हें धोखा दिया। तुम कैसे पति हो ?तुम्हारी पत्नी तुम्हें धोखा देती रही और तुम कुछ भी न कर सके। मुझे भी तो पता चले ,इस बच्चे का बाप कौन है ?जब इतना बड़ा इल्ज़ाम लगा ही दिया है तो क्यों न आज ही सारी बातें साफ़ हो जाएँ ?
शब्बो की हालत देख ,बलविंदर उसके लिए बाहर पानी लेने चला गया।
शब्बो क्रोध में आकर बोले जा रही थी ,बलविंदर को चाहा -उसने कभी पूछा नहीं ,कहते हैं -इसके तो पहले से ही एक बीवी है ,जैसा खुद धोखेबाज़ है ऐसा ही दूसरों को समझता है। समीर को भूलाकर ,इस ज़िंदगी से समझौता किया तो अब ये ,मेरे चरित्र पर लांछन लगा रहा है। इसने मेरी ज़िंदगी को ,क्या समझ रखा है ?जब तक जी करेगा ,खेलेगा और जब जी चाहे ,कुछ भी इल्ज़ाम लगाकर ,अपनी जिंदगी से निकाल फेंकेगा।
बलविंदर जब अंदर आया ,वो लगभग चीखते हुए से ,बोली -कौन है ? इस बच्चे का बाप !
तुम तो अच्छे से जानती होंगी ,जब तुमने मजे किये ,तो बच्चे के पिता का नाम भी मालूम ही होगा।
बलविंदर ने पानी का गिलास आगे किया किन्तु शब्बो ने ,उसे फ़ेंक दिया। टूटे गिलास के टुकड़ों की तरह ही ,वो भी टूट रही थी। ये टुकड़े ,किसी को भी जख़्मी कर सकते थे। शब्बो ने ,बलविंदर का कॉलर पकड़ लिया। वो अपनी बात बताकर ,उसकी नजरों में ,गिरना नहीं चाहता था ,उसने अपना कॉलर छुड़ाने का प्रयत्न किया किन्तु आज शब्बो ,सख़्त जान हो गयी थी। तू पहले मुझे बता....... मेरी जिंदगी में ,ये जहर तूने घोला कैसे ?
बलविंदर से भी अब बर्दाश्त नहीं हुआ ,और बोला -खन्ना......
खन्ना का नाम सुनते ही ,शब्बो के हाथ ढीले पड़ गए ,वो बलविंदर का कॉलर छोड़कर ,सोफे पर बैठ गयी। वो बड़ी कम्पनी का मालिक खन्ना ,जब वो पहली बार ,हमें होटल में मिला। ये सब कब और कैसे ?उसने हताश होकर पूछा।
''पहली ही रात '''
क्या.... ! तुम तो मेरे साथ थे।उससे तो हमारा झगड़ा हुआ था। हमारी टेबल पर आ गया था ,तब ये सब कैसे ????हम लोग तो घर आ गए थे।
उसने पहली रात का मुझे 'दस लाख ''का ऑफर दिया था ,दस लाख ,कम नहीं होते ,तुम्हारी बढ़ती मांग देख ,मैंने भी व्यापारी की तरह डील की और सौदा पंद्रह में तय हुआ ,उसने बेशर्मी से कहा। क्या फ़र्क पड़ता है ?मैं हूँ या कोई और !!तुम्हारी तो ''सुहागरात ''मन ही गयी। मैं मनाता ,तो तुम्हें सिर्फ़ हमारी मुहब्बत का एहसास होता ,किसी और ने मनाई तो धन की बरसात होने लगी फिर तुम्हें क्या फर्क पड़ता ?तुम तो नशे में रहतीं ,मैं हूँ या कोई और ,या फिर तुम्हारा यार..... समीर ,जिसे तुम उस समय भी ,स्मरण करतीं उसने मुँह में कड़वाहट भरते हुए कहा। तुम जो ये ऐशो -आराम में ,रह रही हो ,वही तो कमाई है। शब्बो के कानों में एक -एक शब्द पिघले शीशे की तरह प्रवेश कर रहा था।
क्या तुमने ,मेरे और समीर के प्यार का बदला इस तरह लिया ,मेरी ज़िंदगी नर्क बना दी।
बदला नहीं मेरी जान!!!!! व्यापार किया ,जब वो तुम पर मरता था और तुम पर पैसे लुटा रहा था ,तब क्या मैं उन पैसों को फ़ेंक देता। जिसकी बीवी इतनी सुंदर मिली हो ,बैठे -बिठाये कमाई करा रही हो ,तब उसे और कुछ करने की क्या आवश्यकता ?
तभी शब्बो के दिमाग में प्रश्न कौंधा -तुम ही हमेशा सुबह मेरे पास ,बिस्तर पर होते थे।
भरम ,मेरी जान भरम बनाये रखने के लिए कि मैं ही था।
तुम्हें शर्म नहीं आई ,अपने घर की इज्जत ,अपनी पत्नी का इस तरह सौदा करते हुए।
शर्म कैसी ?तुमसे विवाह भी तो एक डील ही थी ,यहाँ आकर ''एक पंथ दो काज ''हो गए।
डील ! कैसी डील ?